भ्रमरगीत-सार/३६५-कहत कत परदेसी की बात

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राग नट

कहत कत परदेसी की बात?
मंदिर-अरध-अवधि[१] बदि हम सों, हरि-अहार[२] चलि जात॥
ससि-रिपु[३] बरष सूर-रिपु[४] युग वर, हर-रिपु[५] किए फिरै घात।
मघ-पंचक[६] लै गए स्यामघन, आय बनी यह बात॥
नखत, बेद, ग्रह जोरि अर्द्ध करि[७] को बरजै हम खात।
सूरदास प्रभु तुमहिं मिलन कों कर मीड़ति पछितात॥३६५॥

  1. मंदिर-अरध-अवधि=मंदिर, घर, उसका आधा भाग पाख अर्थात् एक पाख या पक्ष की अवधि।
  2. हरि अहार=मांस, महीना।
  3. ससि-रिपु=दिन अर्थात् दिन एक वर्ष के समान बीतता है।
  4. सूर-रिपु=रात।
  5. हर-रिपु=कामदेव।
  6. मघ-पंचक=मघा से लेकर पाँचवाँ नक्षत्र चित्रा अर्थात् चित्त।
  7. नखत वेद...करि=नक्षत्र २७, वेद ४, ग्रह ९ जोड़ने से ४० आया; उसका आधा हुआ बीस अर्थात् विष।