भ्रमरगीत-सार/२५-आए जोग सिखावन पाँड़े

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भ्रमरगीत-सार  (1926) 
द्वारा रामचंद्र शुक्ल

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राग नट
आए जोग सिखावन पाँड़े।

परमारथी पुराननि लादे ज्यों बनजारे टाँड़े[१]
हमरी गति पति कमलनयन की जोग सिखैं ते राँड़े॥
कहौ, मधुप, कैसे समायँगे एक म्यान दो खाँड़े॥
कहु षटपद, कैसे खैयतु है हाथिन के संग गाँड़े[२]‌।
काकी भूख गई बयारि भखि बिना दूध घृत माँड़े॥
काहे को झाला[३] लै मिलवत, कौन चोर तुम डांड़े[४]?
सूरदास तीनों नहिं उपजत धनिया धान कुम्हाँड़े॥२५॥

  1. टाँड़ा=व्यापार का माल।
  2. गाँड़ा=गन्ने या चारे का कटा हुआ टुकड़ा। हाथी के साथ गाँड़े खाना=(कहाबत) देखादेखी अनहोनी बात करना।
  3. झाला=झल्ल, बकवाद।
  4. डाँड़े =दंड दिया।