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मधुकर काके मीत भए? दिवस चारि की प्रीति-सगाई सो लै अनत गए॥ डहकत फिरत आपने स्वारथ पाखँड और ठए। चाँड़ै सरे[१] चिन्हारी मेटी, करत हैं प्रीति नए॥
चितहि उचाटि मेलि गए रावल[२] मन हरि हरि जु लए। सूरदास प्रभु दूत-धरम तजि बिष के बीज बए॥२५४॥