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भ्रमरगीत-सार/३६-बरु वै कुब्जा भलो कियो

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भ्रमरगीत-सार
रामचंद्र शुक्ल

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १०२ से – १०३ तक

 

राग विहागरो
बरु वै कुब्जा भलो कियो।

सुनि सुनि समाचार ऊधो मो कछुक सिरात हियो॥
जाको गुन, गति, नाम, रूप हरि, हार्‌यो फिरि न दियो।

तिन अपनो मन हरत न जान्यो हँसि हँसि लोग जियो॥
सूर तनक चंदन चढ़ाय तन ब्रजपति बस्य कियो।
और सकल नागरि नारिन को दासी दाँव लियो॥३६॥