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  • संयम जिस को नहीं, फँसकर तृष्णाजाल। मुक्त न होगा दुःख से, घिरा रहे बेहाल॥७॥ मुक्तिपथिक वह एक जो, विषयविरक्त अतीव। अन्य सभी तो मोह में, फँसे जगत के जीव॥८॥ लोभ-मोह...
    ४७७ B (४४९ शब्द) - १०:२८, ३ सितम्बर २०२१
  • कार्यों के करने की उच्चाशा रखते है वे ऐसे निकृष्ट प्रेम के पाश में नही फँसते। २—जो आदमी अपनी स्त्री के असीम मोह में पड़ा हुआ है, वह अपनी समृद्धिशाली...
    ५२७ B (४४८ शब्द) - ११:११, १० सितम्बर २०२१
  • को सदा, करते सब उद्योग॥५॥ तप करते जो भक्ति से, वे करते निज श्रेय। माया के फँस जाल में, अन्य करें अश्रेय॥६॥ तप में जैसा कष्ट हो, वैसी मन की शुद्धि। जैसे...
    ४२३ B (४३९ शब्द) - १०:३१, ३ सितम्बर २०२१
  • भूतनाथ, तुमने बड़ा ही काम किया! अब तो तुम उस नालायक को मेरे पंजे में इस तरह फँसा सकते हो कि कमलिनी को तुम पर कुछ भी शक न होगा। भूतनाथ––बेशक ऐसा ही होगा। मगर...
    ४१२ B (१,२४६ शब्द) - ००:५५, १० नवम्बर २०२०
  • नहीं और यह केवल दिखावटी, धर्महीन और व्यवहारशून्य ! महाराज, मैं भी आपके फंसाना नहीं चाहता हूँ । आपके दबाकर मुझे स्वीकार कराना इष्ट नहीं है। जब आप प्रथम...
    ४६१ B (२,५९० शब्द) - १३:५५, २२ दिसम्बर २०२१
  • परिणाम यह होता है कि वे सुरज के बदले उस दुःख और अशांति के गहरे कूप में जा फँसते हैं, जहां से सरलतापूर्वक निकलना असभव नहीं तो, दुसाध्य अवश्य हो जाता है।...
    ५४६ B (१,०२४ शब्द) - ०२:४९, २५ जुलाई २०२३
  • नहीं आ सकता? गोपालसिंह-नहीं, वे यहाँ नहीं आ सकते। वे तिलिस्मी कारखाने में फंस चके हैं, इसलिए छूटने का उद्योग नहीं कर सकते, बल्कि वे तिलिस्म के अन्दर जा...
    ४०० B (२,१२३ शब्द) - ०६:१७, २५ नवम्बर २०२०
  • लता-द्रम नभस्तरण, चुम्बित समीर-कुङ कुम क्षण-क्षण, सिहरे, बिहरे; फिर हँसे, फँसे। रंग गया प्रेम का अन्तराल, खुल गया हेम का जगजाल, तुल गई किरण, धुल गई झाल...
    ४५५ B (७२ शब्द) - ०२:४०, २० मई २०२३
  • को वास ने। बाँकी भौंहें ही सुन्दर हैं, यह कहते हैं, बाँकी चितवन से ही नयन फँसे रहते हैं, बड़े लड़ाके बाँके ही मारें सहते हैं, पार किया है तम से प्रभा के...
    ४१३ B (१३८ शब्द) - १३:०७, २६ मई २०२३
  • में वह तेगे शररबार न चमके। घरबार से बाहर से भी हर बार खबरदार॥ इस दुश्मने ईमाँ को है धोखे से फँसाना। लड़ना न मुकाबिल कभी जिनहार खबरदार॥ [सब जाते हैं  ...
    ४२७ B (३४४ शब्द) - ०४:३२, १९ मई २०२१
  • को ही विकास का उत्सव मान बैठे हैं। भूमंडलीकरण की होड़ में, ऐसी भगदड़ में फंसी सरकारों से, उनके कर्ता-धर्ताओं से किसी तरह के स्वस्थ, स्थायी विकास की उम्मीद...
    ५५२ B (५२५ शब्द) - १६:४९, २० नवम्बर २०२०
  • लाकर लूट लेने और फँसा जानेवाला भी ऐसा ही भला बनता था। मुझे तो यहाँ रस्सी रस्सी में सर्प दिखलाई देता है। आप भी उसकी तरह मुझे फँसाकर इस कुलटा की रक्षा...
    ५४५ B (१,२४७ शब्द) - २२:१०, ५ अक्टूबर २०२०
  • दिया। पंचानन–(नदू से) बाबू नदलाल, आप ऐसे सयाने कौआ इन बगुलों के दल मे कैसे फंसे ? आपको तो अपनी चालाकी का दावा था। 'क्या खूब फैसा कफस में यह पुराना चंडूल-लगी...
    ३९० B (८९३ शब्द) - १५:२७, १५ अक्टूबर २०२१
  • दोनों भाई हाधे न आएँ। इन्द्रजीत।जी इस भरोसे न रहिएगा कि इन्द्रजीतसिंह को फँसा लिया, उनकी तरफ बुरा निगाह से देखना भी काम रखता है! ग्रन्थकर्ता०।भला इसमें...
    ३४६ B (८७५ शब्द) - ०४:५०, २७ जुलाई २०२३
  • मामला है ? तुम कहाँ गये थे?" नानक--(धीरे से) अपने नापाक बाप के आफत में फंसने की खबर सुनने गया था। अच्छा होता, जो मुझे उसके मौत की खबर सुनने में आती और...
    ४०७ B (१,०७४ शब्द) - १३:२६, २७ फ़रवरी २०२१
  • जल में॥ मान मन सब मनचलापन मरतबे। मन मरे कैसे भला खोता नहीं॥ क्यों न वह फँसता दुखों के दाम में। दाम जिस के हाथ में होता नहीं॥ बढ़ गई बेबसी बुढ़ापा की।...
    ३६५ B (९५३ शब्द) - २१:३८, ३१ मार्च २०२१
  • पिण्ड नहीं छोड़ते। मैंने कितने घर तबाह किये, कितनी सती स्त्रियोंको जालमें फंसाया, कितने निश्छल पुरुषोंको चकमा दिया। यह सब स्वांग केवल सुखभोगके लिये, मुझपर...
    २५४ B (३५२ शब्द) - २३:४४, २८ मार्च २०२१
  • कहा, "मैं धन्नूसिंह की राय पसन्द करता हूँ। मनोरमा के लिए अपने को आफत में फंसाना बुद्धिमानी का काम नहीं है, अस्तु किसी मुनासिब ढंग से उसे अलग ही कर देना...
    ४०६ B (५,९७५ शब्द) - १२:३४, २७ फ़रवरी २०२१
  • बाकेगा, और अदालत से तुम्हारी रिहाई हो जायगी, किंतु जिनके जाल में तुम अब तक फंसे थे, और जिन्होंने चाहा था कि इन नई चिड़ियों को फॅसाय कबाब-सा भूज निगल बैठे...
    ३९३ B (४४२ शब्द) - ०८:१९, १६ अक्टूबर २०२१
  • करने में असमर्थ होता है। १०—यदि परोपकार करने के फलस्वरूप सर्वनाश उपस्थित हो, तो दासत्व में फँसने के लिए आत्म-विक्रय करके भी उसको सम्पादन करना उचित है।...
    ४१३ B (४११ शब्द) - १०:३७, २ सितम्बर २०२१
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