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ऊधो! भूलि भले भटके। कहत कही कछु बात लड़ैते तुम ताही अटके॥ देख्यो सकल सयान[१] तिहारो, लीन्हे छरि फटके[२]। तुमहिं दियो बहराय इतै कों, वै कुबजा सों अटके॥ लीजो जोग सँभारि आपनो जाहु तहाँ टटके। सूर, स्याम तजि कोउ न लैहे या जोगहि कटुके[३]॥३५६॥