भ्रमरगीत-सार/३३३-भूलति हौ कत मीठी बातन
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राग कान्हरो
भूलति हौ कत मीठी बातन।
ये अलि हैं उनहीं के संगी, चंचल चित्त, साँवरे गातन॥
वै मुरली धुनि कै जग मोहत, इनकी गुंज सुमन-मन-पातन[१]।
वै उठि आन आन मन रंजत, ये उड़ि अनत रंग-रस-रातन॥
बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ २०६ से – २०७ तक
राग कान्हरो
भूलति हौ कत मीठी बातन।
ये अलि हैं उनहीं के संगी, चंचल चित्त, साँवरे गातन॥
वै मुरली धुनि कै जग मोहत, इनकी गुंज सुमन-मन-पातन[१]।
वै उठि आन आन मन रंजत, ये उड़ि अनत रंग-रस-रातन॥