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लादि खेप[१] गुन ज्ञान-जोग की ब्रज में आय उतारी॥ फाटक[२] दै कर हाटक माँगत भोरै निपट सु धारी[३]। धुर[४] ही तें खोटो खायो है लये फिरत सिर भारी॥ इनके कहे कौन डहकावै[५] ऐसी कौन अजानी?
अपनो दूध छांडि को पीवै खार कूप को पानी॥ ऊधो जाहु सबार[६] यहाँ तें बेगि गहरु[७] जनि लावौ। मुँहमाँग्यो पैहो सूरज प्रभु साहुहि आनि दिखावौ॥२३॥