भ्रमरगीत-सार/३३-स्याममुख देखे ही परतीति

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भ्रमरगीत-सार  (1926) 
द्वारा रामचंद्र शुक्ल

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राग मलार
स्याममुख देखे ही परतीति।

जो तुम कोटि जतन करि सिखवत जोग ध्यान की रीति॥
नाहिंन कछू सयान ज्ञान में यह हम कैसे मानैं।
कहौ कहा कहिए या नभ को कैसे उर में आनैं॥
यह मन एक, एक वह मूरति, भृंगकीट[१] सम माने।
सूर सपथ दै बूझत ऊधो यह ब्रज लोग सयाने॥३३॥

  1. भृंगकीट=बिलनी नाम का कीड़ा जिसके विषय में प्रसिद्ध है कि वह और कीड़े को पकाकर उसे अपने रूप का कर देता है।