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  • सलीम ने विवाद का अन्त करने के लिए कहा---चलो इस मुआमले पर रास्ते में बहस करेंगे। देर हो रही है। अमर ने चटपट कुरता गले में डाला और आत्मानन्द से दो-चार जरूरी...
    २८३ B (२,१४६ शब्द) - १८:१५, २१ जुलाई २०२३
  • जाता कभी छिप जाता। अमर दोपहर के बाद चला था। उसे आशा थी, दिन रहते पहुँच जाऊँगा; किन्तु दिन ढलता जाता था और मालूम नहीं, अभी और कितना रास्ता बाकी है। उसके पास...
    २६४ B (२,०४९ शब्द) - १८:१४, २१ जुलाई २०२३
  • हो गयी थी। अमर ने तो दिल्लगी की थी ; पर नैना के चेहरे का रंग उड़ गया। बोली--तुमने कहा नहीं, नाम न काटो, मैं दो-एक दिन में दे दूँगा ? अमर ने उसकी घबराहट...
    २६५ B (२,५३८ शब्द) - १८:१७, २१ जुलाई २०२३
  • गयी थी। अमर का मन कुछ शान्त था। यह प्रचण्ड आवेग शान्त हो गया था और आकाश में छायी हुई गर्द बैठ गयी थी। चीजें साफ़-साफ़ दिखाई देने लगी थीं। अमर मन में पिछली...
    २९३ B (१,०४६ शब्द) - १८:१८, २१ जुलाई २०२३
  • था। सलीम ने चिन्तित होकर पूछा--कैसे लौट पड़े भाई, क्या कोई नयी बात हो गयी? अमर ने कहा--एक बात सूझ गयी। मैंने कहा, तुम्हारी राय भी ले लूँ। फांसी की सजा पर...
    २५६ B (२,४०१ शब्द) - १८:१६, २१ जुलाई २०२३
  • लेकिन उस दिन से अमर बुढ़िया के घर न गया। कई बार यह मजबूत इरादा करके चला पर आधे रास्ते से लौट आया। विद्यालय में एक बार 'धर्म' पर विवाद हुआ। अमर ने उस अवसर पर...
    २६१ B (४,०१३ शब्द) - १८:१७, २१ जुलाई २०२३
  • हो जाती। इन लोगों के पास वही पुराने घोड़े हैं। दौड़ में पिछड़ जाते हैं। अमर उनकी मन्द गति पर बिगड़ता है—इस तरह तो काम नहीं चलने का स्वामीजी। आप काम करते...
    २७४ B (१,१६४ शब्द) - १८:१४, २१ जुलाई २०२३
  • ताबीज़ को वह केवल आशीर्वाद समझ रहा था। रास्ते में बुढ़िया ने कहा--मैंने तुमसे कुछ कहा था, वह तुम भूल गये बेटा? अमर सचमुच भूल गया था। शर्माता हुआ बोला--हाँ...
    २६० B (३,३४९ शब्द) - १८:१७, २१ जुलाई २०२३
  • कर्मभूमि  (1932)  द्वारा प्रेमचंद 49374कर्मभूमि1932प्रेमचंद [ २९९ ] ५ अमर गूदड़ चौधरी के साथ महन्त आशाराम गिरि के पास पहुँचा। सन्ध्या का समय था। महन्तजी...
    २७४ B (४,६५१ शब्द) - १८:१४, २१ जुलाई २०२३
  • माना हुआ अर्थ ले, तो वह है—जननेद्रिय पर काबू पाना। अिस सयमका सुनहला रास्ता और अुसकी अमर रक्षा रामनाम ही है। हरिजनसेवक, २२-६-१९४७ १९ रामनाम और कुदरती अिलाज...
    २६६ B (२११ शब्द) - २१:५४, ३१ जुलाई २०२३
  • करते रहने की ताकीद कर दी गयी थी। सलीम को बड़ा आश्चर्य हुआ। अभी एक दिन पहले अमर उससे मिला था, और यद्यपि उसने महन्त की इस नयी कार्रवाई का विरोध किया था; पर...
    २७४ B (१,९८७ शब्द) - १८:१४, २१ जुलाई २०२३
  • हैं। अमर ने शांत-शीतल हृदय से जवाब दिया--लेकिन तुम देख नहीं रहे हो कि हमारी इंसानियत सदियों तक खून और कत्ल में डूबे रहने के बाद अब सच्चे रास्ते पर आ रही...
    २९३ B (२,१६९ शब्द) - १८:१८, २१ जुलाई २०२३
  • माना हुआ अर्थ ले, तो वह है—जननेद्रिय पर काबू पाना। अिस सयमका सुनहला रास्ता और अुसकी अमर रक्षा रामनाम ही है। हरिजनसेवक, २२-६-१९४७ १९ रामनाम और कुदरती अिलाज...
    २६९ B (८४८ शब्द) - २१:५४, ३१ जुलाई २०२३
  • है। अमर की शाला अब नई इमारत में आ गई थी। शिक्षा का लोगों को कुछ ऐसा चस्का पड़ गया था, कि जवान तो जवान, बूढ़े भी आ बैठते और कुछ-न-कुछ सीख जाते। अमर की शिक्षा-शैली...
    २८० B (४,९४६ शब्द) - १८:१६, २१ जुलाई २०२३
  • बैठा था कि एक असामी ने आकर पूछा--भैया कहाँ हैं बाबूजी, बड़ा जरूरी काम था। अमर ने देखा--अधेड़, बलिष्ट, काला, कठोर आकृति का मनुष्य है। नाम है काले खाँ। रुखाई...
    २५० B (६,११५ शब्द) - १८:१८, २१ जुलाई २०२३
  • अच्छी-अच्छी किताबें पढ़कर सुनाई जाती हैं। रामायण, महाभारत और गीता से अब अमर को विशेष प्रेम है; क्योंकि सुखदा गर्भवती है। बालक के संस्कारों का सदैव ध्यान...
    २५० B (२,१२९ शब्द) - १८:१८, २१ जुलाई २०२३
  • .' सहसा अमर ने खड़े होकर प्रदीप्त नेत्रों से कहा--ठहरो! समूह में सन्नाटा छा गया। जो जहाँ था, वहीं रह गया। अमर ने छाती ठोंककर कहा--जिस रास्ते पर तुम जा...
    २७४ B (१,५८३ शब्द) - १८:१४, २१ जुलाई २०२३
  • सुंदर छतरियां बनी हैं। अमर सागर घड़सीसर से ३२५ साल बाद बना। किसी और दिशा में बरसने वाले पानी को रोकना मुख्य कारण रहा ही होगा लेकिन अमर सागर बनाने वाले संभवतः...
    ४८० B (४,४२३ शब्द) - १४:०६, ३० मई २०२१
  • द्वारा प्रेमचंद 49263कर्मभूमि1932प्रेमचंद [ २२४ ] ७ उसी रात को शांतिकुमार ने अमर के नाम खत लिखा। वह उन आदमियों में थे, जिन्हें और सभी कामों के लिए समय मिलता...
    २८० B (३,५२५ शब्द) - १८:१६, २१ जुलाई २०२३
  • सकती थी? उसने शांतिकुमार को चोट खाकर गिरते देखा था और निर्जीव-सी खड़ी थी। अमर ने उसे प्रारम्भिक चिकित्सा की मोटी-मोटी बातें सिखा दी थीं; पर वह उस अवसर...
    २८० B (१,८२१ शब्द) - १८:१५, २१ जुलाई २०२३
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