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भ्रमरगीत-सार/३३४-हरि सों कहियो हो जैसे गोकुल आवैं

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बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ २०७

 

राग सारंग

हरि सों कहियो, हो, जैसे गोकुल आवैं।
दिन दस रहे सो भली कीन्ही, अब जनि गहरु[] लगावैं॥
नाहिंन कछू सुहात तुमहिं बिनु, कानन भवन न भावैं।
देखे जात आपनी आँखिन्ह हम कहि कहा जनावैं?
बाल बिलख, मुख गउ न चरति तृन, बछरा पीवत पय नहिं धावैं।
सूर स्याम बिनु रटति रैनिदिन, मिलेहि भले सचु[] पावैं॥३३४॥

  1. गहरु=देर।
  2. सचु=सुख।