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मई की निर्वाचित पुस्तक
विकिस्रोत:निर्वाचित पुस्तक/मई २०२४
सप्ताह की पुस्तक
भक्तभावन ग्वाल कवि द्वारा रचित २८ काव्यों का संग्रह है। बनारस के विश्वविद्यालय प्रकाशन द्वारा इसके प्रथम संस्करण का प्रकाशन १९९१ ई. में किया गया था।
"श्री वृषभान कुमारिका। त्रिभुवन तारन नाम।
शीश नवावत ग्वाल कवि सिद्धि कीजिये काम॥१॥
वासी[१] वृंदा विपिन के। श्री मथुरा सुखवास।
श्री जगदंबा दई हमें। कविता विमल विकास॥२॥
विदित[२] विप्र वंदी विशद। बरने व्यास पुरान।
ताकुल सेवाराम को। सुत कवि ग्वाल सुजान॥३॥
शोभा के सदम लखि होत है अदमसम। पदम पदम पर परम लता के इद।
देखें नख दामिनी घने दुरी अकामिनी है। जामिनी जुन्हया की जरै जलसता के मद।
ग्वालकवि ललित छलानतें कलित कल। वलित सुगंधन ते वेस मुदता के नद।
वंदन अखंड भुज दंड जुग जोरै करौं। बरद उमंड मारतंड तनया के वद।।१॥"
...पूरा पढ़ें)
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पूर्ण पुस्तक
कर्मभूमि प्रेमचंद का दूसरा अंतिम उपन्यास है जिसका प्रकाशन १९३२ ई॰ में इलाहाबाद के हंस प्रकाशन द्वारा किया गया था। प्रेमाश्रम, कर्मभूमि और गोदान मिलकर किसान महागाथा त्रयी बनाते हैं।
"हमारे स्कूलों और कालेजों में जिस तत्परता से फ़ीस वसूल की जाती है, शायद मालगुजारी भी उतनी सख्ती से नहीं वसूल की जाती। महीने में एक दिन नियत कर दिया जाता है। उस दिन फ़ीस का दाख़िल होना अनिवार्य है। या तो फ़ीस दीजिए, या नाम कटाइए; या जब तक फ़ीस न दाखिल हो, रोज कुछ जुर्माना दीजिए। कहीं कहीं ऐसा भी नियम है, कि उस दिन फ़ीस दुगुनी कर दी जाती है, और किसी दूसरी तारीख को दुगुनी फ़ीस न दो, तो नाम कट जाता है। काशी के क्वींस कालेज में यही नियम था। ७वीं तारीख को फ़ीस न दो, तो २१वीं तारीख को दुगुनी फ़ीस देनी पड़ती थी, या नाम कट जाता था। ऐसे कठोर नियमों का उद्देश्य इसके सिवा और क्या हो सकता था, कि गरीबों के लड़के स्कूल छोड़कर भाग जायँ। वह हृदयहीन दफ्तरी शासन, जो अन्य विभागों में है, हमारे शिक्षालयों में भी है। वह किसी के साथ रिआयत नहीं करता। चाहे जहां से लाओ; कर्ज लो, गहने गिरो रखो, लोटा-थाली बेचो, चोरी करो, मगर फ़ीस जरूर दो, नहीं दूनी फ़ीस देनी पड़ेगी, या नाम कट जाएगा। जमीन और जायदाद के कर वसूल करने में भी कुछ रिआयत की जाती है। हमारे शिक्षालयों में नर्मी को घुसने ही नहीं दिया जाता। वहाँ स्थायी रूप से मार्शल-लॉ का व्यवहार होता है। कचहरियों में पैसे का राज है, उससे कहीं कठोर, कहीं निर्दय यह राज है। देर में आइए तो जुर्माना, न आइए तो जुर्माना, सबक न याद हो तो जुर्माना, किताबें न खरीद सकिये तो जुर्माना, कोई अपराध हो जाए तो जुर्माना, शिक्षालय क्या है जुर्मानालय है। यही हमारी पश्चिमी शिक्षा का आदर्श है, जिसकी तारीफ़ों के पुल बाँधे जाते हैं। यदि ऐसे शिक्षालयों से पैसे पर जान देनेवाले, पैसे के लिए ग़रीबों का गला काटनेवाले, पैसे के लिए अपनी आत्मा को बेच देनेवाले छात्र निकलते हैं, तो आश्चर्य क्या है?"...(पूरा पढ़ें)
सहकार्य
- इस माह शोधित करने के लिए चुनी गई पुस्तक:
- Kabir Granthavali.pdf [९२१ पृष्ठ]
- जायसी ग्रंथावली.djvu [४९८ पृष्ठ]
- रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf [४७१ पृष्ठ]
रचनाकार
जॉन स्टुअर्ट मिल (20 मई 1806 — 8 मई 1873) प्रसिद्ध सामाजिक, राजनैतिक तथा दार्शनिक चिंतक थे। विकिस्रोत पर उपलब्ध उनकी रचनाएँ:
- स्त्रियों की पराधीनता (1917), THE SUBJECTION OF WOMEN का हिंदी अनुवाद।
- उपयोगितावाद — (1924), Utilitarianism का हिंदी अनुवाद
रबीन्द्रनाथ ठाकुर या रबीन्द्रनाथ टैगोर (7 मई 1861 — 7 अगस्त 1941) नोबल पुरस्कार विजेता बाँग्ला कवि, उपन्यासकार, निबंधकार, दार्शनिक और संगीतकार हैं। विकिस्रोत पर उपलब्ध इनकी रचनाएँ:
- स्वदेश (1914), निबंध संग्रह
- राजा और प्रजा (1919), निबंध संग्रह
- विचित्र-प्रबन्ध (1924), निबंध संग्रह
- दो बहनें (1952), हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा अनूदित उपन्यास।
आज का पाठ
"गाढ़े की एक कमीज को एक अनाथ विधवा सारी रात बैठकर सीती है; साथ ही साथ वह अपने दुख पर रोती भी है—दिन को खाना न मिला। रात को भी कुछ मयस्सर न हुआ। अब वह एक एक टाँके पर आशा करती है कि कमीज कल तैयार हो जायगी; तब कुछ तो खाने को मिलेगा। जब वह थक जाती है तब ठहर जाती है। सुई हाथ में लिये हुए है, कमीज घुटने पर बिछी हुई है, उसकी आँखों की दशा उस आकाश की जैसी है जिसमें बादल बरसकर अभी अभी बिखर गये हैं। खुली आँखें ईश्वर के ध्यान में लीन हो रही हैं। कुछ काल के उपरान्त "हे राम" कहकर उसने फिर सीना शुरू कर दिया। इस माता और इस बहन की सिली हुई कमीज मेरे लिये मेरे शरीर का नहीं—मेरी आत्मा का वस्त्र है। इसका पहनना मेरी तीर्थ यात्रा है। इस कमीज में उस विधवा के सुख-दुःख, प्रेम और पवित्रता के मिश्रण से मिली हुई जीवन रूपिणी गङ्गा की बाढ़ चली जा रही है। ऐसी मजदूरी और ऐसा काम—प्रार्थना, सन्ध्या और नमाज से क्या कम है? शब्दों से तो प्रार्थना हुआ नहीं करती। ईश्वर तो कुछ ऐसी ही मूक प्रार्थनाएँ सुनता है और तत्काल सुनता है।..."(पूरा पढ़ें)
विषय
- हिंदी साहित्य — कविता, उपन्यास, कहानी, नाटक, आलोचना, निबंध, आत्मकथा, जीवनी, भाषा और व्याकरण, साहित्य का इतिहास
- समाज विज्ञान — दर्शनशास्त्र, इतिहास, राजनीति विज्ञान, भूगोल, अर्थशास्त्र, विधि
- विज्ञान — प्राकृतिक विज्ञान, पर्यावरण
- कला — संगीत
- अनुवाद — संस्कृत, तमिल, बंगाली, अंग्रेजी
- विविध — ग्रंथावली, संघ लोक सेवा आयोग प्रश्न पत्र, दिल्ली विश्वविद्यालय प्रश्न पत्र
- सभी विषय देखें
आंकड़े
- कुल पुस्तकें = ५२६
- कुल पुस्तक पृष्ठ = १,६३,५९४
- प्रमाणित पृष्ठ = १२,४३७, शोधित पृष्ठ = ६८,३८७
- समस्याकारक = ६, अशोधित = ९२,४७३, रिक्त = २,७२८
- सामग्री पृष्ठ = ५,७५४, परापूर्ण पृष्ठ = ४३१७
- स्कैन प्रतिशत = १००%
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