कोड स्वराज/भारत और अमेरिका में ज्ञान तक सार्वभौमिक पहुँच, कार्ल मालामुद की टिप्पणियां
भारत और अमेरिका में ज्ञान तक सार्वभौमिक पहुँच, कार्ल मालामुद की टिप्पणियां
धन्यवाद सैम। मुझे खुशी है कि मैं, सैम के साथ अक्टूबर में उस समय जुड़ा जब वे भारत में जगह जगह पर बुद्धिउत्तेजक (brainstorming) भाषण देने के दौरे पर थे। हमने गांधी जी के जन्मदिन पर साबरमती आश्रम में व्याख्यान दिये। इंस्टिच्यूशन ऑफ इंजीनियर्स में, मायो बॉयज कॉलेज, और राजस्थान केन्द्रीय विश्वविद्यालय में भी भाषण दिए। वे जहाँ भी गए वहाँ उनके प्रशंसकों की भीड़ थी। गांधी आश्रम में जब हम कार से बाहर निकले तो लगभग 100 लोगों ने सेल्फी लेने के लिए उन्हें घेर लिया था।
वे पिछले 50 वर्षों से भारत सरकार को अपना योगदान दे रहे हैं, जिसमें सभी गांवों तक टेलिफोन पहुँचाने से लेकर, हाल ही में प्रधानमंत्री को फूड बैंक बनाने की, और अन्य कई अन्य चीजों की सलाह देना भी शामिल है। आज की रात हमें अपना समय देने के लिये आपको शुक्रिया।
मैं, अपना समापन विचार देने से पहले उन लोगों को धन्यवाद देना चाहूँगा जिनके प्रयासों से और जिनके कन्धों पर खड़े होकर हमलोग यहां तक पहुंचे हैं। डिजिटल लाइब्रेरी ऑफ इंडिया की स्थापना, ‘कारनेगी मेलन विश्वविद्यालय के और मिलियन पुस्तक परियोजना (Million Books Project) के अग्रदूत प्रोफेसर राज रेड्डी और डीन ग्लोरिया सेट, क्लेयर (Dean Gloria St. Clair) के प्रयासों के बिना संभव नहीं था।
भारत में डिजिटल लाइब्रेरी ऑफ इंडिया परियोजना के अध्यक्ष प्रतिष्ठित कंप्यूटर वैज्ञानिक प्रोफेसर नारायणस्वामी बालाकृष्णन हैं। डिजिटल लाइब्रेरी ऑफ इंडिया अब भारत सरकार की परियोजना बन चुकी है और देशभर में इसके 25 स्कैन केंद्र हैं। यह एक बड़ा उपक्रम है।
लाइब्रेरी में स्कैन की गई 5,50,000 पुस्तकें हैं, और इंटरनेट आर्काइव में 4,00,000 से अधिक स्पिनिंग उपलब्ध हैं। हम इस परियोजना से जुड़ कर काफी प्रसन्न हैं।
यदि हम भारतीय भाषाओं की बात करें तो इस संग्रह को उत्कृष्ट माना जा सकता है। इसमें 45,000 से अधिक पुस्तकें हिंदी में, 33,000 संस्कृत में, 30,000 बंगला में, और अन्य कई भाषाओं में है। इसमें कुल 50 विभिन्न भाषाओं की पुस्तकें मौजूद हैं।
जब इंटरनेट आर्काइव पर पुस्तकों को डाला जाता है, तो वे पी.डी.एफ फाइलों के अलावा ओ.सी.आर के माध्यम से भी गुजारा होता है।
साथ ही इन पुस्तकों को ऐसे प्रारूपों में बदला जाता है, जिससे पाठक अपने ई-रिडर, किंडल और टैबलेट पर भी इसे पढ़ सके। इस तरह उन्नत तकनीक का प्रयोग करके वे इस संग्रह में किताब खोज सकते हैं, और किताबों के अंर्तगत दी गई चीजों को भी खोज सकते हैं।
हमने इस पुस्तक के संग्रह में मेटाडाटा को सुधारने की कोशिश की है। हमारा एक इंजीनियर इंटरनेट आर्काइव पर शीर्षकों, रचनाकार और अन्य मेटाडाटा फिल्ड के अस्पष्ट मिलानों का परीक्षण करता रहा है। इसके साथ ही प्रत्येक पुस्तक को आई.एस.बी.एन (ISBN) संख्या और ओपन लाइब्रेरी कार्ड कैटलॉग से लिंक करता है।
डिजिटल लाइब्रेरी ऑफ इंडिया के प्रत्येक इकाई के निचले हिस्से में 'समीक्षा के लिए स्थान पायेंगे। अलबर्टा विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित संस्कृत के विद्वान प्रोफेसर डोमिनिक वुज़ास्टिक (Dominik Wujastyk) उस स्थान का प्रयोग, अपनी जानकारी वाली दर्जनों पुस्तकों के उपयुक्त मेटाडाटा को जोड़ने के लिए कर रहे हैं।
आप भी वही काम कर सकते हैं। उदाहरण के लिए यदि आप गुजराती बोलते हैं तो आप 13,000 गुजराती के मूल पाठों को देखें और उनकी समीक्षा वाली स्थान को देखें और हमें यह बतायें कि क्या ये उपयुक्त शीर्षक या लेखक सही है या हमने यह सब गलत किया है। हमें आपकी सहायता चाहिये।
'हिंद स्वराज' इसका दूसरा संग्रह है, यह ऐसी परियोजना है जिसे करने में हमें बहुत आनंद आया। इस परियोजना का शुभारंभ तब हुआ जब मैं कुछ समय पहले सैम से मिलने गया। जब हम बातचीत कर रहे थे, तो उसने अपना लैपटॉप निकाल कर पूछा कि क्या आपके पास पेनड्राइव है?”
मैंने उन्हें एक यू.एस.बी ड्राइव दिया, और हम बातचीत करते रहे। उन्होंने मुझे नौ गीगाबाइट की पी.डी.एफ फाइल दी। मेरे पूछने पर उसने बताया कि “महात्मा गांधी के संकलित कार्यों के 100 खंड, इस नए इलेक्ट्रॉनिक संस्करण में है। सुनकर मैं आश्चर्यचकित हो गया था।
संकलित कार्यों के 100 खंडों का सृजन साबरमती आश्रम में खासकर, दीना पटेल द्वारा किया गया था। उन्होंने स्वयंसेवकों के साथ मिलकर, वर्षों के श्रम के बाद महात्मा गांधी के कार्यों का स्थायी इलेक्ट्रॉनिक संस्करण तैयार किया। वास्तव में यह एक बड़ी उपलब्धि है। फिलहाल वह इन 100 खंडों के हिंदी संस्करण तैयार करने के लिए संसाधनों को इकट्ठा कर रही हैं। मुझे उस समय का इंतजार है जब वह यह काम कर लेंगी। उनके साथ काम करना मेरे लिए सौभाग्य की बात है।
मैंने इस संकलित कार्य को पोस्ट किया और नेट पर इसी तरह के अन्य कार्यों को खोजना प्रारंभ किया। मुझे सरकारी सर्वर पर जवाहर लाल नेहरू का पूरा कार्य मिला लेकिन उसकी रूप-रेखा सही नहीं थी। मैंने उसे पी.डी.एफ फाइल में संकलित किया। उनमें तीन खंड नहीं थे। मैंने उनमें से दो को ढूंढा और उसे स्कैन करके क्रमबद्ध किया। हमने 78 खंडों में से लगभग 77 को पूरा कर लिया है। इसी प्रकार, सरकारी वेब सर्वर पर डॉ. भीमराव अंबेडकर के कार्यों के भी 20 खंड थे। मुझे बताते हुए अत्यंत प्रसन्नता हो रही है कि हमने उन छह खंडों को जोड़ कर इस संकलन को पूरा कर लिया है, जो पहले उपलब्ध नहीं थे। अब यह सेट पूरा हो गया है।
यह संकलन अनेक पुस्तकों से अधिक है। गांधी जी द्वारा आकाशवाणी में दिए गए भाषणों की 129 ऑडियो फाइलें भी इसमें शामिल हैं। मैंने उन ऑडियो फाइलों में से प्रत्येक के अंग्रेजी अनुवाद या रिपोर्ट, संकलित कार्य से निकाला है और उन्हें इस इकाई में शामिल कर लिया है। भाषणों को सुनने के बाद उसके अनुवाद को भी पढ़ा जा सकता है। साथ ही गांधी जी ने पिछले और अगले दिन क्या कहा था, यह जानने के लिए संकलित कार्य पर क्लिक कर सकते हैं। अपने जीवन के अंतिम वर्षों में उन्होंने जो सार्वजनिक भाषण दिए थे उन्हें इसके द्वारा जाना जा सकता है।
गांधीजी की ऑडियो फाइलों के अलावा, इसमें नेहरू, रवींद्रनाथ टैगोर, राजीव गांधी, इंदिरा गांधी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, प्रोफेसर राधाकृष्णन, सरदार पटेल आदि के भी अनेक ऑडियो फाइलें हैं।
मेरी खुशी का एक और कारण यह है कि इस संकलन में वर्ष 1988 में दूरदर्शन पर चलाया जाने वाले कार्यक्रम 'भारत एक खोज' की सभी 53 एपिसोड भी हैं। इसके अलावा 'भारत एक खोज' एक असाधारण किताब है। नेहरू जी ने कहा है कि यह पुस्तक उन्होंने जेल में लिखी थी।
इसके सभी 53 एपिसोड़ों के उपशीर्षक (सबटाइटल्स-subtitle) अंग्रेजी में हैं और हमने हैदराबाद की एक स्टार्टअप कंपनी, ई-भाषा लैंग्वेज सर्विसेज़ (E-Bhasha Language Services) के साथ मिलकर इस पर काम किया है। इसके गांधी और रामायण के छह पड़ों के सबटाइटल्स अब केवल अंग्रेजी भाषा में ही नहीं हैं बल्कि हिंदी, उर्द, पंजाबी और तेलगु भाषाओं में भी उपलब्ध हैं। हमारी यह आशा है कि सभी 53 एपिसोडों के सबटाइटल्स विभिन्न भाषाओं में हों जिससे कि भारत का इतिहास, भारत और विश्वभर के स्कूली बच्चों के लिए उपलब्ध हो सकेगा।
हमारे पास भारत से संबंधित दो और संसाधन हैं।
सबसे पहले मुझे सूचना मंत्रालय के सर्वर पर ऐसे 90,000 चित्र मिले, जिन्हें सार्वजनिक रूप से देखा जा सकता था, लेकिन उनके देखने के तरीके सहज नहीं थे। मैंने उन्हें निकाला और उनमें से ऐसे 12,000 चित्र को चुना, जिनकी गुणवत्ता ज्यादा अच्छी थी और उनका ऐतिहासिक महत्व था और उन्हें श्रेणीबद्ध करके ‘फ्लिकर (Flickr)' पर डाला। यदि आप । रेलगाड़ी, मंदिरों, ग्रामीण भारत , क्रिकेट या नेहरू और इंदिरा गांधी के बचपन के चित्रों को देखना चाहते हैं, तो आप उन सभी को देख सकते हैं।
इसमें ऐसा भी संकलन है, जिस पर मैंने काफी समय लगाया है, वह है भारत का टैक्नीकल पब्लिक सेफ्टी स्टैण्डर्स, 19,000 से अधिक, अधिकारिक भारतीय मानक हैं। आप उन्हें इंटरनेट आर्काइव और मेरे सर्वर law.resource.org पर देख सकते हैं। आज की दुनिया तकनीकी दुनिया है। टैक्नीकल पब्लिक सेफ्टी स्टैण्डर्स में नेशनल बिल्डिंग कोड ऑफ इंडिया, स्टैण्डर्स फॉर द सेफ्टी ऐप्लिकेशन ऑफ पेस्टिसाइड्ज़,स्टैण्डर्स फॉर प्रोसेसिंग स्पाइसेज एंड फुड, स्टैण्डर्स फॉर द प्रौपर ऑपरेशन ऑफ टेक्सटाइल मशीन्स, द सेफ्टी ऑफ ब्रिजेज एंड रोड, आदि शामिल हैं।
इनमें से कई मानक कानून के रूप में हैं या उनको मानना कानूनन अनिवार्य है। ये सभी कानून हैं। सीमेंट, घरेलू बिजली के उत्पाद, खाद्य उत्पाद और वाहनों के पुर्जे आदि ऐसे दर्जनों उत्पाद हैं, जिन्हें भारत में तब तक नहीं बेचा जा सकता जब तक वे भारतीय मानकों पर खरे नहीं उतरते हैं।
ऐसे कानूनों की जानकारी अनिवार्य है जो फैक्टरियों और उत्पादों को सुरक्षित रखता है और भारत में, और विश्व में कारोबार करने के लिए अनिवार्य है। जब तक आप इन्हें नियमों के अनुसार नहीं बनाते हैं, तब तक इन्हें भारत में नहीं बना सकते हैं। ये सभी कोड, कानून हैं।
लेकिन यह अर्थव्यवस्था से आगे की बात है। भारतीय मानक यह स्पष्ट करते हैं कि भारतीय शहरों और गांवों को कैसे सुरक्षित रखा जा सकता है, खतरनाक सामाग्री का परिवहन कैसे किया जा सकता है, आग लगने की स्थिति में स्कूलों और सार्वजनिक इमारतों में उपयुक्त निकास की सुविधा को किस तरह प्रदान की जाय, बिजली के तारों को सुरक्षात्मक तरीके से कैसे लगाएं। इस सरकारी जानकारी को प्रत्येक शहर के अधिकारी, स्कूल प्राचार्य, इमारतों के मालिकों और संबंधित नागरिकों तक पहुंचनी चाहिए।
यह बात केवल अर्थव्यवस्था और सार्वजनिक सुरक्षा की नहीं हैं बल्कि यह शिक्षा की बात भी है। भारतीय मानक भारत की तकनीकी दनिया के बेस्ट कोडिफाइड नॉलेज का । प्रतिनिधित्व करता है। इन मानकों का निर्माण प्रख्यात इंजीनियरों, सिविल कर्मचारी और प्रोफेसरों द्वारा किया गया था, जिन्होंने स्वेच्छा से समय देकर यह काम किया। ये मानक महत्वपूर्ण शिक्षात्मक साधन हैं, जिनका प्रयोग भारतीय विश्वविद्यालयों के साठ लाख इंजीनियरिंग छात्र करते हैं।
भारतीय मानकों के लिए, हमने सामान्य रूप से दस्तावेजों को स्कैन करने और पोस्ट करने से अधिक काम किया है। लगभग 1,000 मुख्य मानकों को मॉर्डन एच.टी.एम.एल में बदल दिया गया है। हमने चित्रों (डाइग्रामों) को ओपन एस.वी.जी फॉर्मेट में दुबारा से बनाया है, हमने फिर तालिका (टेबल) को उसके अनरुप बनाया है। जिसका अर्थ है कि आप अपने मोबाईल फोन पर मानकों को देख सकते है और उच्च गुणवत्ता वाले चित्रों को काट कर चिपकाना, और अपने लेख या शोध पत्र या सॉफ्टेवयर प्रोग्राम में इन चित्रों को शामिल करना आसान हो जाता है। इससे वे अधिक उपयोगी हो गये हैं।
केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्वभर में टैक्नीकल पब्लिक सेफ्टी लॉ काफी उँचे दामों पर बिकते हैं। उनमें से अधिकांश अपने कॉपीराइट कानून का प्रयोग करके उसकी नकल करने पर नोटिस भेज देते हैं। उदाहरण के लिए नेशनल बिल्डिंग कोड ऑफ इंडिया की कीमत 13,760 रूपये अर्थात् 213 डॉलर है, यदि इसे भारत में खरीदा गया, और यदि इसे भारत से बाहर खरीदा गया तो इसकी कीमत 1.4 लाख रूपये होगी अर्थात् 2,000 डॉलर होगी। यह सोचा जा सकता है कि ये दस्तावेजें, जिसे कानून की शक्ति का समर्थन है और जो समाज की सरक्षा को सनिश्चित करते हैं, वे सहज उपलब्ध होने चाहिए। लेकिन विश्वभर में ये पब्लिक सेफ्टी लॉ को भारी शर्तों के साथ और अत्यधिक दामों पर बेचा जाता है। यह एक वैश्विक समस्या है, यह ऐसी समस्या है, जो पक्षधर राजनीति और राजनैतिक विभाजन से परे है।
मैंने इस स्थिति को बदलने के लिए 10 वर्ष का समय लगाया है और यह काफी लंबी यात्रा रही है। भारत में, हमलोगों ने इन सरकारी दस्तावेजों के खुले वितरण के लिये मंत्रालय को एक औपचारिक याचिका दायर किया है। मेरी इस याचिका में, मेरे साथ सैम, इंटरनेट के जनक विंट सर्फ, और पूरे भारत से अनेक प्रख्यात इंजीनियरिंग प्रोफेसरों के हलफनामें (affidavits) भी जुड़े हैं।
जब यह याचिका को ठुकरा दिया गया तो हमने जनहित मुकदमे के रूप में अपनी याचिका को दिल्ली के माननीय उच्चतम न्यायलय में पेश किया है। वहां यह मुकदमा अब भी चल रहा है। मैं, भारत में दायर इस याचिका में अपने दो सहयोगियों के साथ आवेदक के रूप में। शामिल हुआ जिनमें से एक श्री. श्रीनिवास कोडाली, परिवहन इंजीनियर हैं और दूसरे हैं डॉ.सुशांत सिन्हा, “इन्डियन कानून (Indian Kanoon)' के संस्थापक। ‘इन्डियन कानून’ एक सार्वजनिक सिस्टम है जो निःशुल्क सभी न्यायलयों के विचारों और सभी कानूनों से अवगत कराती है।
उच्च न्यायलय के समक्ष हमारा प्रतिनिधित्व श्री. निशीथ देसाई और उनकी फर्म, और माननीय सलमान खुर्शीद, पूर्व कानून मंत्री और पूर्व विदेश मंत्री कर रहे हैं। मैं काफी प्रसन्न हूँ कि श्री. देसाई आज की संध्या में, हमारे साथ हैं।
कानून की उपलब्धता केवल भारत के लिए प्रश्न नहीं है अपितु यह वैश्विक चुनौती है। हमारे इस तरह का मुकदमा संयुक्त राष्ट्र अमेरिका की कोर्ट ऑफ अपील्स में, और यूरोप में जर्मनी के कोर्ट में भी लड़ रहे हैं, जहाँ हम वहाँ के नागरिकों के लिए यूरोपीय यूनियन से मान्यताप्राप्त सेफ्टी स्टैण्डर्स को निःशुल्क पढ़ने और पोस्ट करने की मांग कर रहे हैं। हमारे संयुक्त राज्य के मुकदमे के लिये डिस्ट्रिक्ट आफ कोलंबिया न्यायालय में हमारा प्रतिनिधित्व ई.एफ.एफ & फेनविक एवं वेस्ट (EFF and Fenwick & West) कर रहे हैं और मैं इस बात को लेकर प्रसन्न हूं कि आज की रात ई.एफ.एफ के मिच स्ट्रोलट्ज़ (Mitch Stoltz) भी आज दर्शकों के बीच मौजूद हैं।
इस वैश्विक कानूनी अभियान में उल्लेखनीय यह है कि श्री.देसाई और श्री.खुर्शीद समेत सभी वकील नि:शुल्क (pro-bon0) कार्य कर रहे हैं। विश्व भर में, नौ लॉ फर्मे हमारी सरकारों को याचिका दायर करने में हमारी सहायता कर रहे हैं, और वे दस हजार घंटों की कानूनी सहायता का योगदान नि:शुल्क दे रहे हैं।
इसका कारण यह है कि वे विश्वास करते हैं कि देश, कानून के शासन से चलता हैं। अतः कानून अवश्य उपलब्ध होने चाहिए क्योंकि कानून की अनभिज्ञता उसे उल्लघंन करने का बहाना नहीं हो सकती। कानून सभी लोगों को पढ़ने के लिए उपलब्ध होने चाहिए क्योंकि लोकतंत्र में कानून पर लोगों का अधिकार है। सरकार हमारे लिए काम करती है। हम कानून के स्वामी हैं। यदि हम शिक्षित एवं जागरूक नागरिक बनना चाहते हैं तो हमें अपने अधिकारों और दायित्वों की जानकारी होनी चाहिए। लोकतंत्र इन्हीं बातों पर निर्भर करता हैं।
जब गांधीजी दक्षिण अफ्रीका में थे, तो वे केवल एक वकील ही नहीं थे, बल्कि बहुत कुछ थे। वे एक प्रकाशक भी थे। उन्होंने विश्व को बदलने के लिये न्यायालयों और याचिकाओं के रास्ते के अलावा उस समय के सोशल मीडिया को भी अपनाया। वे ब्लॉगर और समाचार सिंडिक्टेर थे। वे प्रकाशन तकनीकी के प्रयोग में, उस समय के अग्रणी थे।
जब उन्होंने फीनिक्स (Phoenix) आश्रम खोला था, तो उन्होंने सबसे पहले डरबन के छापाखाने को विघटित किया, उसे चार वैगनों में लोड किया था, जिसमें प्रत्येक को 16 बैलों की टोली के द्वारा ढ़ी कर ले जाया गया था।
जब उन्हें फीनिक्स के लिए नई जगह मिली तो वहां पर कोई भी इमारत नहीं थी। वहाँ उन्होंने सबसे पहले जो इमारत बनाई वह थी प्रिटिंग प्रेस की इमारत। वे वहां पर तब तक रहे जब तक इमारत बनकर तैयार नहीं हो गई। फीनिक्स में सभी लोगों ने टाइपसेट करना सीखा, और सभी लोग कुछ समय के लिये तो प्रिंटिंग प्रेस पर काम जरुर करते थे।
गांधी जी इसे 'ब्रेड लेबर' कहते थे, अर्थात् प्रति दिन अपने हाथों से कुछ काम करना। Genesis 3:19 का कहना है कि 'अपने माथे का पसीना बहाकर अपना पेट पालो ("by the sweat of your brow you will eat your food)', यही उनके दर्शन का मूल मंत्र बना। गांधी जी ने कहा है:
“बौद्धिक ब्रेड लेबर सबसे ऊँची कोटि की सामाजिक सेवा (Self-Employed Women's Association of India) है। इससे बेहतर क्या हो सकता है जहाँ एक व्यक्ति अपने व्यक्तिगत श्रम से देश के धन की वृद्धि कर रहा हो। अपना अस्तित्व ही कार्य करने के लिये है।"
यह कथन उल्लेखनीय है जिस पर हमें ध्यान देना चाहिए। हमलोगों को 'ब्रेड लेबर' करना चाहिए। और हमलोगों को सामाजिक कार्यकर्ता बनना चाहिए जैसा कि गांधी जी ने कहा, समाजिक कार्यकर्ता समाज को बेहतर बनाने के लिए काम करते हैं न कि अपने फायदे के लिये। ब्रेड लेबर और सामाजिक कार्य गांधीवादी दर्शन के दो बुनियादी आधार हैं और इन शिक्षाओं ने लोगों को उत्साहित किया है और यह लोगों को अपने लक्ष्य को पाने के लिये, एक साथ आने के लिए प्रेरित करता है।
आज का विश्व पेचीदा होता जा रहा है। मैं वाशिंगटन, डी.सी. में 15 वर्षों से काम कर रहा हूँ। और मैंने अपनी सरकार को कभी भी इतनी परेशानी में नहीं देखा हूँ। संयुक्त राज्य अमेरिका हा ऐसा देश नहीं है जो अराजकता का सामना कर रहा है, हालांकि हमने अराजकता की। एक ऐसे स्तर तक पहुंचा दिया है, जो पहले अकल्पनीय था। विश्वभर में, युद्ध हो रहे हैं। अब केवल दो राज्यों के बीच ही हिंसा नहीं होती है बल्कि राज्य का लोगों के खिलाफ, और लोगों का एक-दूसरे के खिलाफ, महिलाओं और बच्चों के खिलाफ, और कभी उन लोगों के खिलाफ हिंसा कर रहे हैं जो सिर्फ उनसे भिन्न दिखते हैं। यहाँ पर आंतकवाद के, चौंका देने वाले क्रूर कृत्य दिखाई दे रहे हैं।
यहाँ अकाल और बीमारी है, जिसे हम यदि इच्छा हो तो रोक सकते हैं।
हमारे ग्रह पर चौंका देने वाली हिंसा हो रही हैं। ऐसी हिंसा जिसे हम अतीत में अज्ञानता से किये होंगे, लेकिन हम अब वैसी हिंसा को पूरी जानकारी होने के बावजूद कर रहे हैं।
व्यक्तिगत रूप में, अपनी दिनचर्या में खोये रहना और उन चीजों को नजरअंदाज करना जो हमारी शक्ति से परे है, सार्वजनिक जीवन में भागीदारी लेने से दूर भागना, अपने नेताओं को उनकी जवाबदेही की याद दिलाने से कतराना, यह सब लुभावना लग सकता है लेकिन यह गलत है।
जॉन एफ कैनेडी ने कहा था कि यदि हम क्रांति के शांतिपूर्ण तरीकों को निष्कृय बना देते हैं, तो क्रांति के हिंसक रास्ते अवश्यसंभावी हो जाते हैं। मैं, आपको यह बताना चाहता हूं कि हमारी दुनिया में अराजकता के बावजूद, आशा भी है। इंटरनेट वैश्विक संप्रेषण को संभव बनाता है और विश्व तक सभी सूचनाओं को पहुंचाता है। ये क्रांति के शांतिपूर्ण साधन हैं। बशर्ते कि हम इन्हें अपनाते हैं।
शिक्षा का तात्पर्य है कि हम अपने समाज को कैसे बदले। हमें अपने बच्चों को शिक्षित करना चाहिए, हमें अपने शासकों को शिक्षित करना चाहिए। हमें स्वयं को शिक्षित करना चाहिए
जॉन एडम्स (John Adams) ने लिखा था कि अमेरिकी क्रांति तभी संभव हो पाई थी जब उसके संस्थापक ऐसे पुरूष और महिलाएं थे, जिन्हें इतिहास की जानकारी थी। उन्होंने कहा था कि “अज्ञानता और अविवेक दो ऐसे संगीन कारण हैं जो मानवता को विनाश के कगार पर ले जा सकते हैं। उन्होंने कहा था कि लोकतंत्र तब तक कार्य नहीं कर सकता है जब तक उसके नागरिक एक ज्ञाता नागरिक नहीं बन जाते। उन्होंने कहा था कि “हमें कोमलता से और सहजता से, ज्ञान के साधन को पल्लवित करने चाहिये। हमें पढ़ने, सोचने, बोलने और लिखने का साहस करना चाहिये। प्रत्येक व्यक्ति और प्रत्येक श्रेणी के लोगों को सजग और सचेत हो जाना चाहिये ताकि वे अपनी बातों को प्रबलता से रख सकें।
भारत में जहाँ स्वराज्य के लिए साहसपूर्ण लंबा संघर्ष हुआ था जिसने नए राष्ट्र को जन्म दिया - ऐसा संघर्ष जिसने हमें नियति से मिलाया - ऐसा संघर्ष जिसने विश्वभर को कार्य करने के लिए प्रेरित किया - ऐसा संघर्ष जो शिक्षित नागरिकता पर आधारित थी। गांधीजी ने न्यायधीश रानाडे की बात दोहराते हुए कहा था कि हमें स्वयं को शिक्षित करना चाहिए ताकि हम अपने शासकों को चुनौती दे सकें।
जिन पुरूषों और महिलाओं ने आधुनिक विश्व में भारत का नेतृत्व किया, वे विशेषज्ञ, इतिहासकार और नेता भी थे। नेहरूजी द्वारा जेल में लिखी असाधारण पुस्तक को देखें। डॉ. अंबेडकर की विस्तृत सीख को देखें, जिन्होंने संविधान का मसौदा तैयार किया था। विश्वभर में प्रोफसर राधाकृष्णन की प्रतिष्ठा को देखें, जो एक प्रतिष्ठित नेता थे और जो अपने समय में, अपने पूरे कार्यकाल के दौरान में सबसे सृजनात्मक विद्वान थे।
भारत और अमेरिका, विश्व के सबसे बड़े लोकंतत्र हैं। हमारे पास नागिरकों को सूचित करने के लिए विशेष दायित्व है। हमलोगों को सक्रिय नागरिक होना चाहिए। हमें ब्रेड लेबर करना चाहिए। हम लोगों को समाज सेवक होना चाहिए।
विश्व भर में ज्ञान का संचार करना हमारे समय का अप्राप्य वादा है। स्वंय को शिक्षित करके,अपने बच्चों को शिक्षित करके और काल में हरा दे इसके बजाय विश्व को बदलने के लिए संघर्ष करके, हम विकास के रास्ते पर साथ मिलकर चल सकते हैं। जैसा कि मार्टिन लूथर किंग अक्सर कहा करते थे कि, “वक्र राहों को सीधा कर दिया जायेगा और रुखड़े राहों को समतल कर दिया जायेगा” हम तब तक कंधे से कंधे मिलाकर चलेंगे जब तक हम। खुशहाली तक नहीं पहुंच जाते, ऐसी जगह जहां पर वैश्विक ज्ञान से भरपूर पुस्तकालय हो, एक नि: शुल्क पुस्तकालय, जिसे हम हमारी भावी पीढ़ी को उपहार के रूप में दे सकें।
कृपया इस पुस्तकालय का निर्माण करने में हमारी सहायता करें। यह ब्रेड लेबर है। यह सार्वजनिक कार्य है।
जय हिन्द! ईश्वर अमेरिका पर अपनी कृपादृष्टि बनाए रखें! धन्यवाद!

यह कार्य भारत में सार्वजनिक डोमेन है क्योंकि यह भारत में निर्मित हुआ है और इसकी कॉपीराइट की अवधि समाप्त हो चुकी है। भारत के कॉपीराइट अधिनियम, 1957 के अनुसार लेखक की मृत्यु के पश्चात् के वर्ष (अर्थात् वर्ष 2025 के अनुसार, 1 जनवरी 1965 से पूर्व के) से गणना करके साठ वर्ष पूर्ण होने पर सभी दस्तावेज सार्वजनिक प्रभावक्षेत्र में आ जाते हैं।
यह कार्य संयुक्त राज्य अमेरिका में भी सार्वजनिक डोमेन में है क्योंकि यह भारत में 1996 में सार्वजनिक प्रभावक्षेत्र में आया था और संयुक्त राज्य अमेरिका में इसका कोई कॉपीराइट पंजीकरण नहीं है (यह भारत के वर्ष 1928 में बर्न समझौते में शामिल होने और 17 यूएससी 104ए की महत्त्वपूर्ण तिथि जनवरी 1, 1996 का संयुक्त प्रभाव है।
