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भ्रमरगीत-सार/३७२-देखौ माधव की मित्राई

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बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ २२०

 

राग सारंग

देखौ माधव की मित्राई।
आई उघरि कनक-कलई ज्यों दै निज[] गये दगाई॥
हम जाने हरि हितू हमारे उनके चित्त ठगाई।
छाँड़ी सुरति सबै ब्रजकुल की निठुर लोग बिलमाई॥
प्रेम निबाहिं कहा वै जानैं साँचेई अहिराई।
सूरदास बिरहिनी बिकल-मति कर मींजै पछिताई॥३७२॥

  1. निज=केवल, बिलकुल।