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भ्रमरगीत-सार/५२-हमारे हरि हारिल की लकरी

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बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १०८

 

राग सारंग
हमारे हरि हारिल[] की लकरी।

मन बच क्रम नँदनँदन सों उर यह दृढ़ करि पकरी॥
जागत सोवत, सपने सौंतुख कान्ह कान्ह जक[] री।
सुनतहि जोग लगत ऐसो अलि! ज्यों करुई ककरी॥
सोई ब्याधि हमैं लै आए देखी सुनी न करी।
यह तौ सूर तिन्हैं लै दीजै जिनके मन चकरी[]॥५२॥

  1. हारिल=एक पक्षी जो प्रायः चंगुल में कोई लकड़ी या तिनका लिए रहता है।
  2. जक=रट, धुन।
  3. चकरी=चकई। चकई नामक खिलौने की तरह चंचल या घूमता हुआ।