भ्रमरगीत-सार/३७४-अब या तनहि राखि का कीजै

विकिस्रोत से

[ २२१ ]

अब या तनहि राखि का कीजै?
सुनि री सखी! स्यामसुंदर बिन बाटि[१] बिषम बिष पीजै॥
कै गिरिए गिरि चढ़िकै, सजनी, कैस्वकर सीस सिव दीजै।
कै दहिए दारुन दावानल, कै तो जाय जमुन धँसि लीजै॥
दुसह वियोग बिरह माधव के कौन दिनहिं दिन छीजै?
सूरदास प्रीतम बिन राधे सोचि सोचि मनही मन खीजै॥३७४॥

  1. बाटि=पीसकर, घिसकर।