भ्रमरगीत-सार/८२-मोहन माँग्यो अपनो रूप
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मोहन माँग्यो अपनो रूप।
हमसों बदलो लेन उठि धाए मनो धारि कर सूप॥
अपनो काज सँवारि सूर, सुनु, हमहिं बताव त कूप।
लेवा-देइ बराबर में है, कौन रंक को भूप ॥८२॥
बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ ११८ से – ११९ तक
हमसों बदलो लेन उठि धाए मनो धारि कर सूप॥
अपनो काज सँवारि सूर, सुनु, हमहिं बताव त कूप।
लेवा-देइ बराबर में है, कौन रंक को भूप ॥८२॥