भ्रमरगीत-सार/५५-जनि चालौ, अलि, बात पराई
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बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १०९
ना कोउ कहै सुनै या ब्रज में नइ कीरति सब जाति हिराई॥
बूझैं समाचार मुख ऊधो कुल की सब आरति बिसराई।
भले संग बसि भई भली मति, भले मेल पहिचान कराई॥
सुन्दर कथा कटुक सी लागति उपजत उर उपदेस खराई[१]।
उलटो न्याव सूर के प्रभु को बहे जात माँगत उतराई॥५५॥