भ्रमरगीत-सार/१३१-ऊधो! जोग सुन्यो हम दुर्लभ

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ऊधो! जोग सुन्यो हम दुर्लभ।

आपु कहत हम सुनत अचंभित जानत हौ जिय सुल्लभ॥
रेख न रूप बरन जाके नहिं ताकों हमैं बतावत।
अपनी कहो[१] दरस वैसे को तुम कबहूँ हौ पावत?
मुरली अधर धरत है सो, पुनि गोधन बन बन चारत?
नैन बिसाल भौंह बंकट[२] करि देख्यो कबहुँ निहारत?

  1. अपनी कहो=अपना हाल बताओ।
  2. बंकट=टेढ़ी, वक्र।