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भ्रमरगीत-सार/२६७-मधुकर जो हरि कही करैं

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भ्रमरगीत-सार
रामचंद्र शुक्ल

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १८२

 

राग गौरी

मधुकर! जो हरि कही करैं।
राजकाज चित दयो साँवरे, गोकुल क्यों बिसरैं?
जब लौं घोष रहे हम तब लौं संतत सेवा कीन्ही?
बारक कहे उलूखल बाँधे, वहै कान्ह जिय लीन्ही॥
जौ पै कोटि करैं ब्रजनायक बहुतै राजकुमारी।
तौ ये नंद पिता कहँ मिलिहैं अरु जसुमति महतारी?
गोबर्द्धन कहँ गोपबृन्द सब, कहँ गोरस सद[] पैहो?
सूरदास अब सोई करिए बहुरि हरिहि लै ऐहो॥२६७॥

  1. सद=ताजा।