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भ्रमरगीत-सार/२३०-ऊधो! अब चित भए कठोर

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बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १६७ से – १६८ तक

 

राग सारंग
ऊधो! अब चित भए कठोर।

पूरब प्रीति बिसारी गिरिधर नवतन राचे और॥

जा दिन तें मधुपुरी सिधारे धीरज रह्यो न मोर।
जन्म जन्म की दासी तुम्हरी नागर नंदकिसोर॥
चितवनि-बान लगाए मोहन निकसे उर वहि ओर[]
सूरदास प्रभु कबहिं मिलौगे, कहाँ रहे रनछोर?॥२३०॥

  1. वहि ओर=उस पार।