भ्रमरगीत-सार/३३६-बारक कान्ह करौ किन फेरो

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राग सारंग

बारक कान्ह करौ किन फेरो?
दरसन दै मधुबन को सिधारो, सुख इतनो बहुतेरो॥

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भलेहि मिले बसुदेव देवकी जननि जनक निज कुटुँब घनेरो।
केहि अवलंब रहैं हम ऊधो! देखि दुःख नँद-जसुमति केरो॥
तुम बिनु को अनाथ-प्रतिपालन, जाजरि[१] नाव कुसँग सबेरो[२]
गए[३] सिंधु को पार उतारै, अब यह सूर थक्यो ब्रज-बेरो[४]॥३३६॥

  1. जाजरि=जर्जर, जीर्ण।
  2. सबेरो=सब।
  3. गए=कृष्ण के चले जाने पर।
  4. बेरो=बेड़ा।