भ्रमरगीत-सार/२५-आए जोग सिखावन पाँड़े
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आए जोग सिखावन पाँड़े।
परमारथी पुराननि लादे ज्यों बनजारे टाँड़े[१]॥
हमरी गति पति कमलनयन की जोग सिखैं ते राँड़े॥
कहौ, मधुप, कैसे समायँगे एक म्यान दो खाँड़े॥
कहु षटपद, कैसे खैयतु है हाथिन के संग गाँड़े[२]।
काकी भूख गई बयारि भखि बिना दूध घृत माँड़े॥
काहे को झाला[३] लै मिलवत, कौन चोर तुम डांड़े[४]?
सूरदास तीनों नहिं उपजत धनिया धान कुम्हाँड़े॥२५॥