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भ्रमरगीत-सार/३४-लरिकाई को प्रेम, कहौ अलि, कैसे करिकै छूटत

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भ्रमरगीत-सार
रामचंद्र शुक्ल

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १०२

 

राग धनाश्री
लरिकाई को प्रेम, कहौ अलि, कैसे करिकै छूटत?

कहाँ कहौं ब्रजनाथ-चरित अब अँतरगति[] यों लूटत॥
चंचल चाल मनोहर चितवनि, वह मुसुकानि मंद धुनि गावत।
नटवर भेस नंदनंदन को वह बिनोद गृह बन तें आवत॥
चरनकमल की सपथ करति हौं यह सँदेस मोहिं बिष सम लागत।
सूरदास मोहि निमिष न बिसरत मोहन सूरति सोवत जागत॥३४॥

  1. अंतरगति=चित्त की वृत्ति, मन।