बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १०१
रस की बात मधुप नीरस, सुनु, रसिक होत सो जानै॥ दादुर बसै निकट कमलन के जन्म न रस पहिंचानै। अलि अनुराग उड़न मन बाँध्यो कहे सुनत नहिं कानै॥ सरिता चलै मिलन सागर को कूल मूल द्रुम भानै[१]। कायर बकै, लोह[२] तें भाजै, लरै जो सूर बखानै॥३१॥