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कहीं आपका मतलब कामना मानस तो नहीं था?
  • एक सी उन मे न है हित की तहे॥ है अगर वह फल तो यह फेन है। मोम उस को औ इसे माखन कहे॥ जनमने का एक ही रज-बीज से। कौन से सिर पर गया सेहरा धरा॥ एक भाई का कलेजा...
    ३७१ B (१,१६६ शब्द) - २१:२७, ३१ मार्च २०२१
  • मथने। दधि कौ मथन मेघ सौ गाजै। गावे नूपुर की धुनि बाजै॥ दधि मथि कै माखन लियौ, कियौ गेह कौ काम। तब सब मिल पानी चलीं, सुन्दरि ब्रज की बाम॥ महाराज, वे गोपियाँ...
    ४१३ B (९४३ शब्द) - १५:५६, ४ दिसम्बर २०२१
  • कवित्त बनावै से का होथै और कवित्त बनावना कुछ अपने लोगन का काम थोरै हय, ई भॉटन का काम है। [ २५४ ]माखन---ई तो हई है पर उन्है तो ऐसी सेखी है कि सारा जमाना मूरख...
    ५२० B (१,४३९ शब्द) - १७:२५, १८ जुलाई २०२२
  • प्रकार का सुख-वैभव था; पर यशोदा इसी सोच में मरती रहीं कि— प्रात समय, उठ माखन रोटी को बिन माँगे दैहै? को मेरे बालक कुँवर कान्ह को छिन छिन आगो लैहै? और...
    ४०७ B (३,८०५ शब्द) - १६:३७, १७ अगस्त २०२१
  • मैं, ताहि कहत हरि खान॥ यहै देत नित माखन मोकों। छिन छिन देति तात सो तोकों॥ जो तुम स्याम चंद कौ खैहौ। बहुरो फिर माखन कहू पैहौं? देखत रहौ खिलौना चंदा। हठ...
    ६५२ B (२,९२० शब्द) - २३:१५, ५ नवम्बर २०२०
  • नेह किया, इस सभा ने तिसेही [ ३६७ ] सब से बड़ा साध बनाय दिया। जिसने दूध दही माखन घर घर चुराय खाया, उसी का जस सबने मिल गया। बाट घाट में जिनने लिया दान, विसी...
    ४४१ B (१,४९० शब्द) - ०८:४०, ५ दिसम्बर २०२१
  • [ १९७ ] पा समय मोम सा पिघलता है। फूल है प्यार रग मे ढाला॥ है मुलायम समान माखन के। है दयावान मन दयावाला॥ है सुफल भार से झुका पौधा। है बिमल बारि से बिलसता...
    ३७९ B (३,००० शब्द) - २१:२२, ३१ मार्च २०२१
  • सब प्रकार का सुख-वैभव था पर यशोदा इसी सोच में मरती रही कि- प्रात समय उठि माखन रोटी को बिन मांगे है ? को मेरे बालक कुवर कान्ह को छिन छिन आगो लैहै ? और उद्धव...
    ७६८ B (३,८८० शब्द) - १३:१२, १८ मार्च २०२१
  • तुम्हरे सुत के करतब मोपै कहत कहे नहिं जात। भाजन फोरि, ढारि सब गोरस, लै माखन दधि खात। जौ बरजौं तौं आंखि दिखावै, रंचहुँ नाहिं सकात। दास चतुर्भुज गिरिधर...
    ७८२ B (१,६२५ शब्द) - ००:२१, १८ जुलाई २०२१
  • जाके। परम पवित्र पान पूरन पसंद है। कैंधों मन लाय के बनायो मैन रेजा एक। मखमल माखन सो मृदुल मुकुर है। ग्वाल कवि कैधों एक पात अरवी कौ नीको। अजब अनूठो औ अनूपम...
    ३३६ B (३,४४८ शब्द) - २१:१३, २२ अप्रैल २०२१
  • तुम्हरे सुत के करतब मो पै कहत कहे नहिं जात॥ भाजन फोरि, ढारि सब गोरस, लै माखन दधि खात। जौ बरजौं तौ आंखि दिखावै, रचहू नाहिं सकात॥ और अटपटी कहँ लौं बरनौ...
    ६५७ B (२,८४५ शब्द) - १७:४३, २७ जुलाई २०२३
  • बहुत टेढ़ी दी जाती थीं––जैसे, "सूरज देखि सकैं नहीं घुग्धू", "मोम के मंदिर माखन के मुनि बैठे हुतासन आसन मारे"। उक्त दोनों समस्याओं की पूर्ति व्यासजी ने बड़े...
    ५३४ B (२,८४५ शब्द) - १७:३६, २७ जुलाई २०२३
  • भये अरु, भूलि गये दधि माखन दूधौ॥ कूबरी सी अति सूधी बधू को, मिल्यो बर देव जू स्याम सौ सूधो। शब्दार्थ—पाछिली—पिछली। कबहूंधौ—कभी। माखन दूधौं—मक्खन और दूध।...
    २५८ B (४,१२३ शब्द) - ०४:३७, २२ सितम्बर २०२२
  • हम ब्रज तन आवति? खेलति रहति आपनी पौरी। सुनति रहति श्रवनन नँद-ढोटा करत रहत माखन-दधि चोरी"॥ "तुम्हरी कहा चोरि हम लैहैं? खेलन चलौ संग मिलि जोरी"। सूरदास प्रभु...
    ४१७ B (१८,९८५ शब्द) - ०२:५०, ३० जुलाई २०२०
  • कलि महिं दीठा । चेरी की सेवा करहिं ठाकुरु नहिं दसै । पोखर नीरु बिरोलिये माखनु नहिं रीसै । इसु पद जो अरथाइ ले सो गुरू हमारा । नानक चीने आप को सो अपर अपारा...
    ८२२ B (२,८६४ शब्द) - ०१:४३, ४ जुलाई २०२१
  • हाँ हाँ अरी क्यों चिल्लाय है? चोर भाग जायगो--- बन०---कौन सो चोर? चंद्रा०---माखन को चोर, चीरन को चोर और मेरे चित्त को चोर। भा० ना०---१४ [ ३२३ ]बन०---सो कहाँ...
    ५२२ B (३,२३६ शब्द) - १७:४२, २० जुलाई २०२२
  • है। एरी मेरी तेरी मोहिं भावत भलाई तातें, बूझतहौं तोहि और बूझति डरति है। माखन सी जीभ मुखकंज सी कोमलता में, काठ सी कठेठी बात कैसे निकरति है। ३—किधौं मुख...
    ७७२ B (४,५९३ शब्द) - १६:२०, १५ जुलाई २०२१
  • है चित्र०--और द्वारिका के मनुष्य गलेपडू नहीं हैं ? जिसका बच्चा जन्म से है माखन का चोर । उसका नाती क्यों नहीं, होगा मन का चोर ।। अनि०--परन्तु मैंने चोरी...
    ३०३ B (९,१४५ शब्द) - १९:२०, १९ जनवरी २०२४