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नाहिंन मीत बियोगबस परे अनवउगे[२] अलि बावरे! भुखमरि जाय चरै नहिं तिनुका सिंह को यहै स्वभाव रे। स्रवन सुधा-मुरली के पोषे जोग-जहर न खवाव, रे! ऊधो हमहि सीख का दैहो? हरि बिनु अनत न ठाँव रे! सूरदास कहा लै कीजै थाही नदिया नाव, रे!॥३२॥