भ्रमरगीत-सार/३३३-भूलति हौ कत मीठी बातन

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राग कान्हरो

भूलति हौ कत मीठी बातन।
ये अलि हैं उनहीं के संगी, चंचल चित्त, साँवरे गातन॥
वै मुरली धुनि कै जग मोहत, इनकी गुंज सुमन-मन-पातन[१]
वै उठि आन आन मन रंजत, ये उड़ि अनत रंग-रस-रातन॥

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वै नवतनु मानिनि गृह-बासी, ये निसिदिवस रहत जलजातन।
ये षटपद, वै द्विपद चतुर्भुज, इनमें नाहिं भेद कोउ भाँतन॥
स्वारथ-निपुन सर्बरस भोगी जनि पतियाहु बिरह दुख-दातन[२]
वै माधव, ये मधुप, सूर सुनि, इन दोउन कोऊ घटि घाट[३] ना॥३३३॥

  1. मन-पातन=फूलों का मन ढालने अर्थात् आकर्षित करनेवाले।
  2. दुख दातन=दुःख देनेवाले।
  3. घटि घाट=घटकर।