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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय/३७

विकिस्रोत से
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
मोहनदास करमचंद गाँधी

दिल्ली: प्रकाशन विभाग, दिल्ली, पृष्ठ आवरण-पृष्ठ से – विषय-सूची तक

 

सम्पूर्ण

गांधी

वाङ्मय

खण्ड सैंतीस














प्रकाशन विभाग

 

सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

३७

 

(जुलाई—अक्टूबर १९२८)

 
 

सम्पूर्ण गांधी वाङ‍्मय

 

३७

(जुलाई – अक्टूबर १९२८)

 

प्रकाशन विभाग
सूचना और प्रसारण मन्त्रालय

 

दिसम्बर १९७० (अग्रहायण १८९२)

 

© नवजीवन ट्रस्ट, अहमदाबाद, १९७०

 

साढ़े सात रुपये

 

कापीराइट
नवजीवन ट्रस्टकी सौजन्यपूर्ण अनुमतिसे

 

निदेशक, प्रकाशन विभाग, दिल्ली‒१ द्वारा प्रकाशित
और शान्तिलाल हरजीवन शाह, नवजीवन प्रेस, अहमदाबाद‒१४ द्वारा मुद्रित

 

भूमिका

सन् १९२६ के आरम्भमें गांधीजी ने सक्रिय राजनीतिसे हटकर अपनी गतिविधियोंको आश्रम और रचनात्मक कार्यक्रमके दायरेमें सीमित कर लिया था। इस खण्डमें, जिसका आरम्भ जुलाई, १९२८ में होता है और समाप्ति अक्टूबर, १९२८ में, हम उन्हें धीरे-धीरे अपने इस स्वेच्छा स्वीकृत दायरेसे बाहर आते हुए देखते हैं। यह वह समय है जब राजनीतिक क्षेत्रमें हो रही महत्त्वपूर्ण घटनाएँ गांधीजी के नेतृत्वमें ब्रिटिश सरकारके साथ एक नई लड़ाईके लिए जमीन तैयार कर रही थीं। राजनीतिक नेता उस संसदीय आयोगकी चुनौतीके खिलाफ, जो ब्रिटिश संसद द्वारा भारतके राष्ट्रीय मतकी सम्पूर्ण अवज्ञा करके नियुक्त किया गया था, संयुक्त मोर्चा बनानेका प्रयत्न कर रहे थे। गांधीजी नेताओंके इन प्रयत्नोंको सहानुभूतिपूर्वक देख रहे थे, किन्तु उनके मनमें उनकी उपयुक्तताके सम्बन्धमें सन्देह भी था। उनका ध्यान तो राष्ट्रीय माँगको पूरी करानेके लिए आवश्यक शक्तिका निर्माण करनेपर केन्द्रित था। इसलिए एक ओर तो वे पिछले अप्रैलमें शुरू हुए बारडोली सत्याग्रह में ज्यादा दिलचस्पी ले रहे थे और दूसरी ओर राष्ट्रीय संग्राममें उपयुक्त भूमिका निबाहनेके लिए आश्रमको तैयार करने में लगे हुए थे। काम श्रम-साध्य था (देखिए, पत्र: बी॰ जी॰ हॉनिमैनको, पृ॰ ३९३), किन्तु जिस फलके लिए वह किया जा रहा था उसे देखते हुए करणीय भी था। बारडोली संघर्षकी समाप्तिके बाद मोतीलाल नेहरूको लिखे एक पत्रमें उन्होंने कहा था: "आश्रममें ही मेरे लिए बहुत ज्यादा काम है। पता नहीं, आप यह जानते हैं या नहीं कि बारडोली-संघर्ष इस आश्रमके कारण हो सम्भव हो सका है। . . . यदि मैं आश्रमको, जैसा मैं चाहता हूँ, वैसा बना सकूँ तो बहुत बड़े पैमानेपर मोर्चा लेनेको तैयार रहूँगा" (पृ० २०५)।

यदि सत्याग्रह विधानवादियोंकी माँगकी पूर्तिका प्रभावकारी साधन प्रस्तुत करता था तो स्वयं सत्याग्रह अपनी अलौकिक शक्ति जुटा रहा था – उस तपस्या और रचनात्मक कार्यसे जो आश्रममें किया जा रहा था और जिसके कारण ही न केवल बारडोली सत्याग्रह बल्कि दो वर्ष बाद दांडी-कूच और नमकके भण्डारोंपर किये जानेवाले छापे भी सम्भव हो सके।

बारडोलीका किसान सत्याग्रह, जिसका नेतृत्व वल्लभभाईने अद्भुत कौशल और वीरताके साथ किया था, ६ अगस्तको – गांधीजी उस समय कुछ दिनोंके लिए बारडोली में ही थे – सरकारसे समझौता होनेके साथ समाप्त हो गया। कहा जा सकता है कि जहाँ इस सत्याग्रह के अभियानने 'सजीव' स्वराज्य या तत्त्वात्मक स्वराज्यकी नींव डाली, वहाँ नेहरू रिपोर्टने, जिसे अगस्तके अन्तमें लखनऊमें हुए सर्वदलीय सम्मेलनने अपना अनुमोदन प्रदान किया, सांविधानिक या रूपात्मक स्वराज्यका मार्ग प्रशस्त किया। स्वराज्यके इन दो पक्षोंके पारस्परिक सम्बन्धकी चर्चा इस खण्डमें बार-बार हुई है। 'इंडियन नेशनल हेराल्ड' को प्रेषित २८ अगस्तके अपने सन्देशमें गांधीजी कहते हैं: "लखनऊने जो रास्ता दिखाया है, उसपर चलकर संवैधानिक स्वराज्य तो प्राप्त किया जा सकता है, लेकिन अन्दरसे विकसित होनेवाला जीवन्त स्वराज्य जो रामराज्यका पर्याय है, बारडोली द्वारा दिखाये रास्तेपर चलकर ही प्राप्त किया जा सकता है" (पृ॰ २२४)। यह विचार उन्होंने 'नवजीवन' के एक लेख (पृ॰ २६२) में भी दुहराया है।

बारडोली सत्याग्रहने जनताकी संकल्प-शक्तिकी कसौटी और उसके प्रदर्शनका एक उपयुक्त अवसर पेश किया। इस सत्याग्रहका नेतृत्व वल्लभभाईने किया था, किन्तु उसका मार्गदर्शन दूरसे स्वयं गांधीजी ही कर रहे थे। इस बातसे उनकी भूमिकाके सम्बन्धमें कुछ गलतफहमी पैदा हो गई और उन्हें उसका निरसन करनेकी जरूरत हुई थी (पृ॰ ८८)। गांधीजी पर इस अभियानका क्षेत्र बढ़ाकर उसे एक अखिल भारतीय राजनीतिक प्रश्न बनाने के लिए जोर डाला गया, किन्तु उन्होंने नैतिक और व्यावहारिक कारणोंसे उसका प्रतिरोध किया। सत्याग्रहकी कल्पनामें ही यह वस्तु निहित है कि जबतक परिस्थितियाँ उसे वैसा करनेके लिए बाध्य ही न कर दें तबतक सत्याग्रहीको अभियानको अवधिमें अपनी मांगोंको बढ़ाना नहीं चाहिए। इसके सिवा, प्रस्तुत प्रसंगमें तो गांधीजी ऐसा भी महसूस कर रहे थे कि देश अभी ऐसे किसी संघर्षके लिए तैयार नहीं है जिसमें वह अपनी पूरी शक्तिसे जुट सके। इस सम्बन्ध में लिखते हुए उन्होंने कहा कि "अभी सहानुभूतिमें मर्यादित ढंगका सत्याग्रह करनेका समय भी नहीं आया है। बारडोलीको अभी यह साबित करना बाकी है कि वह खरी धातुका बना हुआ है।" आलोचककी ओरसे इस आपत्तिकी सम्भावनाका विचार करके कि उनके रवैये में व्यवहारकी कुशलता लक्षित नहीं होती, इसी लेखमें उन्होंने यह भी कहा है कि ईश्वरकी जीवन्त उपस्थितिका विश्वास सत्याग्रहका आधार है "और सत्याग्रही उससे मार्गदर्शन पाता है। नेता अपनी शक्तिपर नहीं, बल्कि ईश्वरकी शक्तिपर निर्भर करता है। . . . इसलिए जिसे व्यावहारिक राजनीति कहते हैं, वह चीज अकसर उसके लिए अवास्तविक होती है, यद्यपि अन्ततः उसकी अपनी नीति सबसे अधिक व्यावहारिक राजनीति साबित होती है" (पृ॰ ११७)।

लेकिन जहाँ गांधीजी ने बारडोली सत्याग्रहको अधिक व्यापक राजनीतिक संघर्षका रूप देनेसे इनकार कर दिया वहाँ उन्होंने लोगोंकी सम्मान-भावना और स्वाभिमानसे सम्बन्धित मूलभूत मुद्दोंपर उनकी माँगोंमें किसी तरहकी कमी करना भी स्वीकार नहीं किया। उन्होंने लोगोंको उस धमकीकी उपेक्षा करनेकी सलाह दी जो राज्यपालने २३ जुलाईको विधान परिषद्में अपने भाषणमें दी थी (पृ॰ १०३-४ और १३७-९); और उन सदाशय व्यक्तियोंके प्रयत्नोंकी चर्चा करते हुए जो सरकार और सत्याग्रहियोंके बीच समझौता करानेकी कोशिश कर रहे थे, उन्होंने उनसे आग्रह किया कि वे सत्याग्रहियोंको दयाका पात्र मानकर सरकारसे उनके लिए किसी तरहकी याचना न करें: "सत्याग्रही दयाके पात्र नहीं हैं; वे दयाके भूखे भी नहीं हैं; वे तो न्यायके भूखे हैं" (पृष्ठ १४१)।

संघर्ष में विजय मिलनेके बाद गांधीजी ने सरकार और बारडोलीकी जनता तथा वल्लभभाई, दोनों पक्षोंको बधाई दी। सरकार द्वारा लगानकी वसूलीके लिए प्रयुक्त उत्पीड़क उपायोंके आरोपोंकी जाँचके सिवाय सत्याग्रहियोंकी शेष सब माँगें पूरी हो गयी थीं। वल्लभभाई द्वारा इस माँगका आग्रह छोड़नेपर गांधीजी ने कहा, "यह अच्छा ही है कि पुराने अन्यायोंका सवाल फिरसे न उठाया जाये। सिवाय इसके कि इनके लिए क्षतिपूर्ति कर दी जाये, इनका और क्या इलाज है?" (पृ॰ १५४)। इसी प्रकार जिन स्वयंसेवकोंने अपने त्याग और सेवा-भावसे इस संघर्षको विजयकी चोटीतक पहुँचाया था उनसे उन्होंने संघर्षके विरोधियों और सरकारी अधिकारियोंकी मित्रता हासिल करनेके लिए कहा (पृ॰ १६९-७०)। बारडोली की जनताको, इसी सिलसिलेमें, जनरल बोथा और स्मट्सका उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि रचनात्मक कार्य भी सत्याग्रहकी लड़ाईका एक अनिवार्य हिस्सा है। उन्होंने कहा कि यद्यपि जनरल बोथा और स्मट्स "जगत्प्रसिद्ध सेनापति थे . . . फिर भी . . . रचनात्मक कार्यके महत्त्वको अच्छी तरह समझते थे" (पृ॰ १७२)। उन्होंने सरकार और जनता, दोनोंसे इस संघर्षसे शिक्षा लेनेके लिए कहा। "हाँ, सरकार भी [शिक्षा] ले सकती है, बशर्ते कि जब सत्य जनताके पक्षमें हो और उसे अपने उचित स्थान पर प्रतिष्ठित करानेके लिए जनता अहिंसाके आधारपर अपनेको संगठित कर सकती हो तब सरकार उसकी शक्तिको स्वीकार करनेको तैयार हो" (पृ॰ १८६)। और जनता उससे यह शिक्षा ले सकती है कि "जबतक वह, जिसे सामूहिक आत्म-शुद्धिकी सतत प्रक्रिया कह सकते हैं, उस प्रक्रियासे न गुजरेगी, तबतक अहिंसाके आधारपर अपनेको संगठित नहीं रख पायेगी" (पृ॰ १८७)।

'नवजीवन' में लिखित कई लेखोंमें गांधीजी ने अहिंसाके नैतिक और व्यावहारिक फलितार्थों पर विचार किया और इस आदर्शके बाहरी रूपों और उसकी आन्तरिक भावनाका भेद स्पष्ट किया। भारतीय परम्पराने अहिंसाको मनुष्यका परम धर्म माना है। गांधीजी भी ऐसा ही मानते हैं, किन्तु उनकी दृष्टिमें धर्म नैतिकताकी कोई बनी-बनाई अचल नियमावली नहीं है। उनके लिए वह कर्ममय जीवनमें सत्यकी ऐसी खोज है कि जिसका अनुसन्धान अनुदिन करना होता है। अहिंसाकी समस्याके प्रति अपने इस प्रयोगात्मक रुखके कारण गांधीजी को अहिंसाके सम्बन्धमें लोक-प्रचलित धारणाओंको अस्वीकार करने में कोई संकोच नहीं हुआ।

अहिंसाका यह सवाल सितम्बरमें जब आश्रममें एक बीमार बछड़ेको कष्टसे छुटकारा देनेके लिए गांधीजी की सलाहपर उसका प्राण-हरण किया गया तब उग्र चर्चाका विषय बन गया। अहमदाबादमें तो इस घटनाके फलस्वरूप एक तूफान ही उठ खड़ा हुआ, जिसने गांधीजी के नैतिक साहसकी उससे भी ज्यादा कड़ी परोक्षा ली होगी जितनी कि तेरह वर्ष पहले आश्रम में एक हरिजन परिवारको प्रवेश देने पर हुई थी। नाराज पत्र-लेखकोंने उन पर मानों पत्रोंकी बौछार ही कर डाली। ये पत्र इतने तीखे थे कि उनमें से कुछ पत्र-लेखकोंके विषय में तो गांधीजी को अपनी आदतके खिलाफ किंचित् व्यंग्यके साथ यह कहना पड़ा कि "कोई गालियाँ देकर अपनी अहिंसा प्रकट कर रहा है, तो कोई सख्त आलोचना करके मेरी अहिंसाको परीक्षा ले रहा है" (पृ॰ ३५२)। किन्तु एक सत्यान्वेषीके नाते उन्होंने अपने विचारोंको सार्वजनिक चर्चा करनेके इस अवसरका स्वागत किया।

गांधीजी जानते थे कि लोकमत उनके इस कार्यका अनुमोदन नहीं करेगा। किन्तु वे यह भी समझते थे कि अहिंसाके "पंथ पर आदमीको अकसर अकेले ही चलना पड़ता है" (पृ॰ ३२४) और यह कि सत् और असत्का भेद मनुष्य केवल अपने अन्तर्यामीके आदेशका, अपने आन्तरिक प्रकाशका अनुसरण करके ही कर सकता है। उन्होंने कहा कि "अन्ततः अहिंसाकी परीक्षाका आधार भावना पर रहता है" (पृ॰ ३२५)। दयाभावसे प्रेरित प्राण-हरणका मतलब "शरीरमें स्थित आत्माको दुःख-मुक्त करना है" (पृ॰ ३२४)। अहिंसाकी प्रचलित धारणाकी आलोचना करते हुए उन्होंने कहा: "किसोको गाली देना, किसीका बुरा चाहना, किसीका ताड़न करना, कष्ट पहुँचाना, सभी कुछ हिंसा है। जो मनुष्य अपने स्वार्थके लिए दूसरेको कष्ट पहुँचाता है, उसका अंग-भंग करता है, भर-पेट खानेको नहीं देता, और अन्य किसी तरहसे उसका अपमान करता है, वह मृत्युदण्ड देनेवालेकी अपेक्षा कहीं अधिक निर्दयता दिखलाता है" (पृ॰ ३२४)।

दयाभावसे प्रेरित प्राणहरणके विषयमें तो गांधीजी को यह निश्चय था कि वह सदाचारकी नीतिके अनुकूल है, किन्तु आश्रमके बगीचे और खेतोंमें बन्दरोंके उत्पातको रोकनेके लिए कोई प्रभावकारी किन्तु अहिंसक उपाय ढूंढ़ निकालनेका सवाल उनके लिए फिर भी कठिन रहा। बन्दरोंने आश्रम में बड़ा उत्पात मचा रखा था। अब सवाल यह उठा कि उन्हें मारना हिंसा-धर्मके कहाँ तक अनुकूल होगा। गांधीजी ने स्वीकार किया, बन्दरोंको मार भगाने" या "मार डालने" में "शुद्ध हिंसा ही" क्योंकि "उसमें बन्दरोंके हितका विचार नहीं, किन्तु आश्रमके ही हितका विचार है।" तात्पर्य यह कि स्वार्थसे प्रेरित होकर किसीको कष्ट देना हिंसा है। किन्तु साथ ही उन्होंने यह भी माना कि "देहवारी जीवमात्र हिंसासे ही जीते हैं।" "समाजने कुछ-एक हिंसाओंको अनिवार्य गिनकर व्यक्तिको विचार करनेके भारसे मुक्त कर दिया है। तो भी प्रत्येक जिज्ञासुके लिए अपना क्षेत्र समझकर उसे नित्य छोटा करते जानेका प्रयत्न तो बच ही रहता है" (पृष्ठ ३२६)। अहिंसाके उपासकको कमसे-कम प्रत्यक्ष हिंसासे – यहाँ तक कि खेती-कार्यमें जो हिंसा होती है उससे भी – अवश्य बचना चाहिए, इस दलीलके जवाबमें गांधीजी ने कहा, "खेती करनेवाले असंख्य मनुष्य अहिंसा धर्मसे विमुख रहें और खेती न करनेवाले मुट्ठी-भर मनुष्य ही अहिंसाको सिद्ध कर सकें, ऐसी स्थिति मुझे परम धर्मको शोभनेवाली अथवा उसे सिद्ध करनेवाली नहीं मालूम होती" (पृ॰ ४०२)। गांधीजी का यह तर्क सचमुच लाजवाब था। इसी प्रसंगमें उन्होंने यह भी कहा कि "धर्ममें सर्वव्यापक होनेकी शक्ति होनी चाहिए। धर्म जगत्के शतांशका इजारा नहीं हो सकता, होना भी नहीं चाहिए।" और चूँकि उनका विश्वास था कि "सत्य और अहिंसा . . . जगद्व्यापी धर्म हैं, इसीसे उसके अर्थकी खोजमें जीवन खपाते हुए भी" वे "रस लूट" रहे थे और "दूसरोंको भी उस रसको लूटनेका आमन्त्रण दे" रहे थे (पृ॰ ४०३)।

गांधीजी के ये विचार रूढ़िपरायण पुराणमतवादियोंको आसानी से पसन्द आ जायेंगे इसकी तो कोई संभावना ही नहीं थी। कुछको तो उनसे गहरा आघात भी लगा; कारण, वे तो निःशंक भावसे यह माने बैठे थे कि गांधीजी उनकी कल्पनाकी सम्पूर्ण अहिंसाकी मूर्ति हैं। किन्तु गांधीजी अविचलित रहे – बल्कि उन्हें इस बातकी खुशी थी कि बछड़े और बन्दरोंके बारेमें उनके उक्त विचारोंने उन लोगोंके भ्रमको तोड़ दिया है। उन्होंने कहा, "महात्माके पदकी अपेक्षा सत्य मुझे अनन्त गुना प्रिय है" (पृ॰ ४२९)। उन्होंने आगे कहा, "अपने विषयमें मैं सिर्फ इतना ही जोर देकर कह सकता हूँ कि अहिंसादि महाव्रतोंको पहचानने तथा उनका मन, वचन तथा शरीरसे पालन करनेका मैं सतत् प्रयत्न कर रहा हूँ" (पृ॰ ४३०)।

टॉल्स्टॉयके जन्म-दिवस पर (१०-९-१९२८ को) अपने भाषण में गांधीजी ने बताया कि उन्होंने टॉल्स्टॉय, खासकर टॉल्स्टॉयके जीवनसे क्या सीखा। इसी प्रसंगमें एक पत्र-लेखकको उन्होंने यह भी बताया कि "जहाँ मोटे तौर पर यह बात बिलकुल सही है कि मेरा जीवन 'गीता' की शिक्षा पर आधारित है, वहाँ मैं दावेके साथ यह नहीं कह सकता कि ब्रह्मचर्यके सम्बन्धमें मेरे निर्णयको टॉल्स्टॉयके लेखों और शिक्षाने प्रभावित नहीं किया है" (पृ॰ २५३-४)। बोल्शेविक विचारधाराके सम्बन्धमें गांधीजी ने बहुत ही कम लिखा या कहा है। उनके तत्सम्बन्धी विरल वचनोंमें से एक इस खण्डमें प्राप्त है। उसमें वे निजी सम्पत्ति समाप्त करनेके लिए हिंसाका आश्रय लेनेकी बोल्शेविकोंकी रीतिसे अपनी असहमति प्रगट करते हैं, किन्तु साथ ही वे यह भी कहते हैं कि "बोल्शेविज्मकी साधनामें असंख्य मनुष्योंने आत्म-बलिदान किया है, लेनिन-जैसे प्रौढ़ व्यक्तिने अपना सर्वस्व उसपर निछावर कर दिया था; ऐसा महात्याग व्यर्थ नहीं जा सकता" (पृ॰ ३९८)। भारतकी भावी अर्थ-रचनाके सम्बन्धमें जब उनसे प्रश्न किया गया तो उन्होंने उत्तर दिया, "आर्थिक रचना ऐसी होनी चाहिए कि जिससे एक भी प्राणी अन्न-वस्त्रके अभावसे दुःखी न हो। . . . और यदि हम सारे जगत्के लिए ऐसी स्थिति चाहते हों तो अन्न-वस्त्रादि उत्पन्न करनेके साधन प्रत्येक मनुष्यके पास होने ही चाहिए। . . . जैसे हवा और पानी पर सबका समान हक है, वैसे ही अन्न-वस्त्र पर भी होना चाहिए" (पृ॰ ४३२)।  

प्रस्तुत खण्डमें संकलित पत्र सदाकी तरह इस तथ्यको उजागर करते हैं कि गांधीजी में अपने पत्रलेखकोंके साथ उनकी कठिनाइयोंमें एक-रूप हो जानेकी, उनके प्रश्नोंको अपना प्रश्न बना लेनेकी, कैसी अद्भुत क्षमता थी। और उनके पत्र लेखकों में एक ओर जहाँ वह शिक्षक है जो गांधीजी की सलाह अपने इस विषम सवाल पर चाहता है कि शिक्षक होते हुए भी उसे नाईका अपना परम्पराप्राप्त कर्तव्य करते रहना चाहिए या नहीं, वहीं दूसरी ओर मोतीलाल नेहरू-जैसे राष्ट्रीय नेता भी हैं, जो उनके साथ अपनी सार्वजनिक चिन्ताएँ बँटाना चाहते हैं। मोतीलाल नेहरूको लिखे हुए पत्र उनके प्रति गांधीजी की सम्मानको भावना प्रगट करते हैं और अपनी भाषा तथा शैलीसे अपने एक ऐसे साथीको लिखे गये जान पड़ते हैं जो उनके साथ समानताके स्तरपर और अन्तरंग भावसे राष्ट्रीय सवालोंकी चर्चा कर सकता था। एक अन्य साथी, जिनके वैयक्तिक और पारिवारिक सवालोंमें गांधीजी गहरी दिलचस्पी लेते थे, बंगालके पथिकृत खादी-कार्यकर्ता सतीशचन्द्र दासगुप्त थे। उन्हें और उनकी पत्नी हेमप्रभादेवीको लिखे गांधीजी के प्रत्येक पत्रमें उनके प्रति गांधीजी का चिन्तायुक्त प्रेम तथा उनके कामकाजमें गांधीजीकी गहरी रुचि स्पष्ट झलकती है। गांधीजीकी स्पष्टवादिता और मनुष्य-सुलभ दुर्बलताओंके प्रति उनकी दृष्टि हमें शौकत अलीको लिखे एक पत्रमें मिलती है। "मैं यह जरूर कहूँगा कि डॉ॰ अन्सारीके नाम लिखा आपका जो एकमात्र पत्र मैंने पढ़ा, वह मुझे अच्छा नहीं लगा। . . . . मैं तो खुद ही अक्सर गलतियाँ करता हूँ और मुझे बराबर मित्रों और विरोधियोंकी क्षमाशीलताकी आवश्यकता रहती है। इसलिए जिस चीजको मैं आपकी गलती मानूं, उसको लेकर मैं चिन्ता क्यों करूँ?" (पृ० ३१७)।

इसी खण्डमें 'यंग इंडिया' में लिखित "ईश्वर है" शीर्षकवाला वह लेख भी जा रहा है जिसे गांधीजी ने सन् १९३१ में, अपने लन्दन-प्रवासके दरम्यान, अमेरिकाको प्रेषित अपने सन्देशके लिए रिकार्ड कराया था। इस लेखमें उन्होंने ईश्वरमें अपनी श्रद्धाका स्वरूप समझाया है और दुनियामें विद्यमान बुराई पर, जिसे ईश्वर चलने देता है पर जिससे वह स्वयं अलिप्त रहता है, अपने विचारोंको स्पष्ट किया है। वे कहते हैं, "मैं यह भी जानता हूँ कि यदि मैं अपने प्राणोंकी बाजी लगाकर बुराईके विरुद्ध संघर्ष नहीं करूंगा तो मैं ईश्वरको कभी भी नहीं जान पाऊँगा" (पृ॰ ३६५)।  

आभार

इस खण्डकी सामग्री के लिए हम साबरमती आश्रम संरक्षक तथा स्मारक न्यास और संग्रहालय (साबरमती आश्रम प्रिजर्वेशन एंड मेमोरियल ट्रस्ट), नवजीवन ट्रस्ट, गुजरात विद्यापीठ ग्रन्थालय, अहमदाबाद; गांधी स्मारक निधि व संग्रहालय, भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार (नेशनल आर्काइव्ज ऑफ इंडिया), नेहरू स्मारक संग्रहालय तथा पुस्तकालय, नई दिल्ली; श्री नारणदास गांधी, राजकोट; श्री घनश्यामदास बिड़ला, कलकत्ता; श्रीमती तहमीना खम्भाता, बम्बई; श्रीमती वसुमती पण्डित, सूरत; श्री हरिभाऊ उपाध्याय, अजमेर; श्री महेश पट्टणी, भावनगर; श्री हरिइच्छा कामदार, बड़ोदा; श्रीमती मीराबहन, इंग्लैंड; श्री वालजीभाई देसाई, पूना; श्रीमती राधाबहन चौधरी, नई दिल्ली; श्री सी॰ एम॰ डोक; श्री कनुभाई नानालाल मशरूवाला, अकोला; श्री नीलकण्ठ मशरूवाला, अकोला; श्री बालकृष्ण भावे, पूना; श्री शान्तिकुमार मोरारजी, बम्बई; 'इंडियन रिव्यू', 'नवजीवन', 'प्रजाबन्धु', 'बॉम्बे क्रॉनिकल', 'यंग इंडिया', 'हिन्दुस्तान टाइम्स', 'हिन्दू' इन समाचारपत्रों तथा पत्रिकाओं और निम्नलिखित पुस्तकोंके प्रकाशकोंके आभारी हैं: 'पाँचवें पुत्रको बापूके आशीर्वाद', 'बापुना पत्रो-७: श्री छगनलाल जोशीने', 'बापुना पत्रो-६: गं॰ स्व॰ गंगाबहेनने', 'बापुना पत्रो-४: मणिबहेन पटेलने', बापुना पत्रो-२: सरदार वल्लभभाईने', 'बापुनी प्रसादी', 'सेल्फ रेस्ट्रेन्ट वर्सेस सेल्फ इंडलजेन्स', 'स्टोरी ऑफ बारडोली'।

अनुसन्धान व सन्दर्भ-सम्बन्धी सुविधाओंके लिए अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी पुस्तकालय, इंडियन कौंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर्स पुस्तकालय, सूचना एवं प्रसारण मन्त्रालयका अनुसंधान एवं सन्दर्भ विभाग (रिसर्च एंड रिफरेंस डिवीजन) और श्री प्यारेलाल नय्यर हमारे धन्यवादके पात्र हैं। प्रलेखोंकी फोटो-नकल तैयार करनेमें मदद देनेके लिए हम सूचना एवं प्रसारण मन्त्रालयके फोटो-विभाग, नई दिल्लीके आभारी हैं।  

पाठकोंको सूचना

हिन्दीकी जो सामग्री गांधीजी के स्वाक्षरोंमें मिली है उसे अविकल रूपमें दिया गया है। किन्तु दूसरों द्वारा सम्पादित उनके भाषण अथवा लेख आदिमें हिज्जोंकी स्पष्ट भूलोंको सुधारकर दिया गया है।

अंग्रेजी और गुजरातीसे अनुवाद करने में अनुवादको मूलके समीप रखनेका पूरा प्रयत्न किया गया है, किन्तु साथ ही भाषाको सुपाठ्य बनानेका भी पूरा ध्यान रखा गया है। छापेकी स्पष्ट भूलें सुधारनेके बाद अनुवाद किया गया है। और मूलमें प्रयुक्त शब्दोंके संक्षिप्त रूप यथासम्भव पूरे करके दिये गये हैं। नामोंको सामान्य उच्चारणके अनुसार ही लिखनेकी नीतिका पालन किया गया है। जिन नामोंके उच्चारणमें संशय था उनको वैसा ही लिखा गया है जैसा गांधीजी ने अपने गुजराती लेखोंमें लिखा है।

मूल सामग्रीके बीच चौकोर कोष्ठकोंमें दी गई सामग्री सम्पादकीय है। गांधीजी ने किसी लेख, भाषण आदिका जो अंश उद्धृत किया है, वह हाशिया छोड़कर गहरी स्याहीमें छापा गया है, लेकिन यदि कोई ऐसा अंश उन्होंने अनूदित करके दिया है तो उसका हिन्दी अनुवाद हाशिया छोड़कर साधारण टाइपमें छापा गया है। भाषणोंकी परोक्ष रिपोर्ट तथा वे शब्द जो गांधीजी के कहे हुए नहीं हैं, बिना हाशिया छोड़े गहरी स्याही में छापे गये हैं। भाषणों और भेंटकी रिपोर्टोके उन अंशोंमें जो गांधीजी के नहीं हैं कुछ परिवर्तन किया गया है और कहीं-कहीं कुछ छोड़ भी दिया गया है।

शीर्षककी लेखन-तिथि जहाँ उपलब्ध है वहाँ दायें कोनेमें ऊपर दे दी गई है। परन्तु जहाँ वह उपलब्ध नहीं है वहाँ उसकी पूर्ति अनुमानसे चौकोर कोष्ठकों में की गई है और आवश्यक होनेपर उसका कारण स्पष्ट कर दिया गया है। जिन पत्रोंमें केवल मास या वर्षका उल्लेख है उन्हें आवश्यकतानुसार मास या वर्षके अन्तमें रखा गया है। शीर्षकके अन्त में साधन-सूत्रके साथ दी गई तिथि प्रकाशनकी है। गांधीजी की सम्पादकीय टिप्पणियाँ और लेख, जहाँ उनकी लेखन-तिथि उपलब्ध है अथवा जहाँ किसी दृढ़ आधारपर उसका अनुमान किया जा सका है, वहाँ लेखन-तिथिके अनुसार और जहाँ ऐसा सम्भव नहीं हुआ वहाँ उनकी प्रकाशन-तिथिके अनुसार दिये गये हैं।

साधन-सूत्रोंमें 'एस॰ एन॰' संकेत, साबरमती संग्रहालय, अहमदाबादमें उपलब्ध सामग्रीका; 'जी॰ एन॰', गांधी स्मारक निधि और संग्रहालय, नई दिल्लीमें उपलब्ध कागज-पत्रोंका और 'सी॰ डब्ल्यू॰', सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय (कलेक्टेड वर्क्स ऑफ महात्मा गांधी) द्वारा संगृहीत पत्रोंका सूचक है।

'सत्यना प्रयोगो अथवा आत्मकथा' के अनेक संस्करण होने से उनकी पृष्ठ-संख्याएँ भिन्न हैं, इसलिए हवाला देने में केवल उसके भाग और अध्यायका ही उल्लेख किया गया है।

सामग्रीकी पृष्ठभूमिका परिचय देनेके लिए मूलसे सम्बद्ध कुछ परिशिष्ट भी दिये गये हैं। अन्त में साधन-सूत्रोंकी सूची और इस खण्डसे सम्बन्धित कालकी तारीखवार घटनाएँ भी दी गई हैं।
 

विषय-सूची

भूमिका पांच
आभार ग्यारह
पाठकोंको सूचना बारह
१. जलियाँवाला बाग-स्मारकके लिए अभिलेखका मसविदा (१-७-१९२८)
२. शिक्षा विषयक प्रश्न–५ (१-७-१९२८)
३. शुद्ध व्यवहार (१-७-१९२८)
४. टिप्पणियाँ: व्याख्याकी पूर्ति, प्रोफेसरका बालिकासे विवाह (१-७-१९२८)
५. स्वयंसेवककी कठिनाई (१-७-१९२८)
६. एक सच्चा सेवक (१-७-१९२८)
७. सन्देश: भड़ौच जिला परिषद्को (१-७-१९२८)
८. पत्र: मणिलाल और सुशीला गांधीको (१-७-१९२८)
९. पत्र: गोवर्धनभाई आई॰ पटेलको (१-७-१९२८) १०
१०. पत्र: आर॰ एम॰ देशमुखको (१-७-१९२८) १०
११. पत्र: मुल्कराजको (१-७-१९२८) ११
१२. पत्र: शाह मुहम्मद कासिमको (१-७-१९२८) १२
१३. पत्र: जोधपुर राज्यके मन्त्रीको (१-७-१९२८) १३
१४. तार: जमनादास गांधीको (२-७-१९२८) १३
१५. पत्र: बेचर परमारको (२-७-१९२८) १४
१६. पत्र: रामनारायण पाठकको (२-७-१९२८) १४
१७. पत्र: घनश्यामदास बिड़लाको (२-७-१९२८) १५
१८. पत्र: बहरामजी खम्भाताको (३-७-१९२८) १६
१९. पत्र: वसुमती पण्डितको (३-७-१९२८) १६
२०. पत्र: एन॰ आर॰ मलकानीको (४-७-१९२८) १७
२१. पत्र: श्रीप्रकाशको (४-७-१९२८) १७
२२. पत्र: बी॰ डब्ल्यू॰ टकरको (४-७-१९२८) १८
२३. पत्र: डॉ॰ प्र॰ च॰ घोषको (४-७-१९२८) १९
२४. पत्र: नवाब मसूद जंग बहादुरको (४-७-१९२८) २१
२५. विदेशी माध्यमका अभिशाप (५-७-१९२८) २१
२६. हमारा तम्बाकूका खर्च (५-७-१९२८) २४
२७. एक अमेरिकीकी श्रद्धांजलि (५-७-१९२८) २४
२८. पत्र: भूपेनको (५-७-१९२८) २५
२९. पत्र: मथुरादास त्रिकमजीको (५-७-१९२८) २५
३०. सन्देश: 'हिन्दू'को (६-७-१९२८) २६
३१. पत्र: ए॰ रंगस्वामी अय्यंगारको (६-७-१९२८) २६
३२. पत्र: ई॰ सी॰ डेविकको (६-७-१९२८) २७
३३. पत्र: पी॰ रामचन्द्र रावको (६-७-१९२८) २७
३४. पत्र: एम॰ पी॰ श्रीनिवासन्को (६-७-१९२८) २८
३५. पत्र: समन्दलालको (६-७-१९२८) २९
३६. पत्र: एम॰ एम॰ असलम खाँको (६-७-१९२८) २९
३७. पत्र: आनन्दस्वरूपको (६-७-१९२८) ३०
३८. पत्र: डॉ॰ मु॰ अ॰ अन्सारीको (६-७-१९२८) ३०
३९. पत्र: आर॰ एस॰ कड़कियाको (६-७-१९२८) ३२
४०. पत्र: शौकतअलीको (६-७-१९२८) ३२
४१. पत्र: वसुमती पण्डितको (७-७-१९२८) ३३
४२. पत्र: हरिभाऊ उपाध्यायको (७-७-१९२८) ३३
४३. बन्दरोंका त्रास (८-७-१९२८) ३४
४४. टिप्पणियाँ : विद्यार्थियोंका त्याग, विद्यार्थी क्या करें? वृद्ध-बाल-विवाह, बाल-विधवा, खादीकी फेरी, स्वावलम्बनकी पद्धति (८-७-१९२८) ३५
४५. पत्र: शिवदयाल साहनीको (८-७-१९२८) ३८
४६. पत्र: वसुमती पण्डितको (१०-७-१९२८) ३९
४७. पत्र: हाफिज मुहम्मद अब्दुल शकूरको (१०-७-१९२८) ३९
४८. पत्र: शाह मुहम्मद कासिमको (११-७-१९२८) ४०
४९. पत्र: इंडियन प्रेस लिमिटेडके व्यवस्थापकको (११-७-१९२८) ४०
५०. पत्र: के॰ आर॰ मिड़ेको (११-७-१९२८) ४१
५१. पत्र: बी॰ एम॰ ट्वीडलको (११-७-१९२८) ४१
५२. पत्र: गोवर्धनभाई आई॰ पटेलको (११-७-१९२८) ४२
५३. पत्र: टी॰ प्रकाशम्‌को (११-७-१९२८) ४३
५४. पत्र: शंकरन्को (११-७-१९२८) ४३
५५. पत्र: एस॰ ए॰ सहस्रबुद्धेको (११-७-१९२८) ४४
५६. पत्र: एम॰ बी॰ नियोगीको (११-७-१९२८) ४५
५७. टिप्पणियाँ: सेवाके लिए शिक्षा, काशी विद्यापीठ, क्या हम और भी गरीब होते जा रहे हैं? अखिल भारतीय गो-रक्षा संघ (१२-७-१९२८) ४६
५८. विद्यार्थियोंमें जागृति (१२-७-१९२८) ४८
५९. पत्र: बारबरा बाउरको (१३-७-१९२८) ५०
६०. पत्र: डॉ॰ जोसिया ओल्डफील्डको (१३-७-१९२८) ५०
६१. पत्र: एल॰ क्रेनाको (१३-७-१९२८) ५१
६२. पत्र: एडा रॉसेनग्रीनको (१३-७-१९२८) ५२
६३. पत्र: एच॰ एन॰ मॉरिसको (१३-७-१९२८) ५२
६४. पत्र: सेमुएल एम॰ हसनको (१३-७-१९२८) ५३
६५. पत्र: डब्ल्यू॰ कोल्डस्ट्रीमको (१३-७-१९२८) ५४
६६. पत्र: श्रीमती केमबसको (१३-७-१९२८) ५४
६७. पत्र: आबिदअली जाफरभाईको (१३-७-१९२८) ५५
६८. पत्र: यू॰ के॰ ओझाको (१४-७-१९२८) ५५
६९. पत्र: एस॰ जी॰ वझेको (१४-७-१९२८) ५६
७०. पत्र: बनारसीदास चतुर्वेदीको (१४-७-१९२८) ५७
७१. पत्र: प्रभाशंकर पट्टणीको (१४-७-१९२८) ५७
७२. टिप्पणियाँ: विकार-बिच्छू, वृद्ध-बाल-विवाह या व्यभिचार, आप भला तो जग भला (१५-७-१९२८) ५८
७३. स्नातकके प्रश्न : रेशम और व्याघ्रचर्म, पूंजी और मजदूरी, खादीका आशय, स्नातकसे दो बातें (१५-७-१९२८) ६०
७४. चींटी पर चढ़ाई (१५-७-१९२८) ६३
७५. आल्प्स या हिमालय (१५-७-१९२८) ६४
७६. मानापमानमें समत्वभाव (१५-७-१९२८) ६५
७७. पत्र: मोतीलाल नेहरूको (१५-७-१९२८) ६६
७८. पत्र: वसुमती पण्डितको (१५-७-१९२८) ६७
७९. पत्र: मणिलाल और सुशीला गांधीको (१५-७-१९२८) ६८
८०. पत्र: घनश्यामदास बिड़लाको (१६-७-१९२८) ६९
८१. पत्र: हेमप्रभा दासगुप्तको (१७-७-१९२८) ६९
८२. पत्र: सी॰ एस॰ विश्वनाथ अय्यरको (१८-७-१९२८) ७०
८३. पत्र: के॰ वेंकटप्पैयाको (१८-७-१९२८) ७०
८४. पत्र: सुभाषचन्द्र बोसको (१८-७-१९२८) ७१
८५. पत्र: शौकत अलीको (१८-७-१९२८) ७२
८६. पत्र: विठ्ठलभाई पटेलको (१८-७-१९२८) ७४
८७. पत्र: हरिभाऊ उपाध्यायको (१८-७-१९२८) ७५
८८. दक्षिण आफ्रिकावासी भारतीयोंके लिए (१९-७-१९२८) ७५
८९. असहयोग या सविनय प्रतिरोध (१९-७-१९२८) ७६
९०. सावन्तवाड़ीमें कताई (१९-७-१९२८) ७६
९१. खादीके आनुषंगिक फल (१९-७-१९२८) ७७
९२. पत्र: टी॰ आर॰ फूकनको (१९-७-१९२८) ७८
९३. पत्र: टी॰ प्रकाशम्को (२०-७-१९२८) ७९
९४. पत्र: घनश्यामदास बिड़लाको (२०-७-१९२८) ८०
९५. भेंट: बारडोलीके सम्बन्धमें ए॰ प्रे॰ ऑफ इं॰ से (२०-७-१९२८) ८०
९६. पत्र: शंकरन्को (२१-७-१९२८) ८२
९७. पत्र: जी॰ वी॰ सुब्बारावको (२१-७-१९२८) ८३
९८. पत्र: अहमदाबाद केन्द्रीय जेलके अधीक्षकको (२१-७-१९२८) ८३
९९. तार: राजेन्द्रप्रसादको (२१-७-१९२८ या उसके बाद) ८५
१००. रेशमका निषेध (२२-७-१९२८) ८५
१०१. सरकारकी कुबुद्धि (२२-७-१९२८) ८६
१०२. टिप्पणियाँ: बारडोलीके साथ मेरा सम्बन्ध, चरखेका प्रभाव (२२-७-१९२८) ८८
१०३. पत्र: वसुमती पण्डितको (२२-७-१९२८) ९०
१०४. एक पत्र (२२-७-१९२८) ९०
१०५. सरकारसे एक अनुरोध (२३-७-१९२८) ९१
१०६. तार: मोतीलाल नेहरूको (२३-७-१९२८) ९३
१०७. तार: सुभाषचन्द्र बोसको (२३-७-१९२८) ९४
१०८. पत्र: वल्लभभाई पटेलको (२४-७-१९२८) ९४
१०९. काँटोंका ताज (२६-७-१९२८) ९५
११०. टिप्पणियाँ: श्रीयुत वल्लभभाईका उत्तर, न्यायकी विजय, बिहारमें परदेका चलन, आश्रमका संविधान और नियम, एक भूल-सुधार (२६-७-१९२८) ९६
१११. पत्र: अहमदाबाद केन्द्रीय जेलके अधीक्षकको (२६-७-१९२८) १००
११२. पत्र: हेमप्रभा दासगुप्तको (२७-७-१९२८ के पूर्व) १००
११३. पत्र: सी॰ एफ॰ एन्ड्रयूजको (२७-७-१९२८) १०१
११४. पत्र: जी॰ वी॰ सुब्बारावको (२७-७-१९२८) १०१
११५. पत्र: वसुमती पण्डितको (२७-७-१९२८) १०२
११६. पत्र: हेमप्रभा दासगुप्तको (२७-७-१९२८) १०२
११७. गवर्नरकी धमकी (२९-७-१९२८) १०३
११८. टिप्पणी: स्वयं ही करना पड़ेगा (२९-७-१९२८) १०५
११९. बहिष्कार या असहकार (२९-७-१९२८) १०५
१२०. पत्र: जेठालाल जोशीको (२९-७-१९२८) १०७
१२१. पत्र: वसुमती पण्डितको (२९-७-१९२८) १०७
१२२. पत्र: छगनलाल जोशीको (३०-७-१९२८) १०८
१२३. पत्र: वल्लभभाई पटेलको (३०-७-१९२८) १०८
१२४. तार: सी॰ एफ॰ एन्ड्रयूजको (३०-७-१९२८ को या उसके पश्चात्) १०९
१२५. पत्र: वल्लभभाई पटेलको (३१-७-१९२८) ११०
१२६. पत्र: वसुमती पण्डितको (१-८-१९२८) १११
१२७. पत्र: हरि-इच्छा देसाईको (१-८-१९२८) १११
१२८. पत्र: नारणदास गांधीको (१-८-१९२८) ११२
१२९. रक्षा नहीं, सेवा (२-८-१९२८) ११२
१३०. स्वावलंबनमें ही स्वाभिमान है (२-८-१९२८) ११५
१३१. सत्याग्रहकी मर्यादाएँ (२-८-१९२८) ११६
१३२. टिप्पणियाँ: विदेशोंमें प्रचार, भारतीय जहाजरानी (२-८-१९२८) ११८
१३३. पत्र: मीराबहनको (२-८-१९२८) ११९
१३४. पत्र: वालजी गो॰ देसाईको (२-८-१९२८) १२०
१३५. पत्र: सन्तोक्क गांधीको (२-८-१९२८) १२१
१३६. पत्र: कुसुम देसाईको (२-८-१९२८) १२१
१३७. पत्र: गंगाबहन वैद्यको (२-८-१९२८) १२२
१३८. पत्र: बनारसीदास चतुर्वेदीको (२-८-१९२८) १२२
१३९. बातचीत: बारडोलीमें (२-८-१९२८) १२३
१४०. भूमिका: 'सेल्फ रेस्ट्रेंट वर्सेस सेल्फ इंडल्जेंस' की (३-८-१९२८) १२४
१४१. पत्र: डॉ॰ वि॰ च॰ रायको (३-८-१९२८) १२५
१४२. पत्र: डी॰ एफ॰ मैकक्लीलैंडको (३-८-१९२८) १२५
१४३. पत्र: शौकत अलीको (३-८-१९२८) १२६
१४४. पत्र: जयरामदास दौलतरामको (४-८-१९२८) १२७
१४५. पत्र: चिरंजीवलाल मिश्रको (४-८-१९२८) १२८
१४६. पत्र: विश्वनाथसिंहको (४-८-१९२८) १२८
१४७. पत्र: अब्दुल कयूमको (४-८-१९२८) १२९
१४८. पत्र: भूपेन्द्रनाथ घोषको (४-८-१९२८) १३०
१४९. पत्र: जी॰ रामचन्द्रन्को (४-८-१९२८) १३०
१५०. पत्र: चौधरी मुखतारसिंहको (४-८-१९२८) १३१
१५१. पत्र: डी॰ सी॰ राजगोपालाचारीको (४-८-१९२८) १३१
१५२. पत्र: गिरवरवधररको (४-८-१९२८) १३२
१५३. पत्र: विशनाथ तिक्कूको (४-८-१९२८) १३२
१५४. पत्र: प्यारेलाल चोपड़ाको (४-८-१९२८) १३३
१५५. पत्र: मथुराप्रसादको (४-८-१९२८) १३४
१५६. एक पत्र (४-८-१९२८) १३४
१५७. पत्र: टी॰ के॰ माधवन्को (४-८-१९२८) १३५
१५८. पत्र: अब्बास तैयबजीको (४-८-१९२८) १३५
१५९. एक पत्र (४-८-१९२८) १३६
१६०. पत्र: वसुमती पण्डितको (४-८-१९२८) १३६
१६१. पत्र: कुसुम देसाईको (४-८-१९२८) १३७
१६२. भाषण: सरभोंण में (४-८-१९२८) १३७
१६३. पत्र: मणिबहन पटेलको (४-८-१९२८) १३९
१६४. मगनकाका (५-८-१९२८) १३९
१६५. अभाव रुईका है या उद्यमका? (५-८-१९२८) १४०
१६६. समझौता अथवा लड़ाई? (५-८-१९२८) १४०
१६७. पत्र: मीराबहनको (५-८-१९२८) १४२
१६८. पत्र: वसुमती पण्डितको (५-८-१९२८) १४३
१६९. पत्र: कुसुम देसाईको (५-८-१९२८) १४३
१७०. भाषण: अनुशासनके सम्बन्धमें, रायममें (५-८-१९२८) १४४
१७१. तार: जमनालाल बजाजको (६-८-१९२८) १४४
१७२. पत्र: मीराबहनको (६-८-१९२८) १४५
१७३. पत्र: आश्रमकी बहनोंको (६-८-१९२८) १४५
१७४. पत्र: प्रभाशंकर पट्टणीको (६-८-१९२८) १४६
१७५. पत्र: वसुमती पण्डितको (६-८-१९२८) १४७
१७६. पत्र: कुसुम देसाईको (६-८-१९२८) १४७
१७७. पत्र: रेहाना तैयबजीको (६-८-१९२८) १४८
१७८. पत्र: बेचर परमारको (६-८-१९२८) १४८
१७९. पत्र: मूलचन्द अग्रवालको (६-८-१९२८) १४९
१८०. पत्र: प्रभावतीको (६-८-१९२८) १४९
१८१. पत्र: मीराबहनको (७-८-१९२८) १५०
१८२. पत्र: कुसुम देसाईको (७-८-१९२८) १५०
१८३. पत्र: वसुमती पण्डितको (७-८-१९२८) १५१
१८४. पत्र: गंगाबहन वैद्यको (७-८-१९२८) १५१
१८५. पत्र: मीराबहनको (८-८-१९२८) १५२
१८६. पत्र: कुसुमबहन देसाईको (८-८-१९२८) १५३
१८७. "सब भला" (९-८-१९२८) १५४
१८८. टिप्पणियाँ: स्वर्गीय न्यायमूर्ति अमीर अली, दक्षिण आफ्रिकामें दी गई रियायत, मगनलाल-स्मारक, एक भूल-सुधार (९-८-१९२८) १५५
१८९. पत्र: वसुमती पण्डितको (९-८-१९२८) १५६
१९०. पत्र: मीराबहनको (१०-८-१९२८) १५६
१९९१. पत्र: रॉबर्ट फेजरको (१०-८-१९२८) १५७
१९२. पत्र: चार्ल्स फ्रेड्रिक वेलरको (१०-८-१९२८) १५८
१९३. पत्र: वसुमती पण्डितको (१०-८-१९२८) १५८
१९४. पत्र: ऑलिव डोकको (११-८-१९२८) १५९
१९५. भाषण: वालोडमें (११-८-१९२८) १६०
१९६. निर्बलके बल राम (१२-८-१९२८) १६०
१९७. टिप्पणियाँ: कन्याओंका त्याग, विद्यापीठको बड़ा दान, मगनलाल गांधी-स्मारकको बड़ी सहायता (१२-८-१९२८) १६३
१९८. हमारी जड़ता (१२-८-१९२८) १६४
१९९. यन्त्रोंका उपयोग (१२-८-१९२८) १६५
२००. पत्र: मणिलाल और सुशीला गांधीको (१२-८-१९२८) १६६
२०१. भाषण: बारडोलीमें-१ (१२-८-१९२८) १६७
२०२. भाषण: बारडोलीमें-२ (१२-८-१९२८) १७०
२०३. भाषण: सूरतमें (१२-८-१९२८) १७६
२०४. पत्र: प्रभावतीको (१३-८-१९२८ के पूर्व) १७९
२०५. तार: नानाभाई मशरूवालाको (१३-८-१९२८) १७९
२०६. पत्र: किशोरलाल मशरूवालाको (१३-८-१९२८) १८०
२०७. पत्र: नीलकण्ठ मशरूवालाको (१३-८-१९२८) १८०
२०८. पत्र: सुभाषचन्द्र बोसको (१४-८-१९२८) १८१
२०९. पत्र: डॉ॰ सुरेशचन्द्र बनर्जीको (१४-८-१९२८) १८१
२१०. पत्र: सतीशचन्द्र दासगुप्तको (१४-८-१९२८) १८२
२११. पत्र: आर॰ बी॰ ग्रेगको (१४-८-१९२८) १८२
२१२. पत्र: गिरधारीलालको (१५-८-१९२८) १८३
२१३. पत्र: जेठालाल जोशीको (१५-८-१९२८) १८४
२१४. पत्र: वसुमती पण्डितको (१५-८-१९२८) १८४
२१५. पत्र: बेचर परमारको (१५-८-१९२८) १८५
२१६. पत्र: तुलसी मेहरको (१५-८-१९२८) १८५
२१७. दक्षिण आफ्रिकी प्रमार्जन योजना (१६-८-१९२८) १८६
२१८. समयका संकेत (१६-८-१९२८) १८६
२१९. नेहरू रिपोर्ट (१६-८-१९२८) १८८
२२०. टिप्पणियाँ: बारडोली कोषमें चन्दा देनेवालों के लिए, दक्षिण आफ्रिकासे मिला चन्दा (१६-८-१९२८) १९१
२२१. हमारी जेलें (१६-८-१९२८) १९१
२२२. पत्र: मोतीलाल नेहरूको (१६-८-१९२८) १९२
२२३. पत्र: नानाभाई मशरूवालाको (१६-८-१९२८) १९३
२२४. भाषण: अहमदाबादमें (१६-८-१९२८) १९३
२२५. तार: राजेन्द्रप्रसादको (१६-८-१९२८ या उसके पश्चात्) १९५
२२६. पत्र: सी॰ ए॰ एलेक्जेंडरको (१८-८-१९२८) १९५
२२७. पत्र: उर्मिलादेवीको (१८-८-१९२८) १९६
२२८. धर्मके नाम पर अधर्म (१९-८-१९२८) १९६
२२९. शास्त्रके अनुकूल (१९-८-१९२८) १९७
२३०. एक अज्ञात सेवकका देहान्त (१९-८-१९२८) १९७
२३१. राज्यसत्ता बनाम लोकसत्ता (१९-८-१९२८) १९८
२३२. हिन्दू धर्मकी ब्राह्मसमाज द्वारा की हुई सेवा (२०-८-१९२८) १९९
२३३. पत्र: मोतीलाल नेहरूको (२१-८-१९२८) २०४
२३४. पत्र: बहरामजो खम्भाताको (२१-८-१९२८) २०५
२३५. 'सच्ची पूँजी और झूठी पूँजी' (२३-८-१९२८) २०६
२३६. सभीकी नजर लखनऊपर (२३-८-१९२८) २०६
२३७. टिप्पणियाँ: हिन्दी-हिन्दुस्तानी, बारडोली - शान्तिकी विजय (२३-८-१९२८) २०८
२३८. पत्र: जोसिया ओल्डफील्डको (२४-८-१९२८) २१०
२३९. पत्र: रेवरेंड बी॰ द लिग्टको (२४-८-१९२८) २१०
२४०. पत्र: सी॰ एफ॰ एन्ड्रयूजको (२४-८-१९२८) २११
२४१. पत्र: सर डैनियल हैमिल्टनको (२४-८-१९२८) २१२
२४२. पत्र: विलियम एच॰ डैनफोर्थको (२४-८-१९२८) २१२
२४३. पत्र: वसुमती पण्डितको (२५-८-१९२८) २१३
२४४. पत्र: छगनलाल जोशीको (२५-८-१९२८) २१४
२४५. सत्याग्रहका उपयोग (२६-८-१९२८) २१४
२४६. टिप्पणियाँ: मैट्रिकुलेटोंका टिड्डी-दल, प्राइमस स्टोवसे आग (२६-८-१९२८) २१६
२४७. पत्र: टी॰ प्रकाशमको (२६-८-१९२८) २१८
२४८. पत्र: च॰ राजगोपालाचारीको (२६-८-१९२८) २१८
२४९. पत्र: जेठालाल जोशीको (२६-८-१९२८) २१९
२५०. पत्र: मणिलाल और सुशीला गांधीको (२७-८-१९२८) २१९
२५१. पत्र: वसुमती पण्डितको (२७-८-१९२८) २२०
२५२. पत्र: पेरिन कैप्टेनको (२८-८-१९२८) २२०
२५३. पत्र: एमा हार्करको (२८-८-१९२८) २२१
२५४. पत्र: एन॰ सी॰ बारदोलाईको (२८-८-१९२८) २२२
२५५. पत्र: वरदाचारीको (२८-८-१९२८) २२३
२५६. पत्र: आर॰ दोराइस्वामीको (२८-८-१९२८) २२३
२५७. पत्र: बी॰ जी॰ हॉनिमनको (२८-८-१९२८) २२४
२५८. पत्र: सतीशचन्द्र दासगुप्तको (२८-८-१९२८) २२५
२५९. पत्र: के॰ एस॰ कारन्तको (२८-८-१९२८) २२६
२६०. पत्र: रोहिणी पूर्वयाको (२८-८-१९२८) २२६
२६१. यूरोप जानेवालो, सावधान! (३०-८-१९२८) २२७
२६२. टिप्पणियाँ: खादीके लिए एक विज्ञापन-विभागकी आवश्यकता, मैसूर राज्यमें चरखा, बैलोंके प्रति अत्याचार, खादीधारियोंवाला उच्च विद्यालय, बरार – १८९७ में, सहकारी खादी-क्रय, चन्देकी प्राप्तिकी सूचना (३०-८-१९२८) २२९
२६३. तार: मोतीलाल नेहरूको (३१-८-१९२८) २३३
२६४. पत्र: हरदयाल नागको (३१-८-१९२८) २३३
२६५. पत्र: वसुमती पण्डितको (३१-८-१९२८) २३४
२६६. पत्र: मणिलाल और सुशीला गांधीको (३१-८-१९२८के पश्चात्) २३५
२६७. पत्र: जुगलकिशोरको (१-९-१९२८) २३५
२६८. पत्र: रेवरेंड बी॰ डब्ल्यू॰ टकरको (१-९-१९२८) २३६
२६९. शिक्षामें अहिंसा (२-९-१९२८) २३८
२७०. टिप्पणियाँ: वरकी कीमत, साधुसे कष्ट, क्या यह धर्म है? (२-९-१९२८) २४०
२७१. ग्राम-शिक्षाकी योजना (२-९-१९२८) २४१
२७२. पत्र: मथुरादास त्रिकमजोको (२-९-१९२८) २४३
२७३. पत्र: ब्रजकृष्ण चाँदीवालाको (२-९-१९२८) २४३
२७४. उत्कलकी सहायता करें (६-९-१९२८) २४४
२७५. लखनऊके बाद (६-९-१९२८) २४६
२७६. हमारी गरीबी (६-९-१९२८) २४८
२७७. पत्र: जॉन हेन्स होम्सको (७-९-१९२८) २५०
२७८. पत्र: सी॰ एफ॰ एन्ड्रयूजको (७-९-१९२८) २५१
२७९. पत्र: सतीशचन्द्र दासगुप्तको (७-९-१९२८) २५२
२८०. पत्र: क॰ सदाशिवरावको (७-९-१९२८) २५३
२८१. पत्र: धनगोपाल मुखर्जीको (७-९-१९२८) २५३
२८२. पत्र: हे॰ सॉ॰ लि॰ पोलकको (७-९-१९२८) २५४
२८३. भाषण: गूंगों और बहरोंकी शालामें (७-९-१९२८) २५५
२८४. पत्र: एम॰ जफरुलमुल्कको (८-९-१९२८) २५६
२८५. पत्र: श्रद्धा चैतन्य ब्रह्मचारीको (८-९-१९२८) २५७
२८६. पत्र: आर॰ डी॰ प्रभुको (८-९-१९२८) २५८
२८७. पत्र: पी॰ ए॰ वाडियाको (८-९-१९२८) २५८
२८८. सन्देश: ‘खादी-विजय' को (८-९-१९२८) २५९
२८९. पत्र: गंगाधररावको (८-९-१९२८) २५९
२९०. पत्र: चिन्तामणि ब॰ खाडिलकरको (८-९-१९२८) २६०
२९१. बालक क्या समझें? (९-९-१९२८) २६०
२९२. लखनऊ (९-९-१९२८) २६२
२९३. सूरत जिलेमें मद्य-निषेध (९-९-१९२८) २६४
२९४. राष्ट्रीय छात्रालयोंमें पंक्ति-भेद? (९-९-१९२८) २६५
२९५. टिप्पणी: जीवन्त चक्कीकी उपेक्षा (९-९-१९२८) २६६
२९६. धार्मिक शिक्षा (९-९-१९२८) २६७
२९७. पत्र: जयरामदास दौलतरामको (९-९-१९२८) २६८
२९८. पत्र: जी॰ रामचन्द्रन्को (९-९-१९२८) २६९
२९९. पत्र: हूगो बुशरको (९-९-१९२८) २६९
३००. पत्र: कृष्णदासको (१०-९-१९२८) २७०
३०१. पत्र: बालकृष्ण भावेको (१०-९-१९२८) २७०
३०२. भाषण: टॉल्स्टॉय शताब्दी-समारोहके उपलक्ष्यमें (१०-९-१९२८) २७३
३०३. पत्र: छगनलाल जोशीको (१०-९-१९२८के पश्चात्) २८०
३०४. पत्र: व्रजकृष्ण चाँदीवालाको (१२-९-१९२८) २८१
३०५. युद्धके प्रति मेरा दृष्टिकोण (१३-९-१९२८) २८१
३०६. दक्षिण आफ्रिकामें रियायत (१३-९-१९२८) २८४
३०७. टिप्पणियाँ: विदेशोंमें प्रचार और सरोजिनीदेवी, राष्ट्रीय स्त्री-सभा और खादी (१३-९-१९२८) २८४
३०८. पत्र: च॰ राजगोपालाचारीको (१४-९-१९२८) २८६
३०९. पत्र: निरंजन पटनायकको (१४-९-१९२८) २८६
३१०. पत्र: डॉ॰ सु॰ च॰ बनर्जीको (१४-९-१९२८) २८७
३११. पत्र: के॰ एस॰ सुब्रह्मण्यम्को (१४-९-१९२८) २८७
३१२. पत्र: किर्बी पेजको (१४-९-१९२८) २८८
३१३. पत्र: बी॰ द लिग्टको (१४-९-१९२८) २८९
३१४. पत्र: मु॰ अ॰ अन्सारीको (१५-९-१९२८) २८९
३१५. गूंगे-बहरे और अहमदाबाद (१६-९-१९२८) २९०
३१६. खादी प्रचार कोष (१६-९-१९२८) २९१
३१७. टिप्पणियाँ: सरोजिनीदेवी; काकाकी बेचैनी (१६-९-१९२८) २९२
३१८. अन्धश्रद्धा (१६-९-१९२८) २९४
३१९. त्योहार कैसे मनाने चाहिए? (१६-९-१९२८) २९५
३२०. तार: वल्लभभाई पटेलको (१७-९-१९२८) २९६
३२१. तार: पंजाब राजनीतिक सम्मेलनके मंत्रीको (१८-९-१९२८) २९६
३२२. पत्र: सतीशचन्द्र दासगुप्तको (१८-९-१९२८) २९७
३२३. जेलोंमें व्यवहार (२०-९-१९२८) २९७
३२४. मैंने विस्मृत चरखेको कैसे खोजा (२०-९-१९२८) ३००
३२५. सच्ची और झूठी गो-रक्षा (२०-९-१९२८) ३०२
३२६. टिप्पणियाँ: गोधरामें हिन्दू-मुस्लिम झगड़ा, खादीकी कीमतों में रियायत (२०-९-१९२८) ३०२
३२७. तार: अमृतलाल ठक्करको (२०-९-१९२८) ३०३
३२८. तार: वी॰ एस॰ श्रीनिवास शास्त्रीको (२०-९-१९२८) ३०४
३२९. तार: उमर झवेरीको (२०-९-१९२८) ३०४
३३०. पत्र: सी॰ एफ॰ एन्ड्रयूजको (२१-९-१९२८) ३०४
३३१. पत्र: एम॰ आर॰ जयकरको (२१-९-१९२८) ३०५
३३२. पत्र: ई॰ सी॰ डेविकको (२१-९-१९२८) ३०६
३३३. पत्र: चोइथराम पी॰ गिडवानीको (२१-९-१९२८) ३०६
३३४. पत्र: धन्वन्तरिको (२१-९-१९२८) ३०७
३३५. पत्र: कृष्णदासको (२१-९-१९२८) ३०७
३३६. पत्र: एमी टरटोरको (२१-९-१९२८) ३०८
३३७. पत्र: जेठालाल जोशीको (२१-९-१९२८) ३०८
३३८. पत्र: जे॰ एस॰ अकर्तेको (२२-९-१९२८) ३०९
३३९. पत्र: एन॰ लक्ष्मीको (२२-९-१९२८) ३९०
३४०. पत्र: रामानन्द चटर्जीको (२२-९-१९२८) ३१०
३४१. पत्र: भोगीलालको (२२-९-१९२८) ३१०
३४२. अफसरोंका जुल्म (२३-९-१९२८) ३११
३४३. खादीकी स्वावलम्बन पद्धति (२३-९-१९२८) ३१२
३४४. बम्बईका राष्ट्रीय विद्यालय (२३-९-१९२८) ३१३
३४५. सीमन्त इत्यादि सम्बन्धी भोज (२३-९-१९२८) ३१५
३४६. पत्र: नानाभाई मशरूवालाको (२३-९-१९२८) ३१५
३४७. पत्र: शौकत अलीको (२४-९-१९२८) ३१६
३४८. तार: श्यामनारायणको (२५-९-१९२८) ३१७
३४९. तार: चोइथराम पी॰ गिडवानीको (२५-९-१९२८) ३१७
३५०. 'चौंकानेवाले निष्कर्ष' (२७-९-१९२८) ३१८
३५१. बिजोलियामें खादी-कार्य (२७-९-१९२८) ३२१
३५२. अभय आश्रम (२७-९-१९२८) ३२१
३५३. पत्र: मीराबहनको (२८-९-१९२८) ३२२
३५४. 'पावककी ज्वाला' (३०-९-१९२८) ३२३
३५५. कामरोगका निवारण (३०-९-१९२८) ३२७
३५६. गुजरातमें संगीत (३०-९-१९२८) ३२९
३५७. पत्र: मोतीलाल नेहरूको (३०-९-१९२८) ३३०
३५८. भेंट: डब्ल्यू॰ डब्ल्यू॰ हॉलसे (अक्टूबर, १९२८ के पूर्व) ३३१
३५९. भाषण: एनी बेसेंटके जन्म-दिवसपर, अहमदाबादमें (१-१०-१९२८) ३३३
३६०. पत्र: श्रीप्रकाशको (२-१०-१९२८) ३३४
३६१. पत्र: प्रफुल्लचन्द्र रायको (२-१०-१९२८) ३३५
३६२. पत्र: नानकचन्दको (२-१०-१९२८) ३३५
३६३. पत्र: एनी बेसेंटको (२-१०-१९२८) ३३६
३६४. पत्र: कल्याणजी मेहता और कान्तिको (२-१०-१९२८) ३३७
३६५. कल्याणजी मेहताको लिखे पत्रका अंश (३-१०-१९२८को या इसके पूर्व) ३३७
३६६. पत्र: मीराबहह्नको (३-१०-१९२८) ३३८
३६७. पत्र: बबन गोखलेको (३-१०-१९२८) ३३९
३६८. पत्र: फूलसिंहको (३-१०-१९२८) ३४०
३६९. भ्रान्त मानवीयता? (४-१०-१९२८) ३४०
३७०. प्राचीन भारत में कताई (४-१०-१९२८) ३४५
३७१. पत्र: एन॰ आर॰ मलकानीको (४-१०-१९२८) ३४६
३७२. पत्र: डी॰ बी॰ कृष्णम्माको (४-१०-१९२८) ३४७
३७३. तार: एनी बेसेंटको (५-१०-१९२८) ३४८
३७४. तार: मोतीलाल नेहरूको (६-१०-१९२८) ३४९
३७५. तार: टी॰ आर॰ फूकनको (६-१०-१९२८) ३४९
३७६. हमारा कर्त्तव्य (७-१०-१९२८) ३५०
३७७. अहिंसाकी समस्याएँ (७-१०-१९२८) ३५२
३७८. पत्र: गो॰ कृ॰ देवधरको (७-१०-१९२८) ३५४
३७९. पत्र: रॉलेंड जे॰ वाइल्डको (७-१०-१९२८) ३५५
३८०. पत्र: मीराबहनको (८-१०-१९२८) ३५६
३८१. पत्र: मीराबहनको (८-१०-१९२८) ३५७
३८२. पत्र: वी॰ ए॰ सुन्दरम्को (८-१०-१९२८) ३५७
३८३. पत्र: सतीशचन्द्र दासगुप्तको (८-१०-१९२८) ३५८
३८४. पत्र: छोटालाल तेजपालको (९-१०-१९२८) ३५९
३८५. पत्र: रेहाना तैयबजीको (१०-१०-१९२८) ३६०
३८६. पत्र: गिरधारीलालको (१०-१०-१९२८) ३६०
३८७. पत्र: बनारसीदास चतुर्वेदीको (१०-१०-१९२८) ३६१
३८८. ईश्वर है (११-१०-१९२८) ३६१
३८९. पत्र: खुर्शेद नौरोजीको (११-१०-१९२८) ३६६
३९०. पत्र: जुगलकिशोरको (११-१०-१९२८) ३६६
३९१. तार: मोतीलाल नेहरूको (१२-१०-१९२८) ३६७
३९२. तार: वल्लभभाई पटेलको (१२-१०-१९२८) ३६८
३९३. तार: मेरठ राजनीतिक सम्मेलनको (१२-१०-१९२८) ३६८
३९४. पत्र: एलिजाबेथ नुडसेनको (१२-१०-१९२८) ३६९
३९५. पत्र: सर एम॰ वी॰ जोशीको (१२-१०-१९२८) ३६९
३९६. पत्र: रूपनारायण श्रीवास्तवको (१२-१०-१९२८) ३७०
३९७ पत्र: एस॰ सुब्रह्मण्यम्को (१२-१०-१९२८) ३७०
३९८. पत्र: आइजक सान्त्राको (१२-१०-१९२८) ३७१
३९९. पत्र: मीराबहनको (१२-१०-१९२८) ३७१
४००. पत्र: हे॰ सॉ॰ लि॰ पोलकको (१२-१०-१९२८) ३७२
४०१. पत्र: सी॰ एफ॰ एन्ड्रयूजको (१२-१०-१९२८) ३७३
४०२. पत्र: सरोजिनी नायडूको (१२-१०-१९२८) ३७४
४०३. पत्र: एस्थर मेननको (१२-१०-१९२८) ३७५
४०४. हानिकर प्रथा (१४-१०-१९२८) ३७५
४०५. बारडोलीकी गायें (१४-१०-१९२८) ३७६
४०६. बेहाल (१४-१०-१९२८) ३७६
४०७. एक समस्या (१४-१०-१९२८) ३७७
४०८. पत्र: प्रभाशंकर पट्टणीको (१४-१०-१९२८) ३७९
४०९. पत्र: हरिभाऊ उपाध्यायको (१५-१०-१९२८) ३८०
४१०. पत्र: विपिनबिहारी वर्माकी (१५-१०-१९२८) ३८१
४११. पत्र: रामेश्वरदास पोद्दारको (१५-१०-१९२८) ३८२
४१२. पत्र: ब्रजकृष्ण चांदीवालाको (१५-१०-१९२८) ३८२
४१३. पत्र: करीम गुलामअलीको (१६-१०-१९२८) ३८२
४१४. पत्र: डॉ॰ सी॰ मुत्थुको (१६-१०-१९२८) ३८३
४१५. पत्र: रॉय हॉपकिन्सको (१६-१०-१९२८) ३८४
४१६. पत्र: रुखी गांधीको (१६-१०-१९२८) ३८५
४१७. शास्त्रीका करतब (१८-१०-१९२८) ३८५
४१८. तार: एन॰ सी॰ केलकरको (१८-१०-१९२८) ३८६
४१९. पत्र: पेरिन कैप्टेनको (१८-१०-१९२८) ३८८
४२०. पत्र: एल॰ वी॰ पटनायकको (१८-१०-१९२८) ३८८
४२१. पत्र: यज्ञेश्वर प्रसादको (१८-१०-१९२८) ३८९
४२२. पत्र: वीणा दासको (१८-१०-१९२८) ३८९
४२३. पत्र: उर्मिलादेवीको (१८-१०-१९२८) ३९०
४२४. पत्र: टी॰ आर॰ फूकनको (१८-१०-१९२८) ३९०
४२५. पत्र: महाराजा नाभाको (१८-१०-१९२८) ३९१
४२६. पत्र: मोतीलाल नेहरूको (१८-१०-१९२८) ३९१
४२७. पत्र: मीराबहह्नको (१९-१०-१९२८) ३९२
४२८. तार: मीराबहनको (१९-१०-१९२८) ३९३
४२९. पत्र: बी॰ जी॰ हॉनिमैनको (१९-१०-१९२८) ३९३
४३०. 'ऋषियोंका आश्रम' (२१-१०-१९२८) ३९४
४३१. भोले मजदूर (२१-१०-१९२८) ३९६
४३२. टिप्पणियाँ: सजा कब दी जाये? बोल्शेविज्म, स्वर्गीय दलसुखभाई शाह (२१-१०-१९२८) ३९७
४३३. जैन अहिंसा? (२१-१०-१९२८) ३९९
४३४. पत्र: चक्रवर्ती राजगोपालाचारीको (२१-१०-१९२८) ४०४
४३५. पत्र: रामदास गांधीको (२२-१०-१९२८) ४०५
४३६. पत्र: नानाभाई मशरूवालाको (२२-१०-१९२८) ४०५
४३७. पत्र: मणिलाल और सुशीला गांधीको (२३-१०-१९२८) ४०६
४३८. पत्र: मीराबहनको (२३-१०-१९२८) ४०६
४३९. पत्र: वी॰ एस॰ श्रीनिवास शास्त्रीको (२३-१०-१९२८) ४०७
४४०. पत्र: पेरिन कैप्टेनको (२४-१०-१९२८) ४०८
४४१. पत्र: प्रताप दयालदासको (२४-१०-१९२८) ४०८
४४२. पत्र: सतीशचन्द्र दासगुप्तको (२४-१०-१९२८) ४०९
४४३. 'मृत्यु विश्राम है' (२५-१०-१९२८) ४१३
४४४. दक्षिणमें अकाल (२५-१०-१९२८) ४११
४४५. छुट्टियाँ मनानेका सच्चा तरीका (२५-१०-१९२८) ४१४
४४६. हमने हिन्दुस्तान कैसे गँवाया (२५-१०-१९२८) ४१५
४४७. 'इकॉनॉमिक्स ऑफ खद्दर' (२५-१०-१९२८) ४१६
४४८. सन्देश: साहित्य परिषद्को (२६-१०-१९२८) ४१६
४४९. पत्र: स्वेन्स्का किर्केन्सको (२६-१०-१९२८) ४१६
४५०. पत्र: एफ॰ बी॰ फिशरको (२६-१०-१९२८) ४१७
४५१. पत्र: हैरिएट ऐशब्रुकको (२६-१०-१९२८) ४१८
४५२. पत्र: होरेस हॉल्बीको (२६-१०-१९२८) ४१८
४५३. पत्र: जे॰ बी॰ पेनिंगटनको (२६-१०-१९२८) ४१९
४५४. पत्र: सर डैनियल एम॰ हैमिल्टनको (२६-१०-१९२८) ४१९
४५५. पत्र: डब्ल्यू॰ एच॰ पिटको (२६-१०-१९२८) ४२०
४५६. पत्र: एस॰ गणेशन्को (२६-१०-१९२८) ४२१
४५७. पत्र: मीठूबहन पेटिटको (२६-१०-१९२८) ४२१
४५८. तार: श्रीमती एस॰ आर॰ दासको (२६-१०-१९२८ को या इसके पश्चात्) ४२२
४५९. पत्र: मीराबहनको (२७-१०-१९२८) ४२२
४६०. पत्र: के॰ एस॰ सुब्रह्मण्यम्को (२७-१०-१९२८) ४२३
४६१. पत्र: डी॰ एन॰ बहादुरजीको (२७-१०-१९२८) ४२४
४६२. पत्र: कल्याणजी मेहताको (२७-१०-१९२८) ४२४
४६३. पत्र: रामदास गांधीको (२७-१०-१९२८) ४२५
४६४. दक्षिण में अकाल (२८-१०-१९२८) ४२६
४६५. गुजरात विद्यापीठ (२८-१०-१९२८) ४२६
४६६. वौठाका मेला (२८-१०-१९२८) ४२८
४६७. अहिंसा-प्रकरण (२८-१०-१९२८) ४२९
४६८. विद्यार्थियोंसे प्रश्नोत्तर (२८-१०-१९२८) ४३१
४६९. भाषण: नवीन गुजराती शाला, अहमदाबादमें (२८-१०-१९२८) ४३४
४७०. पत्र: शान्तिकुमार मोरारजीको (२९-१०-१९२८को या उसके पूर्व) ४३५
४७१. पत्र: मीराबहनको (२९-१०-१९२८) ४३६
४७२. पत्र: महादेव देसाईको (२९-१०-१९२८) ४३७
४७३. तार: घ॰ दा॰ बिड़लाको (३०-१०-१९२८) ४३८
४७४. पत्र: मीराबहह्नको (३१-१०-१९२८) ४३८
४७५. पत्र: आर॰ कृष्णय्यरको (३१-१०-१९२८) ४३९
४७६. पत्र: सतीशचन्द्र दासगुप्तको (३१-१०-१९२८) १४०
४७७. पत्र: जे॰ येसुथासेनको (३१-१०-१९२८) १४०
४७८. पत्र: ई॰ सी॰ डेविकको (३१-१०-१९२८) ४४१
४७९. पत्र: एन॰ के॰ एस॰ नौलखाको (३१-१०-१९२८) ४४२
४८०. पत्र: जैकब सॉरिसको (३१-१०-१९२८) ४४२
परिशिष्टांश
१. पत्र: जवाहरलाल नेहरूको (३-७-१९२८) ४४३
२. पत्र: जवाहरलाल नेहरूको (२९-७-१९२८) ४४४
परिशिष्ट
१. बारडोली रिपोर्ट ४४५
२. बारडोली समझौता ४४७
३. दक्षिण आफ्रिकी माफी ४४९
४. सच्ची गोरक्षा ४५५
सामग्रीके साधन-सूत्र ४५९
तारीखवार जीवन-वृत्तान्त ४६०
शीर्षक-सांकेतिका ४६२
सांकेतिका ४६७

यह कार्य भारत में सार्वजनिक डोमेन है क्योंकि यह भारत में निर्मित हुआ है और इसकी कॉपीराइट की अवधि समाप्त हो चुकी है। भारत के कॉपीराइट अधिनियम, 1957 के अनुसार लेखक की मृत्यु के पश्चात् के वर्ष (अर्थात् वर्ष 2024 के अनुसार, 1 जनवरी 1964 से पूर्व के) से गणना करके साठ वर्ष पूर्ण होने पर सभी दस्तावेज सार्वजनिक प्रभावक्षेत्र में आ जाते हैं।


यह कार्य संयुक्त राज्य अमेरिका में भी सार्वजनिक डोमेन में है क्योंकि यह भारत में 1996 में सार्वजनिक प्रभावक्षेत्र में आया था और संयुक्त राज्य अमेरिका में इसका कोई कॉपीराइट पंजीकरण नहीं है (यह भारत के वर्ष 1928 में बर्न समझौते में शामिल होने और 17 यूएससी 104ए की महत्त्वपूर्ण तिथि जनवरी 1, 1996 का संयुक्त प्रभाव है।