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  • चतुर सुजान। जे पहिले रँग रंगी स्यामरँग तिन्हैं न चढ़ै रँग आन॥ द्वै लोचन जो विरद किए स्रुति गावत एक समान। भेद चकोर कियो तिनहू में बिधु प्रीतम, रिपु भान॥ [ १३१ ]...
    ५४९ B (९९ शब्द) - ०१:४३, १४ अगस्त २०२०
  • दिनेश तारकेश अलकेश वेश। सहित सुरेश आगे दौर में ढल्यो करे। विधि विधि वेदन सों विरद सुनावे विधि। अप्छरा अनन्त नाच नाच उछल्यो करे। ग्वाल कवि चौरें छत्र पानदान...
    ४२४ B (४५० शब्द) - २१:३३, २२ अप्रैल २०२१
  • नाट्यो धर्म नाम सुन मेरो नरक दिया हठ तारो ।   मोकों ठौर नहीं अब कोऊ अपनो विरद संभारो॥   क्षुद्र पतित तुम तारे रमापति अब न करो जिय गारो।   सूरदास साँचो...
    ६०५ B (३,१०३ शब्द) - १३:०८, १७ दिसम्बर २०२१
  • वे अच्छे ही प्रकाशकों को अपनी पुस्तकें देते हैं औरों के लिए लिखना वे अपने विरद के विरुद्ध समझते हैं। उत्तरी ध्रुव अथवा विकास-सिद्धान्त पर लेख लिखने के लिए...
    ५५० B (३,२२८ शब्द) - ०३:४०, २९ अगस्त २०२१
  • सुनावते दरद को। जैसो भलो तसो पैन मिलतो तुम्हें जो राम। सो मिटि जाती साख रावरे विरद की॥१॥ कवित्त कोऊ कछू मांगे अनुरागे जिय लागे जहाँ। रूप रंग रागे दिनरैन रस...
    ३९६ B (१,८१७ शब्द) - २१:५०, २२ अप्रैल २०२१
  • सति सति सति नानक कह अपने हिरदै देखु समा ले। २-बंधन काटि बिसारे औगुन अपना विरद समाया। होइ कृपाल मात पित न्याई बारक ज्यों प्रति पाया। गुरु सिष राखे गुरु...
    ५२७ B (४,५६० शब्द) - २०:००, ३ अगस्त २०२३
  • शरीर और वेषवाले, वैदेही के स्वयंवर में बरने को बुलाये हैं। बन्दीजन बोले विरद (प्रण) बजाकर (अर्थात् ज़ोर से पुकारकर) अथवा विरुदावली कहकर, अच्छे-अच्छे बाजे...
    ३७१ B (३,२२१ शब्द) - ०८:२५, ५ अगस्त २०२१
  • मामें अति औगुन अधमाता के शैल सुते। तिनकौ न ताको तो मिटेगी बात रंज की। तारक विरद बुझि आपनो जो दीजे मुक्ति। तो रहों समीप करौं सेवा मोद मंज की। ग्वाल कवि जो...
    ४१६ B (३,३३२ शब्द) - २२:०९, २२ अप्रैल २०२१
  • प्रभु (रामचन्द्र) का सेवक है जिसका विरुद (यश) पण्डित लोग वर्णन करते हैं? किस विरद रखने- वाले वीर की बड़े बड़े वैरियों पर धाँक (रौब) है? पृथ्वी, आकाश और पाताल...
    ३४२ B (८,५३९ शब्द) - ०८:४५, ५ अगस्त २०२१
  • करती है और दूसरी से दूर रखती है–– उधो! तुम अति चतुर सुजान। द्वै लोचन जो विरद किए श्रुति गावत एक समान। भेद चकोर कियो तिनहू में विधु प्रीतम, रिपु भान॥ उद्धव...
    ४१७ B (१८,९८५ शब्द) - ०२:५०, ३० जुलाई २०२०
  • लालच के वश होकर जागते रहते हैं। सुख-भोग करनेवाले सुख भोग करने के लिए और विरदी और रोगी शोक के [ २७१ ]कवितावली कारण जागते रहते हैं, परतु मै ( तुलसीदास)...
    ३३१ B (५८,७७८ शब्द) - १४:४३, ५ अगस्त २०२१