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भ्रमरगीत-सार/२३-आयो घोष बड़ो ब्योपारी

विकिस्रोत से
भ्रमरगीत-सार
रामचंद्र शुक्ल

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ ९७ से – ९८ तक

 

राग काफी
आयो घोष बड़ो ब्योपारी।

लादि खेप[] गुन ज्ञान-जोग की ब्रज में आय उतारी॥
फाटक[] दै कर हाटक माँगत भोरै निपट सु धारी[]
धुर[] ही तें खोटो खायो है लये फिरत सिर भारी॥
इनके कहे कौन डहकावै[] ऐसी कौन अजानी?

अपनो दूध छांडि को पीवै खार कूप को पानी॥
ऊधो जाहु सबार[] यहाँ तें बेगि गहरु[] जनि लावौ।
मुँहमाँग्यो पैहो सूरज प्रभु साहुहि आनि दिखावौ॥२३॥

  1. खेप=माल का बोझ।
  2. फाटक=अनाज फटकने से निकाला हुआ कदन्न, फटकन।
  3. धारी=समझकर।
  4. धुर=मूल, आरंभ।
  5. डहकावे=सौदे में धोखा खाय, ठगाए।
  6. सबार=सवेरे।
  7. गहरु=विलंब, देर।