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- by S. N. Tandon at The City Press, Cawnpore. विषय-सूची पृष्ठ आलोचनात्मक अंश ............१-३९ निबंध साहित्यिक ............४३-९८ १. आप ......७११ B (५१४ शब्द) - १०:२२, १३ अप्रैल २०२३
- 152779कोविद-कीर्तनमहावीर प्रसाद द्विवेदी ४---पणिडत मथुराप्रसाद मिश्र सुखदेव मिश्र का जीवनचरित पढ़कर हमारे कई मित्रों ने हमसे कहा कि हम अपनी तरफ़ के...४६३ B (६,१०९ शब्द) - १२:२३, १० मई २०२१
- 'प्रतापहरी' ने उन पर एक बड़ा सरस क़सीदा लिखा था। उसका कुछ अंश दिया जाता है जिससे बाचकों को पता लग सकेगा कि मिश्र जी भारतेंदु को कितनी. भक्ति से देखते थे:- "बनारस...८२७ B (८७८ शब्द) - १०:१५, ४ दिसम्बर २०१९
- अनेकानेक संस्करण छप भी चुके हैं। शिक्षा-विषयक संग्रहो में बहुधा इसका कुछ न कुछ अंश उद्धृत किया जाता है। इस प्रकार पठित समाज में इसका बहुत प्रचार है। परंतु इधर...४०५ B (१,१४१ शब्द) - ०२:०३, २१ नवम्बर २०२१
- प्रताप पीयूष (१९३३) द्वारा प्रतापनारायण मिश्र 74096प्रताप पीयूष१९३३प्रतापनारायण मिश्र ( २०६) समस्या पूर्ति । (पपिहा जब पूंछिहै पीव कहाँ) बन बैठी...७०४ B (५२६ शब्द) - १०:३२, ११ जनवरी २०२०
- हिन्दी भाषा में हो गया है, उसका नाम है 'आर्य्यों का मूल स्थान', उसके कुछ अंश ए हैं— 'एम॰ लुई जैकोलिअट लिखते हैं, भारत संसार का मूल स्थान है, वह सब की...८८१ B (८५७ शब्द) - १२:०६, २६ जून २०२१
- आनंद प्राप्त हो। इस पर ब्रह्मा जी ने प्रसन्न होकर चारों वेदो से कुछ कुछ अंश लेकर नाट्यवेद की रचना की। यह अब प्राप्त नहीं है और यह अतीव प्राचीन काल के...४४० B (१,७५९ शब्द) - १४:४६, १७ जुलाई २०२२
- ऋणी हैं। काले-कृत "उच्च संस्कृत व्याकरण" से हमने संस्कृत-व्याकरण के कुछ अंश लिये हैं। सबसे अधिक सहायता हमें दामले-कृत "शास्त्रीय मराठी व्याकरण" से मिली...४२२ B (३,५६४ शब्द) - ०८:२८, ७ मई २०२१
- कुछ पृष्ठ फटकर निकल गए। सारी सामग्री इतस्ततः होकर अस्त-व्यस्त हो गई। कुछ अंश अधूरे ही रह गए, उनकी केवल टिप्पणियाँ मात्र हैं; उनका पल्लवन न हो सका। विचार-शृंखला...३३७ B (१,६५८ शब्द) - २०:४६, २५ जुलाई २०२३
- था। प्रतापनारायण मिश्र को अपने पिता से अभिनय के लिये मूँछ मुँड़ाने की आज्ञा माँगना प्रसिद्ध ही है। 'काश्मीरकुसुम' (राजतरंगिणी का कुछ अंश ) और 'बादशाहदर्पण'...८५२ B (१६,२०९ शब्द) - ०३:१७, २० मई २०२४
- विशुद्ध हिन्दी सामने रख चुके थे, जिसमें अरबी-फ़ारसी के शब्द नहीं थे। उसका कुछ अंश राजा शिवप्रसाद ने अपने "गुटका" में दाखिल किया था। पीछे जब वे उर्दू की ओर...४४३ B (३,६३९ शब्द) - १६:३४, १७ अगस्त २०२१
- पुस्तक प्राय समस्त छप गई तब द्विवेदी जी ने इस अंश को देखा। उन्होनें बाबू चिंतामणि घोष मे यह आग्रह किया कि यह अंश निकाल दिया जाय। मुझसे पूछा गया। मैंने कहा...५१७ B (५,०१२ शब्द) - ०४:२९, १३ अक्टूबर २०२१
- है, और उस समय जो मीमांसा की जाती है, वह मर्यादित होती है, उसमें औचित्य का अंश भी सविशेष पाया जाता है। हिन्दी भाषा के उत्थान काल में लोगों के आवेश की भी...४५१ B (१,३१६ शब्द) - १४:४६, २१ नवम्बर २०२१
- और इनकी अनन्त मूत्तियों को छिन्न-भिन्न कर डाला है। तथापि अभी इनकी कुछ अंश शेष है जिससे भारतवर्ष की प्राचीन कारीगरी का कुछ-कुछ अनुमान किया जा सकता है।...४२१ B (२,४७७ शब्द) - १९:०२, १३ दिसम्बर २०२०
- साफ़ माथे का समाज अनुपम मिश्र गौना ताल: प्रलय का शिलालेख 145653साफ़ माथे का समाज — गौना ताल: प्रलय का शिलालेखअनुपम मिश्र गौना ताल: प्रलय का शिलालेख...५९० B (२,०७९ शब्द) - १६:४८, २० नवम्बर २०२०
- ------------ तृप्यन्ताम् । 'तृप्यन्ताम्' शीर्षक कविता के थोड़े से अंश यहां दिये जाते हैं। इस कविता में भारत की आर्थिक तथा सामाजिक दुर्दशा का हृदय-ग्राही...७३६ B (१,७६६ शब्द) - १०:३६, ११ जनवरी २०२०
- कहाँ अधिक विस्तार या सकोच की अपेक्षा है। इस अनुभव के अनुसार मैं लिखे हुए अंश को सुधारने में भी समर्थ होता था। इस प्रकार यह ग्रंथ क्रमश प्रस्तुत हो गया।...५३८ B (६,१३१ शब्द) - ०४:२९, १३ अक्टूबर २०२१
- के समय के विषय में कुछ सूक्ष्म विचार हो सकता है और पहली किंवदंती का कुछ अंश सिद्ध सा हो जाता है। उनमें से पहला श्लोक, जिसको उन्होंने काव्यप्रकाश की व्याख्या...३१० B (५,६५७ शब्द) - १५:५७, १० जुलाई २०२३
- प्रताप पीयूष (१९३३) द्वारा प्रतापनारायण मिश्र 74081प्रताप पीयूष१९३३प्रतापनारायण मिश्र (१५०) तुच्छातितुच्छ सादृश्य गन्ने से दे सकते हैं, यद्यपि वास्तविक...७६८ B (१,९१८ शब्द) - ०७:४१, ११ जनवरी २०२०
- का साधर्म्य, हैं कि इनके जितने विशेष गुण हैं सब क्षणिक हैं और इनके एक एक अंशों ही में ये गुण रहते हैं। दिक्, काल का साधर्म्य है कि कुल कार्यों के ये निमित्त...२७० B (२,७०३ शब्द) - ०९:२७, ४ जुलाई २०२३