भ्रमरगीत-सार/३८७-माधव! यह ब्रज को ब्योहार

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माधव! यह ब्रज को ब्योहार।
मेरो कह्यो पवन को भुस भयो, गावत नंदकुमार॥
एक ग्वारि गोधन लै रेंगति, एक लकुट कर लेति।
एक मंडली करि बैठारति, छाक बांटि कै देति॥
एक ग्वारि नटवर बहु लीला, एक कर्म-गुन गावति।
कोटि भांति कै मैं समुझाई नेकु न उर में ल्यावति॥
निसिबासर ये ही ब्रत सब ब्रत दिन दिन नूतन प्रीति।
सूर सकल फीको लागत है देखत वह रसरीति॥३८७॥