भ्रमरगीत-सार/८३-हरि सों भलो सो पति सीता को

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हरि सों भलो सो पति सीता को।

बन बन खोजत फिरे बंधु-सँग, कियो सिंधु बीता को[१]
रावन मार्‌यो, लंका जारी, मुख देख्यो भीता[२] को।
दूत हाथ उन्हैं लिखि न पठायो निगम-ज्ञान गीता को॥
अब धौं कहा परेखो कीजै कुबजा के मीता को।
जैसे चढ़त सबै सुधि भूली, ज्यों पीता चीता को[३]?
कीन्हीं कृपा जोग लिखि पठयो, निरखु पत्र री! ताको।
सूरदास प्रेम कह जानै लोभी नवनीता को॥८३॥

  1. बीता को=बीते भर का।
  2. भीता=डरी हुई।
  3. पीता चीता को=किस पीनेवाले ने चेता अर्थात् किसी ने नहीं।