खोज परिणाम

  • समालोचनादर्श हिंदी-साहित्य-विमर्श साधना प्राचीन साहित्य अंतस्तल मेघदूत-विमर्श उद्भ्रांत प्रेम हिंदी-मेघदूत-विमर्श तरंगिणी "विहारी की सतसई (पद्म नवजीवन वा प्रेमलहरी...
    ५८७ B (२७९ शब्द) - १६:१९, ९ जुलाई २०२३
  • उसी प्रकार की रचना की ओर झुके; पीछे भावात्मक गद्य की कई शैलियों की ओर। 'उद्भ्रांत प्रेम' उस विक्षेप शैली पर लिखा गया था जिसमें भावावेश द्योतित करने के लिये...
    ५५० B (१,०७६ शब्द) - १७:४०, २७ जुलाई २०२३
  • रहा तिमिर-गर्भ में नित्य, दीन जीवन का यह संगीत। क्या कहूं, क्या हूँ मैं उद्भ्रांत? विवर में नील गगन के आज! वायु की भटकी एक तरंग, शून्यता का उजड़ा-सा राज।...
    १७३ B (१,२८६ शब्द) - ००:५३, २२ अक्टूबर २०१९
  • का अर्थ समझने में कृतकार्य नहीं हो रहे थे। उनकी बुद्धि उद्भ्रान्त हो गई थी और उस उद्भ्रान्ति की संशय-स्वरूपा अग्नि को हृदय में धारण करके वे उस उद्यान...
    ५७६ B (५,६५१ शब्द) - ०५:२३, २९ जनवरी २०२२
  • रहा तिमिर-गर्भ में नित्य, दीन जीवन का यह संगीत। क्या कहूं, क्या हूँ मैं उद्भ्रांत? विवर में नील गगन के आज! वायु की भटकी एक तरंग, शून्यता का उजड़ा-सा राज।...
    १९६ B (१,२८४ शब्द) - ०९:३५, १५ अक्टूबर २०१९
  • है। उन्होने गायत्री के कान भरे, मेरी और से मन मैला किया। कभी-कभी उन्हें उद्भ्रान्त वासनाओं पर भी क्रोध आता और वह इस नैराश्य मे प्रारब्ध के [ ३४७ ]कायल हो...
    २८९ B (१,७०६ शब्द) - २०:३०, १४ जनवरी २०२४
  • सताती। होती आके उदय उर मे घोर उद्विग्नताये। देखे जाते सकल ब्रज के लोग उद्भ्रान्त से थे॥२॥ ⁠खाते पीते गमन करते बैठते और सोते। ⁠आते जाते वन अवनि मे गोधनो...
    ३५१ B (२,८८२ शब्द) - १६:५४, १२ अक्टूबर २०२०
  • उद्‌गम––वैवाहिक प्रथा तोड़ देनी चाहिए? यह तो साफ़-साफ़ दायित्व छोड़कर उद्‌भ्रान्त जीवन बिताने की घोषणा होगी। परस्पर सुख-दुख में [ १९ ] गला बाँधकर एक दूसरे...
    २७२ B (७,२३९ शब्द) - ०८:०२, १९ जुलाई २०२०
  • ॥६७।। जो मोहेगी जतन मिलने का न कैसे करेंगी। वे होवेगी न यदि सफला क्यो न उद्भ्रान्त होगी। ऊधो पूरी जटिल -इनकी हो गई है समस्या । यो तो सारी ब्रज - अवनि ही...
    ३६९ B (४,६३८ शब्द) - ०५:३२, १६ अक्टूबर २०२०
  • क्योंकि सत्यस विलग रहनेवाला भाव गाँजे या शराबके समान मनुष्यको अकर्मण्य और उद्भ्रान्त बना देता है। परन्तु विशेष अवस्थामें प्रकृत वास्तविक तत्त्वका निर्णय करना...
    २९९ B (६,४३६ शब्द) - १७:०१, २५ नवम्बर २०२१
  • रहे थे और वही रास्ता पतनकी उपत्यका है। हम लोगोंके वे गुरुदेव आजकल के इस उद्भ्रान्त कोलाहलमें नहीं हैं। वे मानमर्य्यादाकी इच्छा नहीं करते। वे कोई बड़ा पद...
    ३८८ B (११,१६४ शब्द) - १७:०६, २५ नवम्बर २०२१