भ्रमरगीत-सार/६४-निर्गुन कौन देस को बासी

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राग सारंग
निर्गुन कौन देस को बासी?

मधुकर! हँसि समुझाय, सौंह दै बूझति साँच, न हाँसी॥

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को है जनक, जननि को कहियत, कौन नारि, को दासी?
कैसो बरन भेस है कैसो केहि रस में अभिलासी॥
पावैगो पुनि कियो आपनो जो रे! कहैगो गाँसी[१]
सुनत मौन ह्वै रह्यो ठग्यो सो सूर सबै मति नासी॥६४॥

  1. गाँसी=गाँस या कपट की बात, चुभनेवाली बात।