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  • मिश्रित जातियों की प्रगतिशील संस्कृति की विजय सहस्राब्दियों से छिपी हुई है, जिसे सम्भवतः किसी इतिहासकार ने आंख उघाड़कर देखा नहीं है। मैंने जो चालीस वर्षों...
    ४६८ B (९५३ शब्द) - २१:२६, ३० नवम्बर २०२३
  • अधिक-से-अधिक मनोरंजन हो जायें; इसीलिए सिनेमागृहों की संख्या दिन-दिन बढ़ती जाती है। जिसे उपन्यास के पढ़ने में महीनें लगते, उसको आनन्द हम दो घण्टे में उठा लेते हैं।...
    ४७५ B (१,७८८ शब्द) - २१:१३, २१ मई २०२१
  • गया। जिस समय बेकन इस पदपर था, उस समय, उसको उत्कोच लेने का अपराध लगाया गया, जिसे उसने स्वयं स्वीकारभी करलिया। इस लिए उसको दंड मिला; परन्तु राजाकी उसपर विशेष...
    ४३५ B (७६३ शब्द) - ०४:२७, १३ अक्टूबर २०२१
  • पत्र-पत्रिकाओं व पाण्डुलिपियों में बिखरी हुई सामग्री को संकलित तथा सम्पादित किया है, जिसे हम क्रमशः पुस्तकमाला के रूप में प्रकाशित करने जा रहे हैं। हरेक कहानी के ऊपर...
    ३३१ B (५८१ शब्द) - ०८:५५, २० जुलाई २०२३
  • हैं, पर एक [ ३ ]'वेनिस का बाँका' ही ऐसा ग्रन्थ है जो बिलकुल अप्राप्य है और जिसे देखने की अभिलाषा लोग प्रायः प्रकट किया करते हैं। पर बात यहीं तक रह जाती थी।...
    ६२२ B (१,२२८ शब्द) - १५:१४, २१ नवम्बर २०२१
  • बंगभाषाकी जूठन हैं। हिन्दीके गल्प-ससारमें कोई ऐसी महत्वशाली रचना नहीं थी, जिसे बंगभाषाका एक इतना महान् और प्रतिभाशाली विद्वान सराह सके। अब हम थोड़ेमें आपको...
    ४४७ B (६६८ शब्द) - ०१:४४, ४ अगस्त २०२३
  • 152824नाट्यसंभव1904किशोरीलाल गोस्वामी [ आवरण-पृष्ठ ] श्री नाट्यसम्भव रूपक जिसे साहित्यानुरागी रसिकजनों के मनोविनोद के लिये प्रणयिनीपरिणय, लावण्यमयी. मेममयी...
    ४३९ B (४३७ शब्द) - १३:०६, ११ मई २०२१
  • इकट्ठा करके ऐसा एक प्रभावशाली चित्र किसी अधिकारी व्यक्तिको तैयार करना चाहिये, जिसे हम ‘हिन्द स्वराज्य' की परिणत आवृत्ति नहीं कहेंगे; उसे तो स्वराज्य-भोगी भारतका...
    ४२९ B (१,९१५ शब्द) - ११:१८, २ अक्टूबर २०२३
  • दो-चार कहानियाँ लिखने के पश्चात् उसकी गाड़ी सबसे पहले उसी मार्ग पर अटकती है जिसे यह सबसे सरल समझ रहा था-अर्थात् प्लाट । जिन दो-चार प्लाटों के बल पर उसने अपने...
    ४४३ B (१,४७९ शब्द) - २२:४६, ९ अगस्त २०२१
  • अपने पहले की पुरानी बोलचाल की संस्कृत से निकली है और परिमार्जित संस्कृत भी (जिसे हम आजकल केवल "संस्कृत" कहते हैं) किसी पुरानी बोलचाल की संस्कृत से निकली है।...
    ६७१ B (१,१५० शब्द) - २३:३०, २३ अप्रैल २०२१
  • । अर्थात् शिवालय, शिवमूर्ति और शिव पूजा को मुख्य मुख्य बातों का गूढा़र्थ जिसे शिव भक्तों के मनोरंजन तथा सर्व साधारण के हितार्थ प्रेमदास प्रसिद्ध प्रतापनारायण...
    ३०९ B (२७९ शब्द) - १७:४६, ११ अप्रैल २०२१
  • तरफ आ जाता है, तो बिना मुझसे मिले नहीं जाता है। मोहन को अब भी वह अपना इष्टदेव समझता है। मानव-प्रकृति का यह एक ऐसा रहस्य है, जिसे मैं आज तक नहीं समझ सका।...
    ६०३ B (४,४५९ शब्द) - १०:३४, २२ मई २०२०
  • के लिए कोई-न-कोई द्वार खुलेगा ही। दयानाथ ने उपेक्षा-भाव से कहा--खुल चुका। जिसे शतरंज और सैरसपाटे से फुरसत न मिले, उसे सभी द्वार बन्द मिलेंगे। जागेश्वरी...
    २०४ B (५,४४४ शब्द) - १९:१५, २४ जनवरी २०२०
  • पूछते थे कि तुम किसे वोट दोगे––हमें कुछ मालूम नहीं था, सो [ ६६ ]हमने कह दिया जिसे आप लोग देंगे। और क्या कहता?" करीम नामक व्यक्ति बोला। "ठीक है। हमने तो एक...
    ३३५ B (१,६०७ शब्द) - २३:०४, २ अगस्त २०२०
  • इसकी जिम्मेदार वह आपस की बैर और फूट है जिसने सदा इस देश की दुर्दशा कराई और जिसे महाराज रणजीतसिंह भी दिलों से दूर कराने में सफल न हो सके। रणजीतसिंह के जन्म...
    ४७६ B (३,६६३ शब्द) - ०६:१७, २९ जुलाई २०२०
  • उसे बहुत चाहने लगा। एक दिन राजा जब शिकार को गया था तब उसकी रानी नागमती ने, जिसे अपने रूप का बड़ा गर्व था, आकर सूए से पूछा कि "संसार में मेरे समान सुंदरी...
    ६४४ B (२,१५२ शब्द) - १७:४२, २७ जुलाई २०२३
  • मानसिक और शारीरिक वृत्तियों के साथ संश्लिष्ट होकर उस मनोविकार की योजना करेगी जिसे क्रोध कहते हैं। जिस [ २ ]बच्चे को पहले अपने ही दुःख का ज्ञान होता था, बढ़ने...
    २९६ B (१,४६३ शब्द) - १६:३८, १७ अगस्त २०२१
  • गयी-सी साख । कौन करुण रहस्य है तुममें छिपा छविमान ? लता-वीरुध दिया करते जिसे छायादान । पशु कि हो पाषाण सब में नृत्य का नव छंद , एक आंलिगन बुलाता सभा को...
    २०८ B (१,६४८ शब्द) - ००:५६, २२ अक्टूबर २०१९
  • (सर्ग २२, श्लोक ११५) अर्थात् कान्यकुब्ज-नरेश के यहाँ जिसे दो पान—और पान ही नहीं, किंतु आसन भी जिसे मिलता है। समाधिस्थ होकर जो अनिर्वचनीय ब्रह्मा नंद का...
    ५६९ B (६९९ शब्द) - १६:०६, १ नवम्बर २०२१
  • तब समझ लेना चाहिए कि उसका क्रोध ऐसे व्यक्ति के ऊपर है जिसे उसके सिर पटकने की परवा है अर्थात् जिसे उसका सिर फूटने से उस समय नहीं तो आगे चलकर दुःख पहुँचेगा।...
    ३४१ B (२,९७९ शब्द) - १६:३५, १७ अगस्त २०२१
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