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भ्रमरगीत-सार/३३५-सखी री मथुरा में द्वै हँस

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बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ २०७

 

राग सोरठ

सखी री! मथुरा में द्वै हँस।
एक अक्रूर और ये ऊधो, जानत नीके गंस[]
ये दोउ छीर नीर पहिचानत, इनहि बधायों कंस।
इनके कुल ऐसी चलि आई, सदा उजागर बंस॥
अजहूं कृपा करौ मधुबन पर जानि आपनो अंस।
सूर सुयोग सिखावत अबलन्ह, सुनत होय मनभ्रंस[]॥३३५॥

  1. गंस=मन की गाँठ, कुटिलता।
  2. मनभ्रंस=चित विक्षेप, व्याकुलता।