[ १०२ ]
सुनि सुनि समाचार ऊधो मो कछुक सिरात हियो॥ जाको गुन, गति, नाम, रूप हरि, हार्यो फिरि न दियो।
तिन अपनो मन हरत न जान्यो हँसि हँसि लोग जियो॥ सूर तनक चंदन चढ़ाय तन ब्रजपति बस्य कियो। और सकल नागरि नारिन को दासी दाँव लियो॥३६॥