भ्रमरगीत-सार/२४६-मधुकर कहियत बहुत सयाने

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मधुकर! कहियत बहुत सयाने।
तुम्हरी मति कापै बनि आवै हमरे काज अजाने।

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तैसोई तू, तैसो तेरो ठाकुर, एकहि बरनहि बाने।
पहिले प्रीति पिवाय सुधारस पाछे जोग बखाने॥
एक समय पंकजरस वासे दिनकर अस्त न माने।
सोइ सूर गति भइ ह्याँ हरि बिनु हाथ मीड़ि पछिताने॥२४६॥