सामग्री पर जाएँ

भ्रमरगीत-सार/२५-आए जोग सिखावन पाँड़े

विकिस्रोत से
भ्रमरगीत-सार
रामचंद्र शुक्ल

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ ९८

 

राग नट
आए जोग सिखावन पाँड़े।

परमारथी पुराननि लादे ज्यों बनजारे टाँड़े[]
हमरी गति पति कमलनयन की जोग सिखैं ते राँड़े॥
कहौ, मधुप, कैसे समायँगे एक म्यान दो खाँड़े॥
कहु षटपद, कैसे खैयतु है हाथिन के संग गाँड़े[]‌।
काकी भूख गई बयारि भखि बिना दूध घृत माँड़े॥
काहे को झाला[] लै मिलवत, कौन चोर तुम डांड़े[]?
सूरदास तीनों नहिं उपजत धनिया धान कुम्हाँड़े॥२५॥

  1. टाँड़ा=व्यापार का माल।
  2. गाँड़ा=गन्ने या चारे का कटा हुआ टुकड़ा। हाथी के साथ गाँड़े खाना=(कहाबत) देखादेखी अनहोनी बात करना।
  3. झाला=झल्ल, बकवाद।
  4. डाँड़े =दंड दिया।