भ्रमरगीत-सार/२६८-मधुकर भल आए बलवीर

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राग बिलावल

मधुकर! भल आए बलवीर।
दुर्लभ दरसन सुलभ पाए जान क्यों परपीर?
कहत बचन, बिचारि बिनवहिं सोधियों उन पाहिं।
प्रानपति की प्रीति, ऊधो! है कि हम सों नाहिं?

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कौन तुम सों कहैं, मधुकर! कहन जोगै नाहिं।
प्रीति की कछु रीति न्यारी जानिहौ मन माहिं।
नयन नींद न परै निसिदिन बिरह बाढ्यो देह।
कठिन निर्दय नंद के सुत जोरि तोर्‌यो नेह॥
कहा तुम सों कहैं, षटपद[१]! हृदय गुप्त कि बात।
सूर के प्रभु क्यों बनैं जो करैं अबला घात?॥२६८॥

  1. षटपद=भौंरा।