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  • सेवासदन  (1919)  द्वारा प्रेमचंद 49590सेवासदन1919प्रेमचंद [ ७ ] दारोगा जी के हल्के में एक महन्त रामदास रहते थे। वह साधुओ की एक गद्दी के महन्त थे। उनके...
    २५३ B (१,५५१ शब्द) - ०३:४१, ७ अक्टूबर २०२०
  • सेवासदन  (1919)  द्वारा प्रेमचंद 50584सेवासदन1919प्रेमचंद [ ८६ ] प्रस्ताव तो बहुत उत्तम है, लेकिन यह बताइये, सुमन को आप रखना कहाँ चाहते है? बिट्ठलदास—विधवाश्रम...
    २०० B (१,१९५ शब्द) - ०८:१०, २७ जुलाई २०२३
  • सेवासदन  (1919)  द्वारा प्रेमचंद 144162सेवासदन1919प्रेमचंद [ १६७ ] तैयारी करो। सदन भी अपने कपड़े समेट रहा था। उसके पिता ने सब हाल उससे कह दिया था। इतने...
    २०६ B (२,१४५ शब्द) - ०८:१२, २७ जुलाई २०२३
  • सप्तसरोज  (1917)  द्वारा प्रेमचंद 79773सप्तसरोज1917प्रेमचंद [  ]सप्तसरोज लेखक–– सेवासदन, प्रेमपचीसी, शेखसादी, प्रेमाश्रम, संग्राम, प्रेमपूर्णिमा आदिके...
    ४४७ B (६६८ शब्द) - ०१:४४, ४ अगस्त २०२३
  • सेवासदन  (1919)  द्वारा प्रेमचंद 144161सेवासदन1919प्रेमचंद [ १६२ ] है। स्वर्ग में पहुँचने के लिए आए कोई सीधा रास्ता नहीं है। वैतरणी का सामना अवश्य करना...
    २०६ B (३,७१४ शब्द) - ०८:१२, २७ जुलाई २०२३
  • सेवासदन  (1919)  द्वारा प्रेमचंद 144182सेवासदन1919प्रेमचंद [ २७७ ]मुस्कानपर, मधुर बातोपर, कृपाकटाक्षपर अपना जीवनतक न्यौछावर करनेको तैयार था। पर सुमन आज...
    १५७ B (५,९१३ शब्द) - ०८:१५, २७ जुलाई २०२३
  • सेवासदन  (1919)  द्वारा प्रेमचंद 144160सेवासदन1919प्रेमचंद [ १५७ ] हाजीहाशिम बुड़बुड़ाये, मुन्शी अबुलवफाके तेवरोंपर बल पड़ गये। तेगअलीकी तलवारने उन्हें...
    २०६ B (५,३४७ शब्द) - ०८:१२, २७ जुलाई २०२३
  • सेवासदन  (1919)  द्वारा प्रेमचंद 144163सेवासदन1919प्रेमचंद [ १६७ ] तैयारी करो। सदन भी अपने कपड़े समेट रहा था। उसके पिता ने सब हाल उससे कह दिया था। इतने...
    २०६ B (५,१८५ शब्द) - ०८:१२, २७ जुलाई २०२३
  • सेवासदन  (1919)  द्वारा प्रेमचंद 144150सेवासदन1919प्रेमचंद [ १०७ ] बटाओ तो मैं धरती और आकाश एक कर दूँगा लेकिन क्षमा करना, तुम्हारे संकल्प दृढ़ नहीं होते।...
    २०६ B (५,४१६ शब्द) - ०८:११, २७ जुलाई २०२३
  • सेवासदन  (1919)  द्वारा प्रेमचंद 144151सेवासदन1919प्रेमचंद [ ११७ ] मैंने कहा, मुझे कोई उल्लू समझा है क्या? पीछा छोड़ाकर भागा, इसी में देरी हो गई। सुमन-कई...
    २०६ B (५,७०२ शब्द) - ०८:११, २७ जुलाई २०२३
  • सेवासदन  (1919)  द्वारा प्रेमचंद 144152सेवासदन1919प्रेमचंद [ १२२ ] उससे अब छिपाना कैसा! हाथ जोड़ कर कहूँगा, सरकार बुरा हूँ तो, भला हूँ तो अब आपका सेवक...
    २०६ B (७,२९६ शब्द) - ०८:११, २७ जुलाई २०२३
  • सेवासदन  (1919)  द्वारा प्रेमचंद 144164सेवासदन1919प्रेमचंद [ १६७ ] तैयारी करो। सदन भी अपने कपड़े समेट रहा था। उसके पिता ने सब हाल उससे कह दिया था। इतने...
    २०६ B (८,६६८ शब्द) - ०८:१३, २७ जुलाई २०२३
  • उनके "प्रेमाश्रम" "सप्तसरोज" और "सेवासदन" का रसास्वादन किया है उनके लिये तो कुछ लिखना व्यर्थ है। प्रत्येक गल्प अपने बाकी निराली है। ज़मींदारों के अत्याचार...
    २६७ B (५,९०४ शब्द) - ०४:०८, २० मार्च २०२१
  • ही "ग़बन" के नाम से प्रकाशित होगा। पृष्ठ-संख्या ठीक चार सौ होगी और मूल्य ₹ मात्र। जो सज्जन अभी से ₹ भेजकर हमारे यहाँ के स्थायी ग्राहक बन जायेंगे, वे...
    ५०७ B (४५२ शब्द) - ०६:४५, २१ सितम्बर २०२१
  • दयानारायण निगम ने उन्हें 'प्रेमचन्द' नाम दिया। 1913-14 में उनका उपन्यास सेवासदन छपा। 1920 में प्रेमचन्द ने गाँधी जी के आह्वान पर सरकारी नौकरी से इस्तीफा...
    २२६ B (३,९३४ शब्द) - १७:४६, ११ अप्रैल २०२१
  • १६.०, ३६६ । . भाषा हनुमन्नाटक, सूरसारावली १६० १६१ - हुनुमान नखशिख ३८६ । सेवासदन ५४१ हनुमान नाटक (राम) २६२, सौदर्यलहरी ३७३। हनुमान पंचक ३८६ .. सदियांपासक...
    ३९६ B (३,२९१ शब्द) - १७:३५, २७ जुलाई २०२३
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    ५३२ B (४४० शब्द) - ०७:५७, १० मार्च २०२०
  • रंगभूमि ६) सेवासदन ३) वरदान ) निर्मला ॥) ग़बन ३।।) प्रतिज्ञा १॥) ⁠() गल्प संग्रह प्रेम-पुर्णिमा ) प्रेम-प्रसून १॥) प्रेम-प्रमोद ॥) प्रेम-प्रतिमा ) प्रेम-पच्चीसी...
    ३५४ B (६,५२१ शब्द) - ०६:०७, २९ जनवरी २०२२