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कहीं आपका मतलब पाँच धाम तो नहीं था?
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  • बहुत दिनों तक वनती रही शरद सिता ।।२३।। वड़े अपावन - भाव परम - पावन बने । जिसकी पावनता का करके सामना ॥ चौदह वत्सर तक जिसकी धृति - शक्ति से। वहु दुर्गम...
    ३८२ B (२,३५४ शब्द) - १६:१५, १ अगस्त २०२३
  • बन्धुओं का क्या है वक्तव्य ॥५॥ भरत सविनय बोले ससार । विभामय होते, है तम - धाम ।। वही है अधम जनों का वास । जहाँ है मिलते लोक - ललाम ॥६॥ तो नहीं नीच - मना...
    ४१३ B (२,०५९ शब्द) - १७:५५, २१ दिसम्बर २०२१
  • चिन्तितः पृच्चित्तु चतुष्पद अवध के राज मन्दिरों मध्य । एक आलय था बहु-छबि-धाम ॥ खिंचे थे जिसमें ऐसे चित्र । जो कहाते थे लोक-ललाम ॥१॥ दिव्य-तम कारु-कार्य...
    ३६३ B (१,५२३ शब्द) - १७:५०, २१ दिसम्बर २०२१
  • सुरभि कर वहन । शान्त - तपोवन - आश्रम में था बह रहा ।। बहु - संयत वन भर भर पावन - भाव से। प्रकृति कान में शान्ति बात था कह रहा ॥७॥ जो किरणे तरु - उच्च -...
    ३२८ B (१,७७८ शब्द) - १६:१५, १ अगस्त २०२३
  • लंका दे डाली ।।१३॥ किसने उसे बिठा पावक में जो थी शुचिता ढाली । तत्कालिक पावन - प्रतीति की मर्यादा प्रतिपाली ॥१४॥ अवध पहुँच पहले जा कैकेयी को शीश नवाया।...
    ४०५ B (१,९७१ शब्द) - १८:२९, ३१ दिसम्बर २०२१
  • था भर रहा ।।२८॥ धीरे धीरे धुमणि - कान्त - किरणावली। ज्योतिर्मय थी धरा - धाम को कर रही ॥ खेल रही थी कञ्चन के कल - कलस से। बहुत विलसती अमल - कमल - दल पर...
    ३७४ B (२,०२२ शब्द) - १६:१३, १ अगस्त २०२३
  • संकट सारा ।।४५।। सुकृतिवती हो सत्य -सुकृति-फल सारे - पातक खोता है। उसके पावन - तम - प्रभाव मे, बहता रस का सोता है॥४६॥ तुम तो लाखों कोस दूर की , अवनी पर...
    ३४४ B (१,५४९ शब्द) - १६:१३, १ अगस्त २०२३
  • कृष्णदेव कहँ प्रिय जमुना सी। जिमि गोकुल गोलोक-प्रकासी॥ अति विस्तार पार, पय पावन। उभय करार घाट मन भावन॥ बनचर बनज बिपुल बहु पच्छी। अलि-अवली-धुनि-सुनि अति अच्छी॥...
    ६६८ B (२,०८२ शब्द) - २३:१५, ५ नवम्बर २०२०
  • पद्य नीचे दिए जाते हैं–– [ ३६४ ] गुरुपद पंकज पावन रेनू। कहा कलपतरु का सुरधेनू॥ गुरुपद-रज अज इरिहर धामा। त्रिभुवन-विभव, विस्व विश्रामा॥ तब लगि जग जड़...
    ६५२ B (२,९२० शब्द) - २३:१५, ५ नवम्बर २०२०
  • जनक - नन्दिनी का। अभिनन्दन के लिए रहे उत्कण्ठ सब । कितनों की थी यह अति - पावन - कामना । अवलोकेगे पतिव्रता - पद - कंज कब ॥१८॥ [ २९९ ] २९९प अष्टादश सर्ग...
    २८१ B (१,४९८ शब्द) - १८:२७, ३१ दिसम्बर २०२१
  • निरंतर ही, ⁠सरस सुदेय सो, पपीहापन बहि रे। जमुना के तीर केलि कोलाहल भीर ऐसी, ⁠पावन पुलिन पै पतित परे रहि रे॥ संवत् १७९६ में जब नादिरशाह की सेना के सिपाही मथुरा...
    ५३२ B (२,२९२ शब्द) - १७:४५, २७ जुलाई २०२३
  • के हरैया चंदचंद्रिका मुढार ह्वै। हीतल को सीतल करत धनसार ह्वै, ⁠महीतल को पावन करत गंगधार ह्वै॥ (३७) बैरीसाल––ये असनी के रहनेवाले ब्रह्मभट्ट थे। इनके वंशधर...
    ५८२ B (२,४५१ शब्द) - १७:४५, २७ जुलाई २०२३
  • उपकूल आज कितना सूना देवेश इंद्र की विजय-कथा की स्मृति देती थीं दुःख दूना वह पावन सारस्वत प्रदेश दुःस्वप्न देखता पड़ा क्लांत                        फैला था...
    २३८ B (२,४९६ शब्द) - ०१:०१, २२ अक्टूबर २०१९
  • कृत-कृत्य करते हैं और भी बिदुमाधवादि अनेक रूप से अपने नाम-धाम के स्मरण, दर्शन, चिंतनादि से पतितों को पावन करते हुए विराजमान हैं। जिन मंदिरों में प्रातःकाल संध्या...
    ५५४ B (२,००८ शब्द) - १७:३१, १८ जुलाई २०२२
  • पेलि। पावन के पुंजन में राखे नेको दमुना। कठिन करारन की कोरन कलित केलि। कतल करैया तूं कलेसन की जमुना॥४९॥ [ १० ] कवित्त कीरति इनामें होत धवलसु धामे होत।...
    ३७८ B (६,५०४ शब्द) - २०:५३, २२ अप्रैल २०२१
  • तुम तो मरजादा पुरुषोत्तम सु छेद हो। ग्वाल कवि परम पतित प्रन पार यो में तो। पावन पतित तुव नाम सुखकंद हो। मैं तो दीनराज तुम दीनानाथ रघुनाथ। मैं तो दुतिमंद...
    ३९६ B (१,८१७ शब्द) - २१:५०, २२ अप्रैल २०२१
  • सों जहाँ, खाइ चपेट तरंग।। अति अगाध विलसत सलिल, छटा अटल अभिराम । पावन परम, ते सरि संगम धाम ॥ -- उत्तररामचरित   कितनी ही जंगली जातियाँ वृक्षों को देवता मानकर...
    ६९१ B (२,९८२ शब्द) - १३:१३, १८ मार्च २०२१
  • किया ॥१४६॥ ⁠⁠⁠⁠द्रुतविलम्बित छन्द ⁠⁠तदुपरान्त अतीव सराहना । ⁠कर अलौकिक - पावन प्रेम की । ⁠व्रज - वधू - जन की कर सान्त्वना । ⁠ब्रज - विभूषण - बंधु बिदा...
    ३६९ B (४,६३८ शब्द) - ०५:३२, १६ अक्टूबर २०२०
  • मनहु सुहाए॥ किधौ मुकुर में लखत उझकि सब निज-निज सोभा। कै प्रनवत जल जानि परम पावन फल लोभा॥ मनु आतप वारन तीर को सिमिटि सबै छाए रहत। कै हरि-सेवा हित नै रहे,...
    ४४३ B (३,६५४ शब्द) - १६:३४, १७ अगस्त २०२१
  • मोलायम हो। हो न मन की मुलायमीयत कम॥ खोलने पर नयन न खुल पाया। सूझ पाया हमे न पावन थल॥ लोकहित जल मिला न मिल कर भी। धुल न पाया मलीन मन का मल॥ है नही परवाह सुख...
    ३७९ B (३,००० शब्द) - २१:२२, ३१ मार्च २०२१
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