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भ्रमरगीत-सार/३६६-ऊधो! मन माने की बात

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बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ २१८

 

राग धनाश्री

उधो! मन माने की बात।
दाख छुहारा छाँड़ि अमृत-फल विष-कीरा विष खात।
जौ चकोर को दै कपूर कोउ तजि अंगार अघात?
मधुप करत घर कोरि[] काठ में बँधत कमल के पात॥
ज्यों पतंग हित जानि आपनो दीपक सों लपटात।
सूरदास जाको मन जासों सोई ताहि सुहात॥३३६॥

  1. कोरी= कुरेदकर, फुतरकर।