भ्रमरगीत-सार/३३८-बातैं कहत सयाने की सी

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मानौ ढरे एक ही साँचे।
नखसिख कमल-नयन की सोभा एक भृगुलता-बाँचे[१]
दारुजात[२] कैसे गुन इनमें, ऊपर अन्तर स्याम।
हमको धूम-गयन्द[३] बताबत, बचन कहत निष्काम॥
ये सब असित देह धरे जेते ऐसेई, सखि! जानि।
सूर एक तें एक आगरे वा मथुरा की खानि॥३३७॥

  1. भृगुलता बाँचे=भृगु की लात का चिह्न छोड़कर।
  2. दारुजात=भौरा।
  3. धूम गयंद=धूएँ का हाथी, धोखे की वस्तु अर्थात् निर्गुण ब्रह्म।