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कहीं आपका मतलब आनन्द प्रसाद जैन तो नहीं था?
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  • प्रायोजन सत्य २ अर्थ का प्रकाश करना है अर्थात् जो सत्य है उसको सत्य और जो मिथ्या है उसको मिथ्या ही प्रतिपादन करना सत्य अर्थ का प्रकाश समझा है। वह सत्य नहीं...
    ६८६ B (२,१८२ शब्द) - ०३:२६, ४ अगस्त २०२३
  • तुच्छ-सी वस्तु जान पड़ती---इस विद्युत्-प्रकाश में वह दीपक अब मलिन पड़ गया था। यहाँ तक कि शनै-शनै उसका वह मलिन प्रकाश भी लुप्त हो गया। मनहर ने अपने भविष्य...
    ३२७ B (६,८४३ शब्द) - २२:५४, २१ मई २०२१
  • कुरल-काव्य द्वारा तिरुवल्लुवर, अनुवादक पं० गोविन्दराय जैन 156211कुरल-काव्यपं० गोविन्दराय जैनतिरुवल्लुवर [ २६० ]  परिच्छेद ७६ धनोपार्जन धन भी अद्भुत वस्तु...
    ४१३ B (४०५ शब्द) - १४:३२, ९ सितम्बर २०२१
  • को अपना अपना बनाने के लिए परस्पर होड़ लगा रहे हैं। इन सबके बीच जैन कहते हैं कि "यह तो जैन ग्रन्थ है, सारा ग्रन्थ "अहिंसा परमो धर्म" की व्याख्या है और इसके...
    ३६३ B (४,९७६ शब्द) - १३:२३, १९ जुलाई २०२१
  • एवं डॉ॰ अशोक कुमार शर्मा, वेद प्रकाश सोनी तथा डॉ॰ विनय के प्रति भी उनके हार्दिक सहयोग के लिए आभारी हूं। [ ६ ]⁠भाई राम आनंद साहित्य क्षेत्र में प्रवेश करते...
    ४६३ B (१,०८५ शब्द) - ०४:३७, २१ मई २०२१
  • अशोक कुमार शर्मा, वेद प्रकाश सोनी तथा डा. विनय के प्रति भी उनके हार्दिक सहयोग के लिए आभारी हूं। [ ६ ]________________ भाई राम आनंद साहित्य क्षेत्र में...
    २०० B (१,०५१ शब्द) - १७:२४, २६ जुलाई २०२३
  • अशोक कुमार शर्मा, वेद प्रकाश सोनी तथा डा. विनय के प्रति भी उनके हार्दिक सहयोग के लिए आभारी हूं। [ ६ ]________________ भाई राम आनंद साहित्य क्षेत्र में...
    ३५५ B (९९६ शब्द) - १७:५२, २६ जुलाई २०२३
  • धर्मसूरि, विजयसूरि एवं विनय चन्द्र सूरि जैन हैं। इनमें से अनन्य दास की रचना का कोई उदाहरण नहीं मिला। धर्म्मसूरि जैन ने जम्बू स्वामी रासो नामक एक ग्रन्थ लिखा...
    ९४४ B (३,७१६ शब्द) - ००:४३, २७ जून २०२१
  • जैनी यहाँ महावीर का निर्वाण बतलाते हैं, पर जिस जगह को अब पावापुर मानते हैं असल में वह नहीं है; पावा विशाली से पश्चिम और गंगा से उत्तर होने चाहिए। जैन...
    ४८६ B (३,४७७ शब्द) - ०५:५८, २५ जुलाई २०२२
  • आजकल की भाषायें. जैन बंगाली, मरहटो, हिन्दी और उडिया इत्यादि उसी में उत्पन्न हुई है"। जैनेरा अर्धमागधीभाषा केई आदि भाषा वलियामने करेन जैन लोग अर्द्ध मागधी...
    ८९२ B (६,७४९ शब्द) - १०:५३, १७ जून २०२१
  • हों। मैं उपन्यास को मानव-चरित्र का चित्र-मात्र समझता हूँ। मानव-चरित्र पर प्रकाश डालना और उसके रहस्यों को खोलना ही उपन्यास का मूल तत्त्व है। किन्हीं भी दो...
    ३८४ B (३,९४७ शब्द) - १०:२८, २६ जून २०२१
  • परीक्षा गुरु ८६   पछतावा होता है, जो लोग कुछ काल श्रद्धा और यत्नपूर्वक धर्म का आनंद लेकर इस दलदल में फसते हैं उनसे आत्मग्लानि और आंतरिक दाह का क्लेश पूछना चाहिये...
    ५८३ B (२,१४० शब्द) - १७:०३, २९ जुलाई २०२३
  • भाषाआ का प्रचार प्रायः बन्द हो चुका था।" • “सम्वत् ६६० में देवसेन नामक एक जैन ग्रन्थकार हो गये हैं, दोहों में उनके बने दो ग्रन्थ पाये जाते हैं, एक का नाम...
    ८३२ B (७,११२ शब्द) - ११:१२, १७ जून २०२१
  • द्रव्य-स्वभाव-प्रकाश ) नामक एक और ग्रंथ दोहों में बनाया था जिसका पीछे से माइंल्ल धवल ने 'गाथा' या साहित्य की प्राकृत में रूपांतर किया। इसके पीछे तो जैन कवियो...
    ६७० B (६,४८४ शब्द) - १७:३६, २७ जुलाई २०२३
  • विनीता नाम की पुरी जम्बूद्वीप के भरतखंड में पृथिवी की शिरोमणि थी। परन्तु जैन-धर्म का सब से प्रामाणिक ग्रन्थ आदिपुराण है। इस ग्रंथ को विक्रम संवत की आठवीं...
    ५९० B (४,६४८ शब्द) - ००:२०, ४ मई २०२३
  • ईसवी शताब्दी में विनय-प्रभु जैन और छोटे छोटे कई दूसरे जैन कवि होगये हैं, जिनकी रचनायें लगभग वैसी ही हैं जैसी ऊपर लिखे गये जैन कवियों की हैं। उनमें कोई विशेषता...
    ८२० B (३,९४६ शब्द) - ०२:४२, ३० जून २०२१
  • सुजान जनखा-( फ्रा० - शब्द ) | नितांत-श्रत्यंत । हिजड़ा, नपुंसक। स्फूर्ति-प्रकाश, प्रतिभा । सुमिरनी-जपने की २७ दानों नवनता-नम्रता। की माला। तीसरा प्रस्ताव...
    २८६ B (१,९३१ शब्द) - ०८:२९, १६ अक्टूबर २०२१
  • हों। मैं उपन्यास को मानव-चरित्र का चित्र-मात्र समझता हूँ। मानव-चरित्र पर प्रकाश डालना और उसके रहस्यों को खोलना ही उपन्यास का मूल तत्व है। किन्ही भी दो आदमियों...
    २८७ B (३,७०७ शब्द) - ००:४८, ४ अगस्त २०२३
  • थी। बाकी पूरे बरस भर इसकी पवित्रता के लिए आनंद का एक अंश, तैरने, नहाने का अंश थोड़ा बांध कर रखा जाता था। आनंद के इस सरोवर पर समाज अपनी ऊंच-नीच भी भुला...
    ५३५ B (७,५११ शब्द) - ०४:२०, २७ अक्टूबर २०१९
  • भगवानदान)५६२, दूपण-उल्लास ( सूर) २५६ दूपण-दर्पना ( वोल) ३१६ द्रव्य-स्वमाव-प्रकाश-३०-'दब-सहाव- दूरश-विचार (बलभद्र मिश्र ) २०६ प्रयास दृद्रिद ७२१ - द्रोणपर्व...
    ३९६ B (३,२९१ शब्द) - १७:३५, २७ जुलाई २०२३
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