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भ्रमरगीत-सार/९८-हरिमुख निरखि निमेख बिसारे

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भ्रमरगीत-सार
रामचंद्र शुक्ल

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १२४

 

राग गौरी
हरिमुख निरखि निमेख बिसारे।

ता दिन तें मनो भए दिगंबर इन नैनन के तारे॥
घूँघट-पट छांड़े बीथिन महँ अहनिसि अटत[] उघारे।
सहज समाधि रूपरुचि इकटक टरत न टक तें टारे॥
सूर, सुमति समुझति, जिय जानति, ऊधो! बचन तिहारे।
करैं कहा ये कह्यो न मानत लोचन हठी हमारे॥९८॥

  1. अटत=घूमते हैं।