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  • सेवासदन  (1919)  द्वारा प्रेमचंद 50320सेवासदन1919प्रेमचंद [ ३२ ] १० दूसरे दिन सुमन नहाने न गई। सवेरे ही से अपनी एक रेशमी साडी की मरम्मत करने लगी। दोपहर...
    २२७ B (४,९८४ शब्द) - ०८:०८, २७ जुलाई २०२३
  • सेवासदन  (1919)  द्वारा प्रेमचंद 50584सेवासदन1919प्रेमचंद [ ८६ ] प्रस्ताव तो बहुत उत्तम है, लेकिन यह बताइये, सुमन को आप रखना कहाँ चाहते है? बिट्ठलदास—विधवाश्रम...
    २०० B (१,१९५ शब्द) - ०८:१०, २७ जुलाई २०२३
  • सेवासदन  (1919)  द्वारा प्रेमचंद 49590सेवासदन1919प्रेमचंद [ ७ ] २ दारोगा जी के हल्के में एक महन्त रामदास रहते थे। वह साधुओ की एक गद्दी के महन्त थे। उनके...
    २५३ B (१,५५१ शब्द) - ०३:४१, ७ अक्टूबर २०२०
  • सेवासदन  (1919)  द्वारा प्रेमचंद 50585सेवासदन1919प्रेमचंद [ ८९ ]इसके बाद डॉक्टर साहब अपने मुवक्किलो से बाते करने लगे; विट्ठलदास आध घंटे तक बैठे रहे, अन्त...
    २०० B (१,२४३ शब्द) - ०८:१०, २७ जुलाई २०२३
  • सेवासदन  (1919)  द्वारा प्रेमचंद 144149सेवासदन1919प्रेमचंद [ १०२ ] में खुशी से दे दूँ! मेरा सब कुछ उसका है, वह चाहे माँगकर ले जाय चाहे उठा ले जाय। सुभद्रा...
    २०६ B (४,०२३ शब्द) - ०८:१०, २७ जुलाई २०२३
  • सेवासदन  (1919)  द्वारा प्रेमचंद 144148सेवासदन1919प्रेमचंद [ ९७ ] है? अपने घर से निकाल कर आपने मुझपर बड़ी कृपा की, मेरा जीवन सुधार दिया। शर्माजी इस ताने...
    २०६ B (५,६११ शब्द) - ०८:१०, २७ जुलाई २०२३
  • सेवासदन  (1919)  द्वारा प्रेमचंद 144182सेवासदन1919प्रेमचंद [ २७७ ]मुस्कानपर, मधुर बातोपर, कृपाकटाक्षपर अपना जीवनतक न्यौछावर करनेको तैयार था। पर सुमन आज...
    १५७ B (५,९१३ शब्द) - ०८:१५, २७ जुलाई २०२३
  • सेवासदन  (1919)  द्वारा प्रेमचंद 144159सेवासदन1919प्रेमचंद [ १५२ ]कृष्ण—इसीलिए कि तुम इज्जतवाले हो और मेरा कोई ठिकाना नहीं। मित्र, क्यों मुँह खुलवाते...
    २०६ B (४,१३७ शब्द) - ०८:१२, २७ जुलाई २०२३
  • सेवासदन  (1919)  द्वारा प्रेमचंद 144175सेवासदन1919प्रेमचंद [ २३७ ] मिली हो, लेकिन मैं शीघ्र ही किसी और नीयत से नहीं तो उनका प्रतिवाद कराने के ही लिए इस...
    २०६ B (५,५७६ शब्द) - ०८:१४, २७ जुलाई २०२३
  • सेवासदन  (1919)  द्वारा प्रेमचंद 144163सेवासदन1919प्रेमचंद [ १६७ ] तैयारी करो। सदन भी अपने कपड़े समेट रहा था। उसके पिता ने सब हाल उससे कह दिया था। इतने...
    २०६ B (५,१८५ शब्द) - ०८:१२, २७ जुलाई २०२३
  • सेवासदन  (1919)  द्वारा प्रेमचंद 144158सेवासदन1919प्रेमचंद [ १४७ ]रहती थी, वे अपनी चारपाई पर करवटें बदल-बदलकर यह गीत गाया करते - अगिया लागी सुन्दर बन...
    २०६ B (५,५९३ शब्द) - ०८:१२, २७ जुलाई २०२३
  • सेवासदन  (1919)  द्वारा प्रेमचंद 144174सेवासदन1919प्रेमचंद [ २३२ ] की गयी थीं उन पर पद्मसिंह को विश्वास न था। वह अविश्वास इस प्रस्ताव की सारी जिम्मेदारी...
    २०६ B (७,०७५ शब्द) - ०८:१४, २७ जुलाई २०२३
  • सेवासदन  (1919)  द्वारा प्रेमचंद 144176सेवासदन1919प्रेमचंद [ २४२ ] कर दिया। उसे अपने माता-पिता पर, अपने चाचा पर, संसार पर और अपने आपपर क्रोध आता। अभी...
    २०६ B (७,१६९ शब्द) - ०८:१४, २७ जुलाई २०२३
  • सेवासदन  (1919)  द्वारा प्रेमचंद 144164सेवासदन1919प्रेमचंद [ १६७ ] तैयारी करो। सदन भी अपने कपड़े समेट रहा था। उसके पिता ने सब हाल उससे कह दिया था। इतने...
    २०६ B (८,६६८ शब्द) - ०८:१३, २७ जुलाई २०२३
  • अपने पारितोषिक-वितरणमें रखा है। सचित्र पुस्तकका मूल्य केवल ।) [ १९२ ]  ६-सेवासदन लेखक उपन्यास-सम्राट् श्रीयुक्त "प्रेमचन्द" हिन्दी-संसार का सबसे बड़ा गौरवशाली...
    २६७ B (५,९०४ शब्द) - ०४:०८, २० मार्च २०२१
  • दयानारायण निगम ने उन्हें 'प्रेमचन्द' नाम दिया। 1913-14 में उनका उपन्यास सेवासदन छपा। 1920 में प्रेमचन्द ने गाँधी जी के आह्वान पर सरकारी नौकरी से इस्तीफा...
    २२६ B (३,९३४ शब्द) - १७:४६, ११ अप्रैल २०२१
  • आज वह आनन्द, वह उल्लास न प्राप्त हुआ। उसे अपने सौन्दर्य से भी घृणा हो गई। (१०) बिहारी का क्रोध अब बिलकुल शान्त हो गया था! वे वाटिका में बैठे हुए घटना-क्रम...
    ३५४ B (६,५२१ शब्द) - ०६:०७, २९ जनवरी २०२२