भ्रमरगीत-सार/२३-आयो घोष बड़ो ब्योपारी

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भ्रमरगीत-सार  (1926) 
द्वारा रामचंद्र शुक्ल

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राग काफी
आयो घोष बड़ो ब्योपारी।

लादि खेप[१] गुन ज्ञान-जोग की ब्रज में आय उतारी॥
फाटक[२] दै कर हाटक माँगत भोरै निपट सु धारी[३]
धुर[४] ही तें खोटो खायो है लये फिरत सिर भारी॥
इनके कहे कौन डहकावै[५] ऐसी कौन अजानी?

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अपनो दूध छांडि को पीवै खार कूप को पानी॥
ऊधो जाहु सबार[६] यहाँ तें बेगि गहरु[७] जनि लावौ।
मुँहमाँग्यो पैहो सूरज प्रभु साहुहि आनि दिखावौ॥२३॥

  1. खेप=माल का बोझ।
  2. फाटक=अनाज फटकने से निकाला हुआ कदन्न, फटकन।
  3. धारी=समझकर।
  4. धुर=मूल, आरंभ।
  5. डहकावे=सौदे में धोखा खाय, ठगाए।
  6. सबार=सवेरे।
  7. गहरु=विलंब, देर।