हिंदी रसगंगाधर/विषय-सूची
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विषय-सूची
विषय-सूची
विषय | पृष्ठाङ्क | विषय | पृष्ठाङ्क |
मङ्गलाचरण | ३ | वाच्य चित्रों को किस भेद में समझना चाहिए? | ४९ |
गुरु-वन्दना | ४ | अधम काव्य | ४९ |
प्रबन्ध-प्रशंसा | ५ | अधमाधम भेद क्यों नहीं माना जाता | ५० |
अन्य निबन्धों से विशेषता | ७ | प्राचीनों के मत का खण्डन | ५० |
निर्माता और निबन्ध का परिचय | ८ | शब्द अर्थ दोनों चमत्कारी हो तो किस भेद मे समावेश करना चाहिए? | ५२ |
शुभाशंसा | ८ | ध्वनिकाव्य के भेद | ५४ |
काव्य का लक्षण | ९ | रस का स्वरूप और उसके विषय में ग्यारह मत | ५५ |
काव्य का कारण | १९ | प्रधान लक्षण | ५५ |
काव्यों के भेद | २५ | १-अभिनव गुप्ताचार्य और मम्मट भट्ट का मत | ५५ |
उत्तमोत्तम काव्य | २६ | (क) | ५५ |
उत्तम काव्य | ४२ | (ख) | ५९ |
उत्तमोत्तम और उत्तम भेदों में क्या अन्तर है? | ४५ | (ग) | ६१ |
चित्र-मीमांसा के उदाहरण का खंडन | ४५ | ||
मध्यम काव्य | ४८ |
विषय | पृष्ठांक | विषय | पृष्ठांक |
२–भट्टनायक का मत | ६३ | स्थायी भाव | ८४ |
३–नवीन विद्वानों का मत | ६७ | रसों और स्थायी भावों का भेद | ८५ |
४–अन्य मत | ७३ | ये स्थायी क्यों कहलाते हैं? | ८५ |
५–एक दल (भट्ट लोल्लट इत्यादि) का मत | ७६ | स्थायी भावों के लक्षण | ८८ |
६–कुछ विद्वानों (श्री शंकुक प्रभृति) का मत है | ७७ | १ रति | ८८ |
७–कितने ही कहते हैं | ७७ | २ शोक | ८८ |
८–बहुतेरों का कथन है | ७७ | ३ निर्वेद | ८९ |
९–इनके अतिरिक्त कुछ लोग कहते हैं | ७७ | ४ क्रोध | ८९ |
१०–दूसरे कहते हैं | ७८ | ५ उत्साह | ९० |
११–तीसरे कहते हैं | ७८ | ६ विस्मय | ९० |
पूर्वोक्त मतों के अनुसार भरतसूत्र की व्याख्याएँ | ७८ | ७ हास | ९० |
विभावादिकों में से प्रत्येक को रस-व्यञ्जक क्यों नहीं माना जाता | ८० | ८ भय | ९० |
रस कौन-कौन कितने हैं | ८२ | ९ जुगुप्सा | ९१ |
विभाव, अनुभाव और व्यभिचारी भाव | ९१ | ||
विभावादि के कुछ उदाहरण | ९१ | ||
रसों के अवांतर भेद और उदाहरण आदि | ९३ |
विषय | पृष्ठांक | विषय | पृष्ठांक |
शृङ्गार रस | ९३ | विरोधी रस के वर्णन की आवश्यकता | १३७ |
करुणरस | ९७ | रस-वर्णन में दोष | १३९ |
शान्तरस | ९७ | अनौचित्य | १४२ |
रौद्ररस | १०० | अनौचित्य से रस की पुष्टि | १४६ |
वीर-रस | १०४ | गुण | १४७ |
अद्भुत रस | ११७ | अत्यन्त प्राचीन आचार्यों का मत | १५३ |
हास्यरस | ११९ | शब्द-गुण | १५३ |
हास्य के भेद | १२० | श्लेष | १५३ |
भयानक रस | १२२ | प्रसाद | १५४ |
बीभत्स रस | १२३ | समता | १५५ |
'हास्य' और 'जुगुप्सा' का आश्रय कौन होता है? | १२४ | माधुर्य | १५५ |
रसालङ्कार | १२५ | सुकुमारता | १५६ |
ये 'असंलक्ष्यक्रमव्यंग्य' क्यों कहलाते हैं? | १२६ | अर्थव्यक्ति | १५६ |
रस नौ ही क्यों हैं? | १२६ | उदारता | १५७ |
रसों का परस्पर अविरोध और विरोध | १२८ | ओज | १५८ |
विरुद्ध रसों का समावेश | १२९ | कान्ति | १५९ |
अन्य प्रकार से विरोध दूर करने की युक्ति | १३४ | समाधि | १५९ |
अर्थगुण | १६० |
विषय | पृष्ठांक | विषय | पृष्ठांक |
श्लेष | १६० | भाव | २०२ |
प्रसाद | १६१ | भाव का लक्षण | २०२ |
समता | १६२ | भाव किस तरह ध्वनित होते हैं? | २०६ |
माधुर्य | १६३ | भावो के व्यंजक कौन हैं? | २०७ |
सुकुमारता | १६४ | भावो की गणना | २०८ |
अर्थव्यक्ति | १६५ | 'वात्सल्य' रस नही है | २०८ |
उदारता | १६६ | १–हर्ष | २०९ |
ओज | १६६ | २–स्मृति | २१० |
कान्ति | १७१ | ३–व्रोडा (लज्जा) | २१४ |
समाधि | १७१ | ४–मोह | २१६ |
अन्य आचार्यों का मत | १७२ | ५–धृति | २१८ |
गुण २० न मानकर ३ ही मानने चाहिए | १७२ | ६–शङ्का | २१९ |
माधुर्य-व्यञ्जक रचना | १७६ | ७–ग्लानि | २२० |
ओजो-व्यञ्जक रचना | १७८ | ८–दैन्य | २२२ |
प्रसाद-व्यञ्जक रचना | १७९ | ९–चिन्ता | २२४ |
रचना के दोष | १८२ | १०–मद | २२६ |
साधारण दोष | १८२ | ११–श्रम | २२९ |
विशेष दोष | १८९ | १२–गर्व | २३१ |
संग्रह | १९९ | १३–निद्रा | २३२ |
१४–मति | २३३ |
विषय | पृष्ठांक | विषय | पृष्ठांक |
१५–व्याधि | २३४ | भाव ३४ ही क्यों हैं? | २६८ |
१६–त्रास | २३५ | रसाभास | २६९ |
१७–सुप्त | २३७ | रसाभास रस ही है अथवा उससे भिन्न? | २७० |
१८–विबोध | २३९ | विप्रलम्भाभास | २७६ |
१९–अमर्ष | २४२ | भावाभास | २७८ |
२०–अवहित्थ | २४३ | भावशान्ति | २८० |
२१–उग्रता | २४५ | भावोदय | २८१ |
२२–उन्माद | २४७ | भावसन्धि | २८२ |
२३–मरण | २४८ | भावशबलता | २८३ |
२४–वितर्क | २५० | शबलता के विषय में विचार | २८४ |
२५–विषाद | २५१ | भावशान्ति आदि की ध्वनियों में भाव प्रधान होते हैं, अथवा शान्ति आदि? | २८६ |
२६–औत्सुक्य | २५३ | रसों की शान्ति आदि की ध्वनियाँ क्यों नहीं होतीं? | २९१ |
२७–आवेग | २५४ | रस भाव आदि अलक्ष्य क्रम ही हैं अथवा लक्ष्य क्रम भी | २९१ |
२८–जड़ता | २५५ | ||
२९–आलस्य | २५७ | ||
३०–असूया | २५९ | ||
३१–अपस्मार | २६२ | ||
३२–चपलता | २६३ | ||
३३–निर्वेद | २६५ | ||
३४–देवता आदि के विषय में रति | २६६ |
विषय | पृष्ठांक | विषय | पृष्ठांक |
ध्वनियों के व्यंजक | २९६ | प्रबंधध्वनि | २९९ |
पदध्वनि | २९६ | पदैकदेशध्वनि | २९९ |
वर्ण, रचना ध्वनि | २९७ | रागादिकों की भी व्यंजकता | ३०० |
वाक्यध्वनि | २९९ | एक विचार | ३०० |