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  • [ ५३ ]  परिच्छेदः ५३ बन्धुता एकैव बन्धुता यत्र स्नेहस्थैर्य विलोक्यते। अन्यथा विपदां चक्रे क्व च तस्यास्ति दर्शनम्॥१॥ गुणाढ्ये यत्र बन्धूनां स्नेहो नैवापचीयते।...
    ४९१ B (१३१ शब्द) - ०१:०९, १७ अगस्त २०२१
  • जन्ममृत्युमहाद्वारं मुद्रितं तेन साधुना॥८॥ सुखं धर्मसमुद्‌भूतं सुख प्राहुर्मनीषिणः। अन्यथा विषयोद्‌भूतं लज्जादुःखानुबन्धि तत्॥९॥ कार्य तदेव कर्तव्यं यत् सदा धर्मसंभृतम्।...
    ४७६ B (१२२ शब्द) - १३:१२, १० जुलाई २०२१
  • सुन्दरीणामतो भिन्ना लज्जा भवति सर्वथा॥१॥ इयं लज्जैव मर्त्येषु वर्तते भेदकारिणी। अन्यथा सदृशाः सर्वे वस्त्रसन्तानभुक्तिभिः॥२॥ वसन्ति सर्वदेहेऽस्मिन् प्राणा यद्यपि...
    ४६९ B (१२७ शब्द) - १०:३०, १ सितम्बर २०२१
  • कि लोके वर्तते गुणशालिनः॥७॥ विजैः प्रदर्शितं कार्यमाशु कुर्वीत भृपतिः। अन्यथा जन्मपर्यन्तं प्रायश्चित्तं न विद्यते॥८॥ प्रमादेन यथा भद्र व्यामोहो मानसे...
    ४५३ B (१२७ शब्द) - ०१:१४, १७ अगस्त २०२१
  • घोरत्वं यन्मांसं भुज्यते जनै:॥४॥ नियमेन मनुष्यस्य मांसत्यागे सुजीवनम्। अन्यथा नरकद्वारं न निर्गन्तुमनावृतम्॥५॥ यदि नैव भवेल्लोके मांसास्वादस्य कामना।...
    ३६१ B (१२८ शब्द) - ११:४३, १९ जुलाई २०२१
  • मोघाः साहाययं प्राप्य भूर्यपि॥८॥ उपकारोऽपि कर्तव्यः स्वभावं वीक्ष्य देहिनः। अन्यथा स्यात् प्रमादेन यातनैव विधायिनः॥९॥ कुरु तान्येव कार्याणि यान्यनिन्द्दनि...
    ४९१ B (१२९ शब्द) - ०८:१८, १५ अगस्त २०२१
  • निजोद्देशेऽशक्यस्याथविमोचनम्॥२॥ न व्यनक्ति निजोद्देशं सिद्धेः पूर्व सुकर्मठः। अलंध्या अन्यथा पुंसो जायन्ते विपदां चयाः॥३॥ कथनं सुलभं लोके यस्य कस्यापि वस्तुनः। यथापद्धति...
    ४५५ B (१२८ शब्द) - १४:१६, १८ अगस्त २०२१
  • पाप-भरे निज कर्म॥४॥ भय से अथवा लोभ से, चलते दुष्ट सुमार्ग। चलते हैं वे अन्यथा, सदा अशुभ ही मार्ग॥५॥ अधम पुरुष पुर ढोल सम, खोलें पर की सैंन। विना कहे पर...
    ३२३ B (४६७ शब्द) - ११:०१, १० सितम्बर २०२१
  • सर्पपाकारं तालतुल्यं स मन्यते॥३॥ दोषाणां त्वं विनाशाय नित्यं भव समुद्यतः। अन्यथा सर्वनाशं ते विधास्यन्तीति निश्चयः॥४॥ भाविदुःखफल भोक्तूं यः पूर्व नैव सज्जितः।...
    ४८३ B (१३६ शब्द) - ०८:०४, १५ अगस्त २०२१
  • भाषा का ग्रहण करने के लिए सदा हिन्दी भाषा का द्वार उन्मुक्त रहना चाहिये, अन्यथा वह परिपुष्ट और विस्तृत होने के स्थान पर निर्वल और संकुचित हो जावेगी। सहृदय...
    ३९३ B (७५८ शब्द) - ००:२३, १२ अक्टूबर २०२०
  • किसी विशेष समझौते की रक्षा के लिए भेजे जायॅगे, तो उन पर तुर्की रा कोई प्रतिबन्ध नहीं लगाया जायगा। अन्यथा दरेदानियाल डमरूमध्य पर तुर्की को पूरा कब्जा है।...
    ५१८ B (३५० शब्द) - १२:१९, ३१ जुलाई २०२१
  • सकता।" सच है, स्वजातीय अथवा आत्मीय जन के विश्वासघात से ही नाश होता है, अन्यथा नहीं। (२) गणिकागणकौ समानधर्मो निजपञ्चाङ्गनिदर्शकावुभौ। जनमानसमोहकारिणौ तौ...
    ४६४ B (४५० शब्द) - १२:०७, २३ जुलाई २०२०
  • कुछ भी कार्य॥७॥ विज्ञप्रदर्शित कार्य को, करे तुरंत ही भूप। शुद्धि न होगी अन्यथा, जीवन भर अनुरूप॥८॥ सुस्ती का जब चित्त में, होवे कुछ भी भान। मिटे उसीसे लोग...
    ४११ B (४२४ शब्द) - १०:१७, ६ सितम्बर २०२१
  • जब, करने को सब अशक्य॥१॥ अहो सयाने भूलकर, करो न आधा कार्य। देगा तुम्हें न अन्यथा, आदर कोई आर्य॥२॥ दुःखसमय भी साथ दे, वह नर गौरववान। सेवानिधि गिरवी धरे, तब...
    ४५१ B (४०१ शब्द) - ११:२२, ८ सितम्बर २०२१
  • प्यारी-चन्द्रसमान॥३॥ दोषों का तुम नाश कर, बनो सदा निर्दोष। सर्वनाश ही अन्यथा, करदेंगे वे दोष॥४॥ भावी दुःखों के लिए, जो न रहे तैयार। अग्नि-पतिन वह घाससम...
    ४८१ B (४१९ शब्द) - ११:२१, ४ सितम्बर २०२१
  • सृष्टि के, चलें उचित सब काम॥१॥ नर के केवल शील में, जीवन का शुभसार। कारण बनता अन्यथा, मानव पृथ्वीभार॥२॥ गायन जिसका हो नहीं, कैसी वह है गीति। निर्मोही वे नेत्र...
    ४८१ B (४३६ शब्द) - १०:१६, ६ सितम्बर २०२१
  • जिसका ऐसा लक्ष्य॥७॥ राजा गुण अनुसार ही, करे बन्धु-सन्मान। दिखें बहुत से अन्यथा, ईष्या की ही खान॥८॥ हटे उदासी-हेतु तो, मिटजावे अनमेल। होते मनकी शुद्धि ही...
    ५५५ B (४४४ शब्द) - १०:१८, ६ सितम्बर २०२१
  • ध्वनित होने से इस काव्य को गुणीभूत व्यंग्य न मानना कुछ भी अभिप्राय नही रखता, अन्यथा काव्यप्रकाशकारादि के दिए हुए "प्रामतरुण तरुण्या श्रादि उदाहरण भी असंगत हो...
    ४१० B (३३४ शब्द) - ००:२६, १२ जुलाई २०२३
  • जो दें त्रास॥५॥ जगत सुखी निर्द्वन्द यदि, कारण आर्यनिवास। दया शान्ति का अन्यथा, क्या होवे आभास॥६॥ नहीं विज्ञ भी श्रेष्ठ है, यदि आचारविहीन। काष्ठदण्ड से...
    ४२९ B (४४२ शब्द) - ११:०६, १० सितम्बर २०२१
  • को, वह है यम का पाश॥४॥ निज शुभ की यदि कामना, कोप करो तो दूर। टूटेगा वह अन्यथा, कर देगा सब धूर॥५॥ जलता वह ही आग में, जो हो उसके पास। क्रोधी का पर वंश भी...
    ४१७ B (४७१ शब्द) - १०:३०, ३ सितम्बर २०२१
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