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  • पॉवड़े बिछाए॥ अति आनंद लये उठि आगे। पूरब पुन्य पुञ्ज सब जागे॥ ऊधो कौ आसन बैठारि। मंदिर भीतर से मुरारि॥ वहाँ जाय देख तो चित्रशाला में उजला बिछौना बिछा है,...
    ४७३ B (३५६ शब्द) - १५:५८, ४ दिसम्बर २०२१
  • उन्हें इसका अवसर मुश्किल से मिलता था। वह सोती ही रहती थीं, तब तक उधर बाजी बिछ जाती थी। और रात को जब सो जाती थीं, तब कहीं मिर्जाजी भीतर आते थे। हाँ नौकरों...
    ४३७ B (३,६७५ शब्द) - २२:१०, १३ जुलाई २०२०
  • समय होते ही बावर्ची सब यात्रियों के सामने छोटी छोटी मेज़ें बिछा देता है। उन पर सफ़ेद कपड़ा बिछा रहता है और चाँदी के पात्र रक्खे रहते हैं। बावर्ची उनपर भोजन...
    ५६८ B (१,२४८ शब्द) - १५:५७, ९ नवम्बर २०२१
  • उन्हें इसका अवसर मुश्किल से मिलता था। वह सोती ही रहती थीं, तब तक उधर बाजी बिछ जाती थी। और रात को जब सो जाती थीं, तब कहीं मिरेजाजी घर में आते थे। हाँ नौकरों...
    ४०९ B (३,६९४ शब्द) - ०६:११, २९ जनवरी २०२२
  • उन्हें इसका अवसर मुश्किल से मिलता था। वह सोती ही रहती थीं, तब तक उधर बाज़ी बिछ जाती थी, और रात को जब सो जाती थीं, तब कहीं मिर्ज़ाजी, भीतर आते थे। हाँ, नौकरों...
    ४३० B (३,६८७ शब्द) - ०१:०४, २३ अगस्त २०२१
  • मोहलत न मिलने के सबब से लाचार थे। वहाँ की जमीन पर सुर्ख मखमली मुलायम गद्दा बिछा हुआ था और सदर दरवाजे के अतिरिक्त और भी तीन दरवाजे नजर आ रहे थे, जिन पर बेशकीमत...
    ३८७ B (२,३१० शब्द) - १४:०८, १५ दिसम्बर २०२०
  • [ १७ ]देखा कि झोपड़ीमें चारों तरफ चटाई विछी हुई है और जगह-जगह व्याघ्रचर्म बिछे हैं। एक कलशमें पानी और कुछ फल-फूल भी रखे हुए हैं। कापालिकने आग बालकर कहा—“फल-मूल...
    २४९ B (७८८ शब्द) - २३:२६, २१ अप्रैल २०२०
  • तो दही जमाया है॥ तन पहन कर जिसे बिमल बनता। चाहिये था कि वह बसन बुनते॥ जब बिछे फूल चुन नही पाये। हाथ तब फूल क्या रहे चुनते॥ काम जब देते न गजरों का रहे।...
    २८१ B (८०८ शब्द) - २०:५९, ३१ मार्च २०२१
  • कंजूस की निन्दा करते हैं। कहते हैं कि जमीन में तिजोरी गाड़कर उस पर पलंग बिछाकर वह रात्रि के समय अकेला ही सोया करता है। भार्या का संग नहीं करता। कारण यह...
    ४६४ B (४५० शब्द) - १२:०७, २३ जुलाई २०२०
  • ⁠चम्पा—(भृगुसे) कुछ और लेना हो तो लेलो, मैं जाती हूँ अम्माँका बिछावन बिछाने। गुलाबी—रहने दो बेटी, मैं आप बिछा लूंगी। भृगु—(चम्पासे) यह आज दालमें नमक क्यों झोंक दिया।...
    २५४ B (८६६ शब्द) - २३:३९, २८ मार्च २०२१
  • लिये हम जो कुछ लें वह तो ठीक है, पर यह देखकर यदि सभी ऐरे गैरे पत्तले बिछा बिछाकर बैठ जायें तो कैसे काम चलेगा ?" उस समय वे भारतको अपना राज्य समझकर उसके...
    ४०३ B (९६० शब्द) - १७:०१, २५ नवम्बर २०२१
  • ले दुध मथने लगीं। तहाँ नदमहरि भी एक बड़ा सा कोरा चरुआ ले ईढुए पर रख चौक बिछी नेती और रई मँगाय, टटकी टटकी दहैडियाँ बाछ राम कृष्ण के लिये बिलोचन बैठी। तिस...
    ४०१ B (४६१ शब्द) - ०७:५०, ३० नवम्बर २०२१
  • सर्वत्र व्याप रही है। मानो वितान रूप नीले आकाश-शामियाने के नीचे सफेद फर्श बिछा दिया गया हो। मालूम होता है, शरत की सहायता पाय धरती आकाश के साथ होड़ लगाए...
    ३५५ B (४६१ शब्द) - ०३:११, ४ अक्टूबर २०२१
  • विलास किया था। जातेही एक गोपी ने अपनी ओढ़नी उतार के श्रीकृष्ण के बैठने को बिछा दी। जों वे उस पर बैठे तो कई एक गोपी क्रोध कर बोलीं कि महाराज, तुम बड़े कपटी...
    ४१५ B (५१५ शब्द) - १७:४८, ३ दिसम्बर २०२१
  • रगरि रगरि रह जांय॥ बड़े बड़े जोधा तंह बैठे हैं, टिहुना धरे नगिन तरवारि॥ बिछे गलीचा ई मजलिस मा, खोपरी पाउँइ धरत बिलाय॥ फट फट फट कोउ बोतल खोले, कट कट कट...
    ७१२ B (४३७ शब्द) - १०:२८, ११ जनवरी २०२०
  • रगरि रगरि रह जांय॥ बड़े बड़े जोधा तंह बैठे हैं, टिहुना धरे नगिन तरवारि॥ बिछे गलीचा ई मजलिस मा, खोपरी पाउँइ धरत बिलाय॥ फट फट फट कोउ बोतल खोले, कट कट कट...
    ७१६ B (४६२ शब्द) - १०:३०, ११ जनवरी २०२०
  • विलीन हो गया। स्त्री अकेली रह गई है। पथिक लोग बहुत दिन तक देखते रहे कि एक पीला मुख उस तृण-कुटीर से झाँक कर प्रतीक्षा के पथ में पलक-पाँवड़े बिछाता रहा।...
    ४०० B (६८८ शब्द) - २०:४७, १९ जुलाई २०२०
  • आश्विन के चन्द्र की उज्ज्वल किरणों न दालमंडी की ऊँची छतों पर रुपहली चादर-सी बिछा दी थी। वह फिर सुमन के कोठे सामने रुका। संगीत ध्वनि बन्द थी, कुछ बोलचाल न...
    २०० B (१,३४४ शब्द) - ०८:०९, २७ जुलाई २०२३
  • सड़कों की तो बात ही क्या है, गलियों तक में ईंटें लगी हुई हैं और उन पर सीमेंट बिछा हुआ है, जिससे वे बारहो मास पक्की गचं सी बनी रहती हैं। बरसात तक में कीचड़...
    ६४२ B (१,९०२ शब्द) - १६:०५, ९ नवम्बर २०२१
  • में पहुँचे। कमरा काफी बड़ा था। एक ओर दो पलङ्ग बराबर एक दूसरे से सटे हुये बिछे थे। पलंग पर विस्तर भी लगे हुये थे। दूसरी ओर एक सिंगार मेज लगी थी एक ओर कपड़े...
    ३६३ B (१,५७७ शब्द) - २३:२०, २ अगस्त २०२०
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