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पूरब प्रीति बिसारी गिरिधर नवतन राचे और॥
जा दिन तें मधुपुरी सिधारे धीरज रह्यो न मोर। जन्म जन्म की दासी तुम्हरी नागर नंदकिसोर॥ चितवनि-बान लगाए मोहन निकसे उर वहि ओर[१]। सूरदास प्रभु कबहिं मिलौगे, कहाँ रहे रनछोर?॥२३०॥