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अप्रैल की निर्वाचित पुस्तक
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सप्ताह की पुस्तक
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भक्तभावन ग्वाल कवि द्वारा रचित २८ काव्यों का संग्रह है। बनारस के विश्वविद्यालय प्रकाशन द्वारा इसके प्रथम संस्करण का प्रकाशन १९९१ ई. में किया गया था।


"श्री वृषभान कुमारिका। त्रिभुवन तारन नाम।
शीश नवावत ग्वाल कवि सिद्धि कीजिये काम॥१॥
वासी[१] वृंदा विपिन के। श्री मथुरा सुखवास।
श्री जगदंबा दई हमें। कविता विमल विकास॥२॥
विदित[२] विप्र वंदी विशद। बरने व्यास पुरान।
ताकुल सेवाराम को। सुत कवि ग्वाल सुजान॥३॥

शोभा के सदम लखि होत है अदमसम। पदम पदम पर परम लता के इद।
देखें नख दामिनी घने दुरी अकामिनी है। जामिनी जुन्हया की जरै जलसता के मद।
ग्वालकवि ललित छलानतें कलित कल। वलित सुगंधन ते वेस मुदता के नद।
वंदन अखंड भुज दंड जुग जोरै करौं। बरद उमंड मारतंड तनया के वद।।१॥"

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पूर्ण पुस्तक
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स्त्रियों की पराधीनता जॉन स्टुअर्ट मिल की कृति "THE SUBJECTION OF WOMEN" का शिवनारायण द्विवेदी द्वारा किया गया हिंदी अनुवाद है। इसका प्रकाशन "हरिदास एण्ड कम्पनी", (कलकत्ता) द्वारा १८१७ ई॰ में किया गया।

"विश्व-विजयी सम्राट् नैपोलियन ने एक अवसर पर कहा था कि, "जो कुछ प्राचीनता की ओट में आ जाता है, लोग उसे अन्याय होने पर भी न्याय ही कहा करते हैं," यह बात मुर्दा रीति-रिवाजों और आचार-विचारों के लिए अक्षरशः सत्य है। जो जाति सुधार की धारा से दूर रहती है उसकी निर्बलता उसे मौत की ओर ही घसीटती है। संसार में कोई समय ऐसा नहीं आता जब मनुष्य अपनी दशा समान ही रख सके; या तो उसे संसार के प्रवाह में पड़ कर आगे बढ़ना होगा और या आगे बढ़ने वालों की ठोकरों से कुचल कर मौत का निवाला बनना होगा। यह प्रकृति का नियम है कि, विश्व में योग्यतम की जीत होगी; और अयोग्य केवल इस श्रेणी वाले व्यक्तियों की दया पर जीवित रहेंगे।"...(पूरा पढ़ें)


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सहकार्य

इस माह शोधित करने के लिए चुनी गई पुस्तक:
  1. Kabir Granthavali.pdf ‎[९२१ पृष्ठ]
  2. जायसी ग्रंथावली.djvu ‎[४९८ पृष्ठ]
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रचनाकार
रचनाकार

अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' (15 अप्रैल 1865 — 16 मार्च 1947) हिंदी भाषा के कवि, निबंधकार तथा संपादक थे। विकिस्रोत पर उपलब्ध उनकी रचनाएँ:

  1. प्रियप्रवास (1914), खड़ी बोली हिंदी का पहला महाकाव्य जो कृष्ण के गोकुल से मथुरा प्रवास की घटना पर आधारित
  2. चोखे चौपदे (1924), हरिऔध हजारा नाम से भी प्रसिद्ध इस पुस्तक में एक हजार चौपदे हैं
  3. वेनिस का बाँका (1928), अंग्रेजी नाटक मर्चेंट ऑफ वेनिस का अनुवाद
  4. रसकलस (1931), मुक्तकों का संग्रह
  5. रस साहित्य और समीक्षायें (१९५६), आलोचनात्मक निबंधों का संग्रह
  6. हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास

आज का पाठ

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निराला रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित हिन्दी साहित्य का इतिहास का एक अंश है जिसके दूसरे संस्करण का प्रकाशन काशी के नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा १९४१ ई॰ में किया गया।

"श्री सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'—पहले कहा जा चुका है कि 'छायावाद' ने पहले बँगला की देखादेखी अँगरेजी ढंग की प्रगीत पद्धति का अनुसरण किया। प्रगीत पद्धति में नाद-सौंदर्य की ओर अधिक ध्यान रहने से संगीत-तत्व का अधिक समावेश देखा जाता है। परिणाम यह होता है कि समन्वित अर्थ की ओर झुकाव कम हो जाता है। हमारे यहाँ संगीत राग-रागिनियों में बँधकर चलता आया है; पर योरप में उस्ताद लोग तरह तरह की स्वर-लिपियों की अपनी नई नई योजनाओं का कौशल दिखाते हैं। जैसे और सब बातों की, वैसे ही संगीत के अँगरेजी ढंग की भी नकल पहले पहल बंगाल में शुरू हुई। ..."(पूरा पढ़ें)

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