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- मुसकात ६-सखा! सुनो मेरी इक बात ७-उद्धव! यह मन निस्चय जानो ८-उद्धव! बेगि ही ब्रज जाहु ९-पथिक! सँदेसो कहियो जाय १०-नीके रहियो जसुमति मैया ११-उद्धव मन अभिलाष...४ KB (६९४ शब्द) - १९:३०, २० अक्टूबर २०२१
- उद्विग्न भागा ॥५॥ बारी - बारी ब्रज - अवनि को कम्पमाना बना के । बातें धावा - मगध - पति की सत्तरा- बार फैली । आया सम्वाद ब्रज-महि मे बार अटठारही जो । टूटी...२४९ B (२,५०६ शब्द) - ०५:५७, १६ अक्टूबर २०२०
- भाई) नैनन में बसै सांवरो रूप रहै मुख नाम सदा सुखदाई । त्यों श्रुति में ब्रज केलिकथा परिपूरण प्रेम प्रताप बड़ाई । कोऊ कछू कहै होय कहूँ कछु पै जिय में...७०४ B (५२९ शब्द) - १०:३२, ११ जनवरी २०२०
- है। जो लालित्य, जो माधुर्य, जो लावण्य कवियों की उस स्वतंत्र भाषा में है जो ब्रज-भाषा बुंदेलखंडी, बैसवारी और अपने ढंग पर लाई गई संस्कृत व फारसी से बन गई है...७११ B (६४१ शब्द) - ०७:५१, ८ दिसम्बर २०१९
- स्थान--मैदान (फौज के डेरे दिखाई पड़ते हैं। भारतदुर्दैव* आता है) भारतदु०--कहाँ गया भारत मूर्ख ! जिसको अब भी परमेश्वर और राजराजेश्वरी का भरोसा है? देखो तो अभी इसकी...४९१ B (१,१९२ शब्द) - ०३:५३, १९ मई २०२१
- सदी के आदि में उत्तर भारत में अपने मत का प्रचार किया । इनके आठ शिष्य थे, जो "अष्टछाप" के नाम से प्रसिद्ध हैं। ये आठों कवि ब्रज में रहते थे और ब्रजभाषा...३८५ B (५,५९३ शब्द) - ०८:१३, ७ मई २०२१
- द्वारा पुस्तक रूप में परिणत हुई है। इसमे ब्रज की चौरासी कोस की परिक्रमा का वर्णन है। गोस्वा- मीजी ने साधारण ब्रज भाषा में भक्तो के चरित्र और तीर्थो वर्णन...४७९ B (५,५७० शब्द) - ०३:०५, २१ नवम्बर २०२१
- कि चलो आज कन्हैया के घर होली खेलेंगे। कन्हैया कौन ब्रज के राजकुमार और खेलने वाले कौन, उनकी प्रजा—ब्रज के ग्वाल-बाल। तो क्या आज हम अपने राजा के साथ होली...४४४ B (३,७८४ शब्द) - २२:४०, २८ जुलाई २०२०
- हुआ है यद्यपि [ १४२ ]वे शुद्ध ब्रज भाषा में लिखे गए हैं। केवल 'नैना' का 'ना' दीर्घ कर दिया गया है। किन्तु यह अपभ्रंश और ब्रज भाषा के नियमानुकूल है। शेष पद्यों...१,०११ B (२,९११ शब्द) - ००:२०, २८ जून २०२१
- ने लोक-संग्रह का भाव अधिक [ ६१० ] ग्रहण किया है। उक्त काव्य में श्रीकृष्ण ब्रज में रक्षक-नेता के रूप में अंकित किए गए हैं। खड़ी बोली में इतना बड़ा काव्य...६१४ B (२,०६० शब्द) - १७:३९, २७ जुलाई २०२३
- काल कहा जाता है. इस शताब्दी का ही अधिकांश भाग है। इस शताब्दी में अवधी और ब्रज भाषा का जैसा शृंगार हुआ फिर कभी वैसा गौरव उसको नहीं प्राप्त हुआ। इस शताब्दी...८०२ B (२,३८० शब्द) - ०४:३८, ६ जुलाई २०२१
- उर धारत। कै मुख करि बहु भृङ्गन मिस अस्तुति उच्चारत॥ कै ब्रज तियगन-बदन-कमल की झलकति झाँईं। कै ब्रज हरिपद-परस हेतु कमला बहु आईं॥ कै सात्त्विक अरु अनुराग दोउ...४४३ B (३,६५४ शब्द) - १६:३४, १७ अगस्त २०२१
- रहित हिन्दी 'ठेठ' या 'खड़ी बोली' (शुद्ध भाषा) कही जाती है; ब्रज प्रदेश की ख़ास बोली, 'ब्रज भाखा' उन आधुनिक बोलियों में से है जो पुरानी हिन्दुई के सब से...५९५ B (४,२७७ शब्द) - ०१:२७, २ जून २०२१
- की दुराशा ने इस युग के साहित्य में, अवध वाली धारा में मिथ्या आदर्शवाद और ब्रज की धारा में मिथ्या रहस्यवाद का सृजन किया है। [ १३३ ] मिथ्या आदर्शवाद का उदाहरण―...५७९ B (२,२२० शब्द) - १३:०२, १९ नवम्बर २०२१
- है––यद्यपि उनमें भी कहीं कहीं ब्रजभाषा की झलक है। पर गीतों और दोहों की भाषा ब्रज या मुख-प्रचलित काव्यभाषा ही है। यही ब्रजभाषापन देख उर्दू साहित्य के इतिहास-लेखक...६६६ B (१,९२३ शब्द) - १७:३६, २७ जुलाई २०२३
- इस ग्रन्थ से एक बात का आभास अवश्य मिलता है। वह यह कि शिष्ट काव्य-भाषा में ब्रज और खड़ी बोली के प्राचीन रूप का ही राजस्थान में भी व्यवहार होता था। साहित्य...८७५ B (३,७१७ शब्द) - १२:०८, २६ जून २०२१
- ( दुहरी विभक्ति) . अपादान-एकवचन-भुक्खा (=भूखसे -- बांगडू ) भूखन, भूखों (ब्रज-भाषा, ( कनौजी) अधिकरण - एकवचन-घरे-आगे-हिंडोरे ( बिहारी लाल ) माथे (सूरदास)...९२५ B (२,३४० शब्द) - ११:४७, १७ जून २०२१
- या काव्य की सर्वमान्य व्यापक भाषा ब्रज ही रही है, यह तो निश्चित है। भाषा-काव्य के परिचय के लिये प्रायः सारे उत्तर भारत के लोग बराबर इसका अभ्यास करते थे...८३० B (५,५१८ शब्द) - ०४:०८, ६ अक्टूबर २०२०
- अपना शुभ प्रभाव डाला। कविता—जैसा पहले कहा गया है, द्विवेदीजी के समय में ब्रज और खड़ी बोली का प्रश्न तीव्र रूप में था। यद्यपि पं॰ श्रीधर पाठक और पं॰ नाथूरामजी...४३० B (१,८१८ शब्द) - १६:१८, १३ फ़रवरी २०२२
- सधुक्कड़ी भाषा के भीतर हुआ करता था। शिष्ट साहित्य के भीतर परंपरागत काव्य-भाषा ब्रज-भाषा का [ ५९९ ]ही चलन रहा। इंशा ने अपनी 'रानी केतकी की कहानी' में कुछ ठेठ...५७८ B (३,६१९ शब्द) - १७:३७, २७ जुलाई २०२३