सामग्री पर जाएँ

भ्रमरगीत-सार/२३७-ऊधो! अँखियाँ अति अनुरागी

विकिस्रोत से

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १७०

 

राग कान्हरो
ऊधो! अँखियाँ अति अनुरागी।

इकटक मग जोवति अरु रोवति, भूलेहु पलक न लागी॥
बिन पावस पावस ऋतु आई देखत हौ बिदमान।
अब धौं कहा कियो चाहत हौ? छाँड़हु नीरस ज्ञान॥
सुनु प्रिय सखा स्यामसुन्दर के जानत सकल सुभाव।
जैसे मिलैं सूर प्रभु हमको सो कछु करहु उपाव॥२३७॥